पिछले करीब 21 महीनों से जारी गज़्ज़ा में ज़ायोनी नरसंहार की सऊदी, तुर्की और कतर जैसे खाड़ी देशों ने सिर्फ निंदा ही कि है, बल्कि परदे के पीछे इस्राईल को सहायता पहुंचते हुए अपना कारोबार चमकाते रहे लेकिन ईरान ने फिलिस्तीन के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल रहते हुए शुरुआत से ही ज़ायोनी शासन के मुकाबले मोर्चा संभाला।
ईरान एक शिया देश और फिलिस्तीन एक सुन्नी देश, लेकिन गज़्ज़ा पर जब हमला हुआ ईरान सबसे पहले अवैध राष्ट्र के खिलाफ खड़ा हुआ। युद्ध की शुरुआत से ही ईरान समर्थित अंसरुल्लाह, हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों ने इस्राईल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वहीं जानकार मानते हैं कि हमास को भी ईरान सैन्य और आर्थिक सहायता देता है।
साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी कूटनीतिक तरीके से ईरान ने फिलिस्तीन का मुद्दा उठाया। गज़्ज़ा मे ज़ायोनी सेना द्वारा किए जा रहे जनसंहार के 2 साल पूरे होने से पहले ही ज़ायोनी शासन और अमेरिका की नजरों में ईरान खलने लगा। फिर इस्राईल ने ईरान में अपने जासूसी नेटवर्क के जरिए ईरान के प्रमुख नेताओं और अधिकारियों की हत्याएं करानी शुरू की, फिर भी ईरान फिलिस्तीन के साथ देने से पीछे नहीं हटा।
इस से पहले भी दो बार ज़ायोनी शासन ईरान में दूर से ही थोड़े बहुत संघर्ष देखने मिला, लेकिन 13 जून को साम्राज्यवादी धडे के इशारे पर इस्राईल ने ईरान पर सीधा हमला बोल उसके कई सैन्य और परमाणु केंद्रों को निशाना बनाया, साथ ही करीब 30 अधिकारियों और वैज्ञानिकों की हत्याएं भी की।
ईरान के जवाबी हमलों में इस्राईल की हालत खराब हुई तो ज़ायोनी शासन की रक्षा के लिए 21 जून की रात अमेरिका खुद खुल कर मैदान मे आ गया और ईरान की तीन परमाणु साइट नतंज़, फोर्दो, और इस्फहान पर अपने सबसे खतरनाक B-2 बॉम्बर से हमला बोल दिया साथ ही आयतुल्लाह खामेनेई की हत्या की धमकी दी।
आयतुल्लाह खामेनेई ने अपनी जान की परवाह किए बिना ही अमेरिकी हमले का जवाब देने का ऐलान किया और मंगलवार तड़के ईरान ने वही किया जैसा कहा था और कतर में मौजूद अमेरिकी एयर बेस पर करीब 10 मिसाइलों से हमला किया और बताया कि हम मुस्लिम देशों की बेहिसी और अमेरिकी ग़ुलामी के बावजूद अपने दम पर ही अमेरिका के ठिकानों को भी निशाना बनाने में सक्षम है।
ईरान ने बिना झुके अमेरिका और इस्राईल को खुद सीजफायर के लिए मजबूर किया और साफ संददेश दिया जो अल्लाह से डरते हैं वह किसी से नहीं डरते।
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