निम्नलिखित लेख "क़यामत का दिन" विषय पर आधारित है। यह वह निश्चित वादा है जिसे अल्लाह ने किया है और इसके बारे में आयतों और हदीसों में विस्तार से बताया गया है। इस लेख में हम उस दिन की समीक्षा करेंगे, जिसे विभिन्न नामों से जाना जाता है और जिसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटेंगी।
क़यामत का वह दिन है जब सभी इंसानों को अल्लाह के हुक्म से उनके कामों का हिसाब-किताब करने के लिए खुदा के सामने इकट्ठा किया जाएगा: "तो अल्लाह तुम्हारे बीच क़यामत के दिन फैसला करेगा" (निसा/141)।
इंसान के कामों का हिसाब-किताब करने के लिए, न केवल उसके कर्म उसकी आंखों के सामने ज़ाहिर होंगे, बल्कि उसके कर्मों का लेखा-जोखा (नामा-ए-आमाल) भी उसे दिया जाएगा। जिसका नामा-ए-आमाल उसके बाएं हाथ में दिया जाएगा, वह बुरा इंसान होगा और जहन्नम में जाएगा। और जिसका नाम-ए-आमाल दाएं हाथ में दिया जाएगा, वह नेक इंसान होगा और जन्नत का हक़दार बनेगा।
क़यामत की सही तारीख़ किसी को मालूम नहीं है, जैसा कि अल्लाह ने अपने नबी से फरमाया: "लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछते हैं, कह दो कि इसका इल्म सिर्फ अल्लाह को है, और तुम्हें क्या पता? शायद क़यामत क़रीब ही हो।" (अहज़ाब/63)।
यानि, क़यामत और उसका वक़्त उन रहस्यों में से है, जिन्हें सिर्फ खुदा जानता है। यहां तक कि उसके पैग़ंबर और रसूल भी इस बारे में कुछ नहीं जानते।
हालांकि, क़यामत के आने का वक़्त मालूम नहीं, लेकिन इसकी कुछ निशानियां बताई गई हैं, जिनको यहां बयान किया जाएगा।
क़यामत की निशानियां
क़यामत से पहले कई हैरान कर देने वाली निशानियां होंगी, जो आसमान, ज़मीन, सूरज और पहाड़ों में दिखेंगी।
1. आसमान का फटना
आसमान बदलकर नया आमसान बन जाएगा। अल्लाह ने सूरह इब्राहीम की आयत 48 में कहा: "वह दिन जब ज़मीन (अल्लाह के हुक्म से) बदलकर दूसरी ज़मीन बन जाएगी और आसमान भी बदल जाएंगे, और सभी लोग अल्लाह के सामने पेश किये जाएंगे।" इस दिन ज़मीन और आसमान की संरचनाएं टूटकर बिखर जाएंगी।
जो आसमान पहले मज़बूत और सुरक्षित था: سَقْفاً مَحْفُوظا" (अंबिया/32), वह टूटकर बिखर जाएगा: " فَهِيَ يَوْمَئِذٍ واهِيَةٌ " (हाक़्क़ा/16)। और जो आसमान कई परतों में था: " سَبْعَ سَماواتٍ طِباقاً " (मुल्क/3), वह एक लिपटे हुए कागज जैसा हो जाएगा: " كَطَيِّ السِّجِل " (अंबिया/104)।
आसमान जो पहले ख़ूबसूरत और सजा हुआ था: " إِنَّا زَيَّنَّا السَّماءَ الدُّنْيا بِزينَةٍ الْكَواكِبِ (साफ़ात/6), उसकी रौशनी गायब हो जाएगी। आसमान जो पहले ख़ूबसूरत था, वह धुएं में बदल जाएगा: " يَوْمَ تَأْتِي السَّماءُ بِدُخانٍ مُبين " (दुख़ान/10)। और जो आसमान पानी और बारिश देता था, वह पिघलकर धातु जैसा हो जाएगा: " يَوْمَ تَكُونُ السَّماءُ كَالْمُهْل " (मआरिज/8)।
2. दुनिया में तब्दीली
दुनिया एक दूसरी नई दुनिया में बदल जाएगी। वह दुनिया, जो आराम और सुकून की जगह थी: " «أَ لَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ مِهاداً " (नबा/6),ज़बरदस्त ज़लज़ले के झटके लगेंगे: " إِذا زُلْزِلَتِ الْأَرْضُ زِلْزالَها " (ज़लज़ला/1)। वह दुनिया, जो पहले मुलायम और समतल थी: " هُوَ الَّذي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولاً " (मुल्क/15), हिलने लगेगी: " يَوْمَ تَرْجُفُ الْأَرْض (मज़म्मिल/14)।
वह ज़मीन, जो पहले चुप रहती थी और जिस पर किए गए अच्छे या बुरे कामों की आवाज़ नहीं आती थी, क़यामत के दिन वह अपनी ज़बान खोलकर अपनी आपबीती सुनाएगी: " يَوْمَئِذٍ تُحَدِّثُ أَخْبارَه (ज़लज़ला/4)।
3. सूरज, चाँद और सितारों का बुझ जाना
क़यामत के दिन चाँद की रौशनी चली जाएगी: " وَ خَسَفَ الْقَمَرُ " (क़ियामा/8)। सूरज और चाँद दोनों अपनी जगह से बाहर निकलकर एक-दूसरे के पास आ जाएंगे: " وَ جُمِعَ الشَّمْسُ وَ الْقَمَرُ " (क़ियामा/9)। सारे सितारे एक-दूसरे से बिखर जाएंगे: " وَ إِذَا الْكَواكِبُ انْتَثَرَتْ " (इन्फितार/2), और उनकी रौशनी अंधेरे में बदल जाएगी: " وَ إِذَا النُّجُومُ انْكَدَرَتْ " (तकीविर/2)।
4. पहाड़ों का रुई की तरह हो जाना
कयामत के
दिन ज़मीन पर ऐसा भयानक हाल होगा कि पहाड़ हिलने लगेंगे और अपनी जगह से उखड़
जाएंगे: وَ إِذَا الْجِبالُ سُيِّرَت»
"और जब पहाड़ चलाए जाएंगे।" (सूरा तकवीर/आयत 3)
पहाड़ों के
टकराने से वे पत्थरों में बदल जाएंगे, फिर पत्थर रेत बन जाएंगे
और अंत में रुई की तरह बिखर जाएंगे: كَالْعِهْنِ الْمَنْفُوشِ
"जैसे धुनकी हुई रूई" (सूरा कारेआ/आयत 5)
5. समुद्रों का आग में बदल जाना
कयामत के
दिन इतनी भीषण हलचल होगी कि समुद्रों में विस्फोट होगा और वे आग में तब्दील हो
जाएंगे:
"और जब समुद्रों को भड़का दिया जाएगा।" (सूरा
तकवीर/आयत 6)
وَ إِذَا الْبِحارُ سُجِّرَتْ
6. सूरे इसराफ़ील का फूंका जाना
क़यामत के दिन की एक बड़ी निशानी "सूर फूंका जाना" है। क़ुरआन की कई आयतों में सूर फूंके जाने का ज़िक्र किया गया है। इन आयतों से साफ़ होता है कि सूर दो बार फूंका जाएगा:
पहली बार दुनिया के ख़ात्मे के वक़्त, जब सारी मख़लूक़ (जैसे इंसान, जानवर और दूसरे जीव) मर जाएंगे। इसे "मौत का सूर" कहा जाता है। दूसरी बार क़यामत के दिन, जब सारी मख़लूक को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। इसे "ज़िंदगी का सूर" कहा जाता है।
«وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَصَعِقَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ ۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخْرَىٰ فَإِذَا هُمْ قِيَامٌ يَنْظُرُونَ»(زمر/68)
अल्लाह ने सूरह ज़ुमर की आयत 68 में फ़रमाया: "और जब सूर फूंका जाएगा, तो जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब मर जाएंगे, सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह चाहे। फिर जब दूसरी बार सूर फूंका जाएगा, तो सब लोग ज़िंदा होकर खड़े होंगे और देख रहे होंगे।"
क़यामत के दिन की घटनाएँ (क्रमानुसार)
अल्लाह के वादों और आख़िरत के सफर की मंज़िलें हर इंसान के लिए थोड़ी अलग हो सकती हैं, लेकिन आम तौर पर इन घटनाओं का क्रम इस तरह है:
उन लोगों के लिए जो इमाम महदी (अ.स.) के दौर को नहीं देख पाएंगे:
मौत कब्र और आलम-ए-बरज़ख़ बरज़खी जन्नत और जहन्नम पहला सूर – इसराफ़ील का पहला सूर, जिससे पूरी कायनात खत्म हो जाएगी। (क़यामत) दूसरा सूर - दूसरा सूर, जिससे सभी इंसान दोबारा ज़िंदा होंगे। (महशर) हिसाब-किताब – कर्मों का लेखा-जोखा। पुल-ए-सिरात – एक पुल, जिसे सभी को पार करना होगा। जन्नत या जहन्नम – आखिरी ठिकाना।
उन लोगों के लिए जो इमाम महदी (अ.स.) के दौर को देखेंगे और दुनिया के ख़ात्मे तक ज़िंदा रहेंगे:
इमाम महदी (अ.स.) का ज़हूर और उनके दौर की घटनाएँ। इमाम महदी (अ.स.) की शहादत। पिछले ज़माने के कुछ लोगों की वापसी (रज'अत)। क़यामत और महशर – दुनिया का ख़ात्मा और दोबारा ज़िंदा होना।
अमल का हिसाब-किताब
क़यामत के बाद अल्लाह तआला सभी इंसानों को इकट्ठा करेगा और उनके कर्मों (आमाल) का हिसाब-किताब करेगा। इस दौरान, ज़मीन बोलने लगेगी और जो कुछ उस पर हुआ है, उसे बयान करेगी। साथ ही, इंसान के जिस्म के हिस्से उसकी ज़ुबान, हाथ, पैर और स्किन भी उसके कर्मों की गवाही देंगे।
अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया:
وَقَالُوا لِجُلُودِهِمْ لِمَ شَهِدْتُمْ عَلَيْنَا ۖ قَالُوا أَنْطَقَنَا اللَّهُ الَّذِي أَنْطَقَ كُلَّ شَيْءٍ وَهُوَ خَلَقَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
"और वे अपने जिस्म की खाल से कहेंगे, 'तुमने हमारे खिलाफ़ गवाही क्यों दी?' वे जवाब देंगे, 'हमें उस अल्लाह ने बोलने की ताकत दी, जिसने हर चीज़ को बोलने की ताकत दी है। उसी ने पहली बार तुम्हें पैदा किया और तुम्हें उसी की तरफ लौटना है।'" (सूरह फ़ुस्सिलत, आयत 21)
पैग़ंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
لَا
تَزُولُ قَدَما عَبْدٍ يَوْمَ الْقِيامَةِ حَتَّى يُسْئَلَ عَنْ عُمْرِهِ فَيْمَا
اَفْنَاهُ وَ شَبَابِهِ فِيمَا أَبْلَاهُ وَ عَنْ مَالِهِ مِنْ اَيْنَ
اِكْتَسَبَهُ وَ فِيمَا اَنْفَقَهُ وَ عَنْ حُبِّنَا اَهْلَ الْبَيْتِ؛
**"क़यामत
के दिन कोई भी बंदा अपनी जगह से हिल नहीं पाएगा, जब
तक उससे चार सवालों का जवाब नहीं ले लिया जाएगा:
अपनी उम्र किस चीज़
में बिताई।
अपनी जवानी को कहाँ
खत्म किया।
अपना माल कहाँ से
कमाया और कहाँ खर्च किया।
अहलेबैत से मोहब्बत
के बारे में।
(अल-ख़ेसाल, जि.1, स.253)
इससे यह साफ हो जाता है कि क़यामत के दिन इंसान के हर छोटे-बड़े कर्म का हिसाब लिया जाएगा और इंसान के खुद के अंग उसके गवाह बनेंगे।
आमाल की किताब (नामा-ए-आमाल)
क़यामत के दिन हर इंसान को उसका नामा-ए-आमाल (कर्मों की किताब) उसके हाथ में दी जाएगी। यह किताब इतनी साफ़ और स्पषट होगी कि किसी भी तरह के इंकार या शक की कोई गुजाइश नहीं बचेगी।
यह किताब सामान्य कागज़ या किताब जैसी नहीं होगी, बल्कि इंसान के अच्छे-बुरे कर्म जिस्म की शक्ल में दिखाए जाएंगे। हर इंसान अपने कर्मों को साफ़-साफ़ देख सकेगा।
नामा-ए-आमाल की विशेषताएँ:
यह किताब इतनी विस्तृत और स्पष्ट होगी कि इंसान अपने भूले हुए कर्मों को भी याद कर लेगा। इसे सिर्फ़ इंसान खुद ही नहीं देखेगा, बल्कि मैदान-ए-महशर में मौजूद सभी लोग इसे देख सकेंगे। नेक लोगों के लिए यह किताब खुशी और संतोष का कारण बनेगी, जबकि बुरे कर्म करने वालों के लिए यह शर्मिंदगी और सज़ा का सबब होगी।
क़यामत के दिन, यह किताब इंसान के कर्मों का ऐसा सबूत होगी, जो न केवल उसकी यादें ताज़ा करेगी, बल्कि दूसरों को भी सच्चाई दिखाएगी।
पुले सेरात
क़ुरआन और हदीस के अनुसार, क़यामत के दिन हर इंसान को पुले सेरात से गुज़रना होगा। यह पुल बेहद बारीक और तेज़ है, और इसके नीचे जहन्नम की आग है।
नेक और बुरे कर्मों का प्रभाव:
जो लोग ईमानदार, नेक और सच्चे कर्म करने वाले हैं, वे इस पुल से तेज़ी और आसानी से गुज़र जाएंगे। लेकिन जो लोग गुनाहगार और बुरे कर्म करने वाले हैं, वे इस पुल से फिसल जाएंगे और जहन्नम में गिर जाएंगे।
पुले सेरात पार करने की रफ़्तार:
हदीसों के
मुताबिक़, इंसानों की इस पुल पर रफ़्तार
उनके ईमान, नीयत की सच्चाई और अच्छे कर्मों पर डिपेंड करेगी।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने इस बारे में फ़रमाया:
"कुछ लोग इस पुल से बिजली की चमक की तरह गुज़रेंगे, कुछ तेज़ दौड़ने वाले घोड़े की तरह, कुछ हाथ और घुटनों के सहारे, और कुछ ऐसे होंगे जो इस पुल से लटकते हुए गुज़रेंगे।
जहन्नम की आग कुछ को अपनी तरफ खींचेगी और कुछ को छोड़ देगी।" (अमाली-ए-सदूक, मजलिस 33)
पुले सेरात का पैग़ाम:
पुल-ए-सरात
इंसान के ईमान और कर्मों का इम्तिहान है। यह पुल सिखाता है कि दुनिया में किए गए
कर्म और नीयत ही आख़िरत की सफ़र को आसान या मुश्किल बनाते हैं।
जन्नत और जहन्नम
जन्नत और जहन्नम दोनों के अलग-अलग स्तर और दरवाज़े हैं, और हर इंसान अपने कर्मों के आधार पर इनमें प्रवेश करेगा।
जन्नत के बारे में:
इस्लामी रिवायतों के अनुसार, जन्नत के आठ दरवाज़े हैं। (बिहारूल अनवार, जि 8/स 121) لها سبعة ابواب
कुरआन में
जन्नत के स्तरों का सीधा उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन
यह बताया गया है कि जन्नत में सबसे ऊंचा और बेहतरीन दर्जा जन्नत-उल-फ़िरदौस है:
إِنَّ
الَّذينَ آمَنُوا وَ عَمِلُوا الصَّالِحاتِ كانَتْ لَهُمْ جَنَّاتُ الْفِرْدَوْسِ
نُزُلاً
"जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म किए, उनके लिए जन्नत-उल-फ़िरदौस में ठिकाना होगा।" (सूरा कहफ/आयत 107)
जहन्नम के बारे में:
कुरआन में यह स्पष्ट किया गया है कि जहन्नम के सात दरवाज़े हैं:
"जहन्नम के लिए सात दरवाज़े हैं।" (सूरा
हिज्र/आयत 44)
لها سبعة ابواب
हर दरवाज़ा
अलग-अलग तरह के गुनाहगारों के लिए बनाया गया है।
नतीजा:
जन्नत और जहन्नम दोनों इंसान के कर्मों के हिसाब से हैं। जन्नत नेकी और ईमान का इनाम है, जबकि जहन्नम गुनाहों की सज़ा। यह हमें सिखाता है कि दुनिया में किए गए कर्म ही आख़िरत में हमारी जगह तय करेंगे।
जन्नत:
क़ुरआन की
आयतों से यह स्पष्ट होता है कि जन्नत अल्लाह का वादा है, और यह उन लोगों को मिलेगी जो परहेज़गार (तक़वा रखने वाले), ईमान वाले और अल्लाह और उसके रसूल (सअ) के हुक्म को
पूरी तरह मानने वाले हैं।
إِنَّ الَّذینَ آمَنُوا وَ عَمِلُوا الصَّالِحاتِ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْری مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهارُ
"जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए, उनके लिए ऐसे बाग़ात (जन्नत) हैं जिनके नीचे से नहरें बहती हैं।" (सूरा बुरूज/आयत 11)
जन्नत की विशेषताएँ:
जन्नत में शांति और सुख है। यह नेक और ईमानदार इंसानों का ठिकाना है।
जहन्नम (नरक):
जहन्नम की
आग का असर और सज़ा उन लोगों के गुनाहों के आधार पर अलग-अलग होगी जो इसमें दाखिल
होंगे।
"मुनाफ़िक (दोगले) लोग जहन्नम के सबसे निचले स्तर में होंगे।" (सूरा निसा/आयत 145)
जहन्नम की विशेषताएँ:
यह गुनाहगारों के लिए एक चेतावनी और सज़ा का स्थान है। सबसे कठोर सज़ा मुनाफ़िकों के लिए है।
नतीजा:
जन्नत और
जहन्नम इंसान के कर्मों और नीयत का नतीजा हैं। जन्नत अल्लाह के आज्ञाकारी और नेक
बंदों के लिए इनाम है, जबकि जहन्नम गुनाहगारों
और नाफरमान लोगों के लिए सज़ा का जगह।
