ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामनेई ने टेलीविजन पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में नए शैक्षणिक वर्ष की बधाई दी और कहा कि «मेहर का महीना» ज्ञान व गतिशीलता का प्रतीक है।
उन्होंने युवा प्रतिभाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में ईरानी छात्रों ने 40 पदक जीते जिनमें 11 स्वर्ण शामिल हैं; देश ने खगोल-विज्ञान ओलिंपियाड में प्रथम स्थान हासिल किया।
आयतुल्लाह खामनेई ने शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि उनकी वैचारिक और आध्यात्मिक विरासत ज़िंदा रहेगी।
आयतुल्लाह खामेनेई ने हालिया 12-दिवसीय संघर्ष के दौरान राष्ट्रीय एकजुटता की सराहना की और कहा कि जनता व सुरक्षा संस्थाओं ने विरोधी साज़िशों को नाकाम कर दिया।
यूरिनियम संवर्धन के बारे में आयतुल्लाह ख़ामनेई ने कहा कि ईरान ने 60% तक संवर्धन करने में सफलता हासिल कर ली है, परंतु इसका उद्देश्य परमाणु हथियार नहीं बल्कि वैज्ञानिक और औद्योगिक जरूरतें हैं। उन्होंने कहा कि विश्व में सिर्फ़ 10 देश ऐसी क्षमता रक्षते हैं और ईरान उनमें से एक है।
आयतुल्लाह खामेनेई ने कहा कि राजनीतिज्ञ बार-बार अमेरिका से बातचीत की बात करते हैं। कुछ लोग इसे फ़ायदेमंद और ज़रूरी मानते हैं, कुछ इसे हानिकारक बताते हैं और कुछ बीच की राय रखते हैं। अलग-अलग बातें कही जाती हैं।
मैं वह बात ईरान की जनता से कहना चाहता हूँ जो मैंने इन वर्षों में खुद देखी, समझी और महसूस की है। मेरी राय यह है कि मौजूदा हालात में अमेरिका से बातचीत न तो हमारे लिए लाभकारी है और न ही हमारी कोई हानि दूर करेगी। यानी यह ऐसा काम है जिसमें न कोई फ़ायदा है और न ही किसी नुक़सान की भरपाई हो सकती है— यह बिल्कुल बेअसर है।
मैं यह मौजूदा हालात के बारे में कह रहा हूँ। संभव है कि 20 या 30 साल बाद परिस्थितियाँ बदल जाएँ, लेकिन आज की स्थिति में बातचीत का कोई फ़ायदा नहीं।
दूसरी बात यह है कि अमेरिका से बातचीत न केवल बेफ़ायदा है बल्कि इसके बड़े नुकसान भी हैं। कुछ नुक़सान ऐसे हैं जिनकी भरपाई शायद कभी संभव न हो। जिन पर मैं बाद में बात करूंगा।
लेकिन सबसे अहम बात यह है कि यह वार्ता हमारे लिए फायदेमंद नहीं है क्योंकि अमेरिका ने पहले ही वार्ता का नतीजा तय कर रखा है। उन्होंने घोषित कर दिया है कि वे केवल उन्हीं वार्ताओं को स्वीकार करेंगे जिनका परिणाम ईरान में परमाणु गतिविधियों और यूरेनियम समृद्धि को बंद करना होगा। यह वार्ता नहीं, बल्कि एक तरह की जबरदस्ती है। और ऐसी जबरदस्ती का कोई लाभ नहीं है।
उन्होंने कहा कि जब वार्ता की पेशकश धमकियों के साथ की जाए तो कोई भी सम्मानित राष्ट्र ऐसी बात स्वीकार नहीं करता। यदि कोई पक्ष कहे कि अगर वार्ता नहीं हुई तो हम बमबारी करेंगे या कोई अन्य कार्रवाई करेंगे, तो वह वास्तव में वार्ता नहीं बल्कि जबरदस्ती है।"
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