पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) के जन्मोत्सव पर अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली की इमारत में आयोजित समारोह में आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने हफ़्ता-ए-वहदत और इन दोनों महान हस्तियों के जन्म की बधाई देते हुए, असेंबली में अपनी ज़िम्मेदारी को बढ़ाने पर इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर का शुक्रिया अदा किया। आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि पूरी दुनिया के शिया मुसलमानों की खैर खबर रखना एक बेहद अहम और संवेदनशील ज़िम्मेदारी है, जिसे अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली के हवाले किया गया है।
अहलेबैत वर्ल्ड असेंबली के महासचिव ने कहा कि अख़लाक़ कभी भी समझौते का नाम नहीं है। कुछ लोग यह समझते हैं कि नैतिकता और अख़लाक़ का मतलब दुश्मन के सामने झुकना और सही वक़्त पर सही रुख़ न अपनाना है, जबकि यह सोच ग़लत है।
आयतुल्लाह रमज़ानी ने सूरए क़लम की चौथी आयत का हवाला दिया, जिसमें पैग़म्बर (स.अ.) की नैतिकता को "अज़ीम" बताया गया है। उन्होंने कहा कि इंसानी दृष्टि में महानता और इलाही दृष्टि में महानता अलग-अलग हैं। पैग़म्बर (स.) ऐसी असीमित नैतिकता के दर्जे पर पहुँचे थे, जिसकी कल्पना भी हमारे लिए मुमकिन नहीं। इस्लाम के फैलाव का असली कारण हज़रत अली (अ.स.) की तलवार या हज़रत ख़दीजा (स.अ.) का धन नहीं था, बल्कि पैग़म्बर (स.अ.) का अख़लाक़ और नैतिकता थी। क्योंकि मक्का के दौर में कोई जंग नहीं हुई थी और जिहाद का हुक्म मदीना में आया है।
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