यूरोपीय यूनियन का दोग़लापन एक बार फिर उजागर हो गया जब उन्होंने एक तरफ अफगानिस्तान पर पाबंदी लगाई और दूसरी तरफ फंड भी जारी कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था OCHA के मुताबिक, जर्मनी ने 2 मिलियन यूरो सीधे अफ़ग़ानिस्तान ह्यूमैनिटेरियन फंड को दिए हैं, ताकि खाने और ज़रूरी चीज़ों की कमी से निपटा जा सके। यह मदद इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम पहले ही चेतावनी दे चुका है कि भारी पैसों की कमी के कारण वह 80% ज़रूरतमंद लोगों तक मदद नहीं पहुँचा पा रहा है। उसे मदद पाने वालों की संख्या 1 करोड़ से घटाकर सिर्फ़ 20 लाख करनी पड़ी है।
दूसरी तरफ़, यूरोपीय यूनियन ने काबुल में अपने दफ़्तर के ज़रिये बताया कि उसने वर्ल्ड बैंक ग्रुप की संस्था IFC के साथ 5 मिलियन यूरो का समझौता किया है। यह समझौता अफ़ग़ानिस्तान के निजी क्षेत्र को स्थिर करने के लिए है और 42 महीनों (लगभग साढ़े 3 साल) तक चलेगा।
इस योजना का मकसद निजी कारोबार को फिर से चालू करना और देश की अर्थव्यवस्था को सहारा देना है। गौर करने वाली बात यह है कि तालिबान सरकार आने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान को पश्चिमी देशों की कड़ी पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोपीय देशों की यह अचानक दिलचस्पी असल में सुरक्षा और शरणार्थियों (रिफ्यूजी) की चिंता से जुड़ी है। उन्हें डर है कि अगर अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था और बिगड़ी, तो बड़ी संख्या में लोग यूरोप की तरफ़ पलायन कर सकते हैं।
इसके अलावा, पश्चिमी देश काबुल की मौजूदा सरकार के साथ मिलकर ऐसा तरीका बनाना चाहते हैं, जिससे अफ़ग़ान शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजा जा सके।
16 दिसंबर 2025 - 15:30
समाचार कोड: 1762529
जर्मनी और यूरोपीय यूनियन ने अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय मदद और आर्थिक स्थिरता के लिए कुल 7 मिलियन यूरो देने का ऐलान किया है।
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