4 जून 2025 - 18:43
दुआ ए अरफ़ा और इमाम सज्जाद 

मैं इन दो दुआओं की तुलना करता था; पहले मैं इमाम हुसैन की दुआ ए अरफ़ा पढ़ता था, फिर सहीफ़ा ए-सज्जादिया की दुआ। "मुझे अक्सर ऐसा महसूस हुआ कि हज़रत सज्जाद की दुआ, इमाम हुसैन की दुआ ए अरफ़ा की की व्याख्या है। वह पाठ है,  यह व्याख्या है। वह अहम पॉइंट है; यह उसकी तफ़सीर, दुआ ए अरफ़ा सच में एक अजीब दुआ है।

अरफ़ा के दिन की इमाम हुसैन (अ.स.) की दुआ शिया समुदाय में काफ़ी मशहूर है, लेकिन मासूम इमामों की दुआ में अरफ़ा के दिन के लिए दूसरी दुआएं भी बयान की गई हैं। इन दुआओं में से एक अरफ़ा की वह दुआ भी है जिसे इमाम सज्जाद (अ.स.) ने पढ़ा और इमाम बाक़िर (अ.स.) ने इमाम सादिक (अ.स.) की मौजूदगी में लिखा, और अब यह सहीफ़ा ए कामिला या सहीफ़ा ए सज्जादिया में दुआ नंबर 47 के रूप में मौजूद है। 

इमाम हुसैन (अ.स.) की दुआ ए अरफ़ा में बहुत ही नेक और बुलंद विषय हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इसमें सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला विषय खुदा शनासी है, जो लगभग आधी दुआ तक फैला हुआ है, जिसमें अल्लाह के सिफ़ात और आमाल, अहकामे इलाही, अल्लाह के नाम और  शआयरे इलाही ( अल्लाह की निशानियों) को बयान किया गया है।

उसी के साथ मानवशास्त्र, आखिरत के मसाएल, ऑन्टोलॉजी, और एस्केटोलॉजी समेत कई दूसरे विषय भी इसी के अंतर्गत बयान किए गए हैं। 

खुदा शनासी के बाद, मानवशास्त्र भी दुआ ए अरफ़ा में सबसे बड़ा हिस्सा रखता है, और मनुष्य के भौतिक पहलुओं और आध्यात्मिक आयामों की जांच, उसकी जरूरतों और विशेषताओं का वर्णन, साथ ही मनुष्य के बारे में अल्लाह की बारगाह मे इमाम की दुआ जैसे विषय, जिन्हें निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है: आध्यात्मिक ज़रूरतें, भौतिक ज़रूरतें और मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें।

सहीफ़ा ए सज्जादिया की सैंतालीसवीं दुआ का विषय मे खुद शनासी, आखिरत, मारेफत, मानवशास्त्र के साथ साथ मारेफते इमाम भी अहम विषय है।  इमाम सज्जाद (अ.स.) की दुआ ए अरफ़ा मे इमाम की मअरेफ़त और दुनिया के निज़ाम  में इमाम की अहमियत, इमाम की विशेषताओं और स्थिति का बयान किया गया है जो हर समय के लिए इमाम सज्जाद (अ.स.) की तरफ से सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक और शासन शिक्षा है। 

कई उलमा और विद्वानों ने अपने बयानों में इमाम सज्जाद (अ.स.) की दुआ ए अरफ़ा पर विशेष जोर दिया है और इमाम हुसैन (अ.स.) की दुआ ए अरफ़ा के साथ इसके संबंध को व्यक्त किया है। मिसाल के तौर पर, सुप्रीम लीडर ने इस दुआ के बारे में एक बयान में कहा कि मैं इन दो दुआओं की तुलना करता था; पहले मैं इमाम हुसैन की दुआ ए अरफ़ा पढ़ता था, फिर सहीफ़ा ए-सज्जादिया की दुआ। "मुझे अक्सर ऐसा महसूस हुआ कि हज़रत सज्जाद की दुआ, इमाम हुसैन की दुआ ए अरफ़ा की की व्याख्या है। वह पाठ है,  यह व्याख्या है। वह अहम पॉइंट है; यह उसकी तफ़सीर, दुआ ए अरफ़ा सच में एक अजीब दुआ है।

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