27 मार्च 2025 - 17:17
इमाम ख़ुमैनी की निगाह में क़ुद्स दिवस का महत्व

कि इस्राईल के पीछे अमरीका है, लेकिन अरब देश यह क्यों नहीं सोचते कि अगर सारे अरब देश एक आवाज़ में एक साथ विरोध करेंगे तो अमरीका भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा,

- क़ुद्स एक इस्लामी दिन है, यह ऐसा दिन है जिस में इस्लाम को नई ऊर्जा दी जानी चाहिए।

- यौमे क़ुद्स शबे क़द्र से नज़दीक ही होता है, शबे क़द्र की तरह इसको भी अहमियत देना ज़रूरी है, मुसलमानों के लिए बहुत ज़रूरी है कि आख़िर के कुछ सालों में हालात को देखते हुए सतर्क रहें और अंधेरे से बाहर निकलें ताकि साम्रज्यवादी ताक़तों से मुसलमानों की ताक़त अधिक हो सके, और फिर मुसलमान अपना भविश्य ख़ुद लिख सकें।

- मैं हमेशा से इस्राईल और उसकी क्रूरता, छल कपट और अत्याचार को अपने ख़ुतबों, अपनी तहरीर और अपनी बातों में मुसलमानों के सामने बयान करता रहता हूं कि इस्राईल मुसलमानों के लिए कैंसर है, ध्यान रहे यह केवल क़ुद्स पर क़ब्ज़ा करके रुकने वाले नहीं हैं, इनकी निगाह मुसलमानों की गाढ़ी कमाई और उनकी सम्पत्ति और और उनके देशों की भूमि पर है, यह अमरीका की पैरवी करने वालों में से हैं, जिस प्रकार अमरीका की नियत हर समय हर मुसलमान की सम्पत्ति पर रहती या दूसरी साम्राज्यवादी ताक़तें जो हमेशा दूसरों पर अपना क़ब्ज़ा जमाना चाहते हैं इस्राईल भी उन्हीं देशों का पिठ्ठू है।

- क़ुद्स का मामला व्यक्तिगत मामला या किसी एक देश या केवल किसी विशेष दौर के मुसलमानों का मामला नहीं है, बल्कि यह कल, आज और भविष्य में अल्लाह का नाम लेने वाले लोगों के लिए एक दर्दनाक हादसा है, जिस दिन से यह हादसा हुआ उस समय से जब तक यह दुनिया रहेगी यह दर्दनाक हादसा सारे मुसलमानों को तकलीफ़ देता रहेगा।

- यौमे क़ुद्स केवल क़ुद्स से विशेष नहीं है बल्कि विश्व क़ुद्स दिवस है, यह दिन सभी दबे कुचले लोगों का क्रूर, दुष्ट अत्याचारियों के मुक़ाबले आंखों में आंखे डाल के खड़े होने का दिन है, यह दिन उन सभी लोगों के प्रतिरोध का दिन है जो अमरीका और उसकी सहयोगी साम्राज्यवादी ताक़तों के द्वारा अत्याचार का शिकार हुए हैं, यह दिन दबे कुचले लोगों का महाशक्तियों की नाक रगड़ने का दिन है।

- कितने साल हो गए इस्राईल ने फ़िलिस्तीन और दूसरी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर रखा है, और इतने सारे अरब देश होने के बावजूद इनकी औक़ात नहीं  कि उसका विरोध करते, जब कहा जाता है तो कहते हैं कि इस्राईल के पीछे अमरीका है, लेकिन अरब देश यह क्यों नहीं सोचते कि अगर सारे अरब देश एक आवाज़ में एक साथ विरोध करेंगे तो अमरीका भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, यूरोप की भी कुछ करने की हिम्मत नहीं होगी, और सबसे बड़ी समस्या यही है कि मुस्लिम देश एकजुट और एकमत नहीं हैं, और साम्राज्यवाद ऐसा नहीं होने देता जिस पर भी हमें ध्यान देने की ज़रूरत है।

- पिछले कुछ सालों का तजुर्बा यही कहता है कि जिस भी मुस्लिम देश ने (चाहे इनकी तादाद कम ही क्यों न रही हो) दुश्मन के मुक़ाबले (चाहे दुश्मन की तादाद अधिक ही क्यों न रही हो) प्रतिरोध किया उसे कामयाबी मिली, आप लेबनान ही में देख लीजिए एक ओर महाशक्तियां जमा थीं और उनके मुक़ाबले कुछ लोगों ने प्रतिरोध किया उन्हें कामयाबी मिली महाशक्ति गठबंधन को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

- आज सभी महाशक्तियों ने हाथ मे हाथ डाल रखा है ताकि फ़िलिस्तीनी अपने मक़सद तक न पहुंच सकें, और बहुत सारे देशों और लोगों ने फ़िलिस्तीन की हिमायत में हमदर्दी जताने का दावा किया है, जबकि वह दिल से कभी नहीं चाहते कि फ़िलिस्तीन के मज़लूम मुसलमान इस्राईल को हरा कर अपना सम्मान वापिस पा लें, अफ़सोस कुछ ने तो चुप्पी साध रखी है और हाथ पर हाथ धरे केवल तमाशा देख रहे हैं, वह नहीं चाहते कि फ़िलिस्तीन जीत जाए क्योंकि उनकी जीत इस्लाम की जीत है।

- यह फ़ितने की जड़ जो कुछ महाशक्तियों के प्रयास से इस्लामी देशों के बीच में बसा है, जो इस्लामी देशों को दीमक की तरह खोखला कर रहा है, जिसके फितने से हर दिन किसी इस्लामी देश को ख़तरा रहता है, इसकी जड़ों को सभी इस्लामी देशों और वहां की जनता की हिम्मत और साहस से उखाड़ फ़ेंक देना चाहिए, इस्राईल कई इस्लामी देशों पर हमला कर चुका है, अब इस्लामी देशों और वहां के हाकिमों पर इसको जड़ से उखाड़ फ़ेंकना ज़रूरी हो गया है।

- इस्राईल अवैध राष्ट्र है, जिसे बहुत जल्द फ़िलिस्तीन छोड़ देना चाहिए, इसका केवल इलाज यही है कि फ़िलिस्तीनियों को जल्द से जल्द इस फ़ितने की जड़ को उखाड़ कर पूरे साम्राज्य को क्षेत्र से दूर फेंक देना चाहिए ताकि क्षेत्र में सुरक्षा का एहसास किया जा सके।

- उम्मीद करता हूं कि सभी इस्लामी देशों के मुसलमान क़ुद्स को विश्व दिवस के रूप में मनाएंगे, अल्लाह के मुबारक महीने रमज़ान के अंतिम जुमें में विरोध प्रदर्शन करेंगें, अपने इलाक़े की मस्जिदों में क़ुद्स दिवस के मौक़े पर प्रोग्राम करेंगें, मस्जिदों से इस्राईल के विरुध्द आवाज़ उठाएंगे, जब एक अरब मुसलमान एक साथ इस अवैध राष्ट्र के विरुध्द आवाज़ उठाएंगे तो केवल आवाज़ की दहशत से ही यह नाबूद हो जाएगा।

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