माहे मुबारके रमज़ान साल के सबसे मुबारक महीनों में से एक है और अल्लाह की इबादत का महीना है। इस महीने में अल्लाह की रहमत और मग़फ़ेरत के दरवाजे खुले रहते हैं।
इस महीने के शुरू से अंत तक मुसलमानों पर रोज़ा वाजिब है, जो रूह के गुनाहों से पाक होने का आधार बनता है, इसलिए मुसलमान इस महीने के दौरान इबादत, खैरात और नेक कामों के ज़रिये ज़्यादा से ज़्यादा सवाब हासिल करना चाहते हैं।
रमजान में शबे क़द्र उन रातों में से एक है जो एक हजार महीनों से बेहतर है, और इस रात, अल्लाह के हुक्म से फ़रिश्ते उतरते हैं और पूरे साल के सभी बन्दों की तक़दीर और भाग्य का निर्धारण करते हैं।
रमजान के महीने के दौरान अल्लाह की ज़ियाफ़त में शरीक होने की पहली शर्त तौबा है, और यह इंसान और अल्लाह के बीच गहरा रिश्ता बनाने का एक प्रयास है।
तौबा क़ुबूल होने के लिए तीन शर्तें पूरी होनी चाहिए, जैसा कि अल्लाह तआला ने सूरह अन-निसा की आयत 17 और 18 में कहा है: "हक़ीकत में, अल्लाह के पास तौबा केवल उन लोगों के लिए है जो ला इल्मी में बुरे काम करते हैं।" फिर वे जल्दी ही इस्तग़फ़ार और तौबा करते हैं। ये वे लोग हैं जिनकी तौबा अल्लाह क़ुबूल करता है, और अल्लाह हमेशा जानने वाला, और हिकमतों वाला है।
पहली शर्त यह है कि गुनाह जिहालत और नादानी में किया गया हो।
दूसरी शर्त यह है कि जल्दी तौबा करें और उसे मौत तक न टालें। तौबा तब तक क़ुबूल की जाती है जब तक कि मौत के आसार दिखाई न दें। और कौन जानता है कि कब मौत के आसार शुरू हो जाएं।
तीसरी शर्त है ईमान, अल्लाह काफिरों की तौबा क़ुबूल नहीं करता। लिहाज़ा तौबा के लिए ईमान बुनियादी शर्त है। सूरा अल-इसरा की आयत 19 के अनुसार,मोमिनों के लिए नेक कामों का एक मिस्दाक़ तौबा है।
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