हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) अल्लाह के भेजे हुए एक नबी हैं, जो न सिर्फ मुसलमानों के लिए, बल्कि हर धर्म और मज़हब के इंसानों के लिए हिदायत और रिहाई के मक़सद से भेजे गए हैं। यह रहमत के पैग़म्बर इंसानों को फ़ज़ीलत और पाक-साफ़ ज़िंदगी की तरफ़ बुलाते हैं। कुरआन में भी उनकी रिसालत की आलमी हद का ज़िक्र आया है।
अल्लाह तबारको तआला ने इंसान की पैदाइश से ही रहनुमाई के लिए आलिम, हकीम और बड़े-बड़े इंसानों को भेजा, ताकि बंदे इलाही मआरिफ़ हासिल करके, फ़ज़ीलतों को पहचानकर और इबादत और अख़लाक़ सीखकर, मोहब्बत, सलामती और पाकीज़गी से भरपूर ज़िंदगी गुज़ारें और बुराई से दूर रहें। इन सब पैग़म्बरों और रसूलों में सबसे आला और अज़ीम आख़िरी नबी, हज़रत रसूल-ए-अकरम मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) हैं।
यह रहमतों का रसूल दुनिया और आख़िरत के तमाम इंसानों के लिए रहमत हैं। उनका नूरी वजूद किसी एक क़ौम, नस्ल, मिल्लत या इलाक़े तक सीमित नहीं, बल्कि वह हर मज़हब और किसी भी इलाके में रहने वाले इंसानों के लिए अल्लाह के भेजे हुए रसूल हैं।
हज़रत अहमदे मुख़्तार (स.अ.) सिर्फ़ मुसलमानों के नबी नहीं हैं; बल्कि वह अशरफ़ुल-मख़लूक़ात हैं और अल्लाह की तरफ़ से उन्हें तमाम इंसानों को नेकी और रिहाई की तरफ़ बुलाने का हुक्म मिला है।
इसलिए हबीबुल्लाह (स.अ.) मुसलमानों, ईसाइयों, यहूदियों, हिंदुओं, बौद्धों और हर मज़हब, फ़िरक़े और कोई भी रुझान रखने वाले तमाम इंसानों के लिए अज़ीम पैग़म्बर हैं।
यह नजात देने वाली और उम्मीद बख़्श हक़ीक़त कुरआन करीम में इस तरह बयान हुई है:
"وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ"
(सूरा सबा, आयत 28)
"और हमने तुम्हें तमाम इंसानों के लिए ही भेजा है, ताकि तुम उन्हें अल्लाह के सवाब की खुशख़बरी दो और उसके अज़ाब से डराओ। लेकिन इंसानों की अधिकतर संख्या इस हक़ीक़त से अनजान है।"
(हुज्जतुल-इस्लाम रज़ाई)
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