22 अक्तूबर 2025 - 15:06
कर्ज अदा करने मे देरी करना

"किसी समर्थ (अमीर) मुसलमान द्वारा क़र्ज़ की अदायगी में देरी करना अपने मुसलमान भाई पर ज़ुल्म है।

:امام علی علیه السلام 

إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللّهِ صلى‌الله عليه وآله يَقُولُ: مَطْلُ الْمُسْلِمِ الْمُوسِرِ ظُلْمٌ لِلْمُسْلِمِ، وَ مَنْ لَمْ يَكُنْ لَهُ عَقَارٌ وَلَا دَارٌ وَلَا مَالٌ، فَلَا سَبِيلَ

عَلَيْهِ

التهذيب ج۶ ص۲۲۵

अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अ.स.

मैंने सुना कि अल्लाह के पैग़ंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमाया:
"किसी समर्थ (अमीर) मुसलमान द्वारा क़र्ज़ की अदायगी में देरी करना अपने मुसलमान भाई पर ज़ुल्म है।
और जिसके पास न खेत है, न घर है, न माल-दौलत — उस पर किसी का अधिकार या दबाव नहीं है।"

 

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