17 अक्तूबर 2025 - 14:35
यमन सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ ज़ायोनी हमलों मे शहीद

यह जंग इज़्ज़त, पवित्र स्थानों की रक्षा और मज़लूमों की मदद के लिए है। घेराबंदी और मुश्किल हालात के बावजूद, यमन के लोगों ने अपनी जान और माल फ़िलिस्तीन प्रतिरोध) के लिए क़ुर्बान कर दिए।

यमन सेना के प्रवक्ता ब्रिगेडियर याह्या सरीअ ने एक बयान जारी कर यमन की सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ की शहादत की पुष्टि की है।  यमन सेना के बयान में कहा गया है: “अल्लाह पर ईमान और जिहाद की अहम ज़िम्मेदारी के तहत, यमन की मुस्लिम जनता ने ग़ज़्ज़ा में अपने भाईयों की मदद के लिए इस पवित्र जंग में हिस्सा लिया। यह जंग इज़्ज़त, पवित्र स्थानों की रक्षा और मज़लूमों की मदद के लिए है। घेराबंदी और मुश्किल हालात के बावजूद, यमन के लोगों ने अपनी जान और माल फ़िलिस्तीन प्रतिरोध के लिए क़ुर्बान कर दिए।

सरीअ ने कहा कि हमारा रक्षा मंत्रालय, जनरल स्टाफ़ और थल सेना, नौसेना और हवाई फौज सभी यूनिटें — इस जंग की पहली लाइन में हैं।
पिछले दो सालों में कुल 758 सैन्य कार्रवाइयाँ की गईं। यमन की नौसेना ने भी 346 ऑपरेशन किए जिनमें लाल सागर, बाबुल मंदब, अदन की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर में 228 से अधिक ज़ायोनी जहाज़ों को निशाना बनाया गया।

बयान में यह भी कहा गया कि यमन की एयर डिफेंस ने 22 अमेरिकी जासूसी ड्रोन MQ-9 गिराए और दुश्मन के हवाई हमलों को नाकाम बनाया। यह सब अल्लाह की मदद और मुजाहिदीन की कुर्बानियों की वजह से मुमकिन हुआ, जो अमेरिका, इस्राईल और उनके साथियों की ज़्यादती के खिलाफ डटे रहे।

“इस पवित्र जंग के दौरान यमन के लोगों ने दुश्मन के बेरहम हमलों और आर्थिक ढाँचे की तबाही के बावजूद सब्र और मज़बूती से मुकाबला किया। इस रास्ते में कई सैनिक, आम नागरिक, कमांडर, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और कई मंत्री भी शहीद हुए। 

ब्रिगेडियर सरीअ ने कहा कि आज यमन की सेना फ़ख्र के साथ यह बताती है कि जिहादी कमांडर ब्रिगेडियर मोहम्मद अब्दुल करीम अल-ग़ुमारी, उनके 13 साल के बेटे हुसैन और उनके कई साथियों ने ज़ायोनी हमलों में शहादत पाई और ‘राह-ए-क़ुद्स’ के शहीदों में शामिल हो गए।”

उन्होंने कहा कि यह रास्ता शहादत से रुकता नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ इसे जारी रखेंगी। शहीदों का खून मुजाहिदीन के लिए रोशनी है, और यह कारवां तब तक चलता रहेगा जब तक क़ुद्स की आज़ादी और अल्लाह का वादा पूरा नहीं हो जाता।”

“हम, यमन की सशस्त्र सेनाएँ, शहीदों के खून का हक़ अदा करने का वादा करते हैं और उनके रास्ते को जारी रखेंगे, ताकि पूरी उम्मत-ए-इस्लामी को अंतिम जीत हासिल हो।

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