18 जुलाई 2025 - 17:49
सीरिया के विभाजन का अमेरिकी-ज़ायोनी एजेंडा, अरब सरकारों के लिए खतरे की घंटी 

सीरिया में तेज़ी से बदलते हालात न केवल अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की नज़र में एक आंतरिक संकट का प्रमाण हैं, बल्कि इसके प्रभाव क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखे जा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट ज़ायोनी शासन की एक ख़तरनाक साज़िश का नतीजा है, जिसका उद्देश्य न केवल सीरिया, बल्कि पूरे अरब क्षेत्र को अस्थिर करना है।

अंतरराष्ट्रीय दैनिक अल-कुद्स अल-अरबी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में लिखा है कि इस्राईल सीरिया को तीन छोटे देशों में विभाजित करने की कोशिश में जुटा है। हाल के दिनों में, बेडौइन जनजातियों और द्रुज़ अल्पसंख्यकों के बीच झड़पों के बाद, अबु मॉहम्मद जौलानी की तथाकथित सरकार ने हस्तक्षेप किया, जिससे इस्राईल को सीरिया के आंतरिक मामलों में और अधिक खुले तौर पर हस्तक्षेप करने का अवसर मिला।

सूत्रों के अनुसार, ज़ायोनी सरकार सीरिया में दो मुख्य लक्ष्य हासिल करना चाहती है:

1. द्रुज़ अल्पसंख्यकों को यह विश्वास दिलाना कि सीरिया और लेबनान में इस्राईल उनका सबसे बड़ा रक्षक है।

2. सीरिया के आंतरिक मामलों में दखलंदाज़ी करने के लिए, जबल अल-शेख जैसे रणनीतिक क्षेत्रों पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करना।

इस सिलसिले में, फ्रांसीसी अखबार ले मोंडे ने ज़ायोनी शासन की मंशा पर सवाल उठाते हुए लिखा कि हालिया हमले ऐसे समय में हुए हैं जब सीरियाई सरकार इस्राईल के साथ संबंध बहाल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। अमेरिका ने सीरिया पर लगे कई प्रतिबंध हटा लिए हैं और तहरीरुश्-शाम को अमेरिकी आतंकवादी सूची से हटा दिया है।

अखबार आगे लिखता है कि जौलानी ने पिछले 9 महीनों में दक्षिणी सीरिया पर ज़ायोनी कब्जे के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की है। इस चुप्पी और सहयोग ने सीरिया में इस्राईल के लिए अनुकूल माहौल बनाने में मदद की।

विशेषज्ञों के अनुसार, नेतन्याहू का मुख्य लक्ष्य पूरे क्षेत्र में स्थिरता और पुनर्निर्माण में बाधा डालना है। वह सीरिया की सामाजिक कमज़ोरियों को सांप्रदायिक संघर्ष और आंतरिक संघर्ष भड़काने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं, ताकि अरब देशों में एकता न रहे। तल अवीव के दृष्टिकोण से, यह योजना दो तरह से उपयोगी है:

1. अरब देशों में मज़बूत सरकारों के गठन को रोकना।

2. आंतरिक मतभेद पैदा करना जिससे राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचे।

इस पूरी प्रक्रिया में, इस्राईल को न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका, बल्कि कई यूरोपीय शक्तियों का भी समर्थन प्राप्त है।

प्रसिद्ध विश्लेषक और क्षेत्रीय रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ अब्दुल बारी अतवान ने भी अपने एक लेख में सीरिया की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने सीरिया में सांप्रदायिक संघर्ष और ज़ायोनी हस्तक्षेप को संयुक्त राज्य अमेरिका और इस्राईल की विनाशकारी योजना का एक छोटा सा उदाहरण बताया और स्पष्ट किया कि यह घटनाएँ निश्चित रूप से अन्य अरब देशों में भी फैलेंगी। यह प्रक्रिया शुरू में अशांति से शुरू होगी और फिर सांप्रदायिक और जातीय युद्धों और देशों के विभाजन का कारण बनेगी।

उन्होंने आगे कहा कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब जौलानी ने ज़ायोनीवादियों की सभी उम्मीदों को पूरा किया है और दमिश्क को प्रतिरोध की धुरी से हटाकर ज़ायोनी शासन के लिए शांति और स्थिरता प्रदान करने के अपने वादों को भी पूरा किया है। लेकिन इन सभी उपायों के बावजूद, उन्हें अपमान या ज़ायोनी हमलों से नहीं बचाया जा सका, क्योंकि इस्राईल का रणनीतिक लक्ष्य सीरियाई शासन नहीं, बल्कि सीरिया की संरचना और पहचान को बदलना है।

अतवान ने कहा कि असद शासन के पतन की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद, ज़ायोनी शासन ने सीरिया के सैन्य ठिकानों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और हथियार डिपो को नष्ट करने के लिए 500 से ज़्यादा हमले किए। यह व्यवहार इस बात का प्रमाण है कि इस्राईल का लक्ष्य न केवल शासन को उखाड़ फेंकना है, बल्कि सीरियाई लोगों, उनके इतिहास और उनके राष्ट्रीय अस्तित्व को भी मिटा देना है, और यह मानसिकता आज दक्षिणी सीरिया और दमिश्क में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

उन्होंने लिखा कि दक्षिणी सीरिया में चल रही ज़ायोनी परियोजना के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में भी दोहराए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, जहाँ ज़ायोनी सरकार एक बार फिर जातीय और सांप्रदायिक मतभेदों को भड़काकर अपने लक्ष्य हासिल करना चाहती है।

अतवान ने अंत में लिखा कि अमेरिकी-ज़ायोनी योजना, सांप्रदायिक और कबायली प्रवृत्तियों का फ़ायदा उठाकर इस क्षेत्र में एक नया मध्य पूर्व बनाने की कोशिश है, और यह योजना सिर्फ़ सीरिया तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि मिस्र, सऊदी अरब, अल्जीरिया, तुर्की, लेबनान और इराक जैसे देश भी इस साजिश की चपेट में आएँगे।

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