2 जुलाई 2025 - 03:43
इमाम हुसैन का मिशन सिर्फ यज़ीद नहीं बल्कि हर शैतानी सिस्टम के खिलाफ था 

58 हिजरी में मीना में इमाम हुसैन (अ.स.) द्वारा दिए गए उपदेश को क़याम का फिक्री और वैचारिक आधार माना और कहा कि यह उपदेश इस बात का सुबूत है कि इमाम (अ.स.) ने अपने मिशन को कदम-दर-कदम आगे बढ़ाया। इस उपदेश में इमाम (अ.स.) ने अम्र बिल मारुफ़ और बुराई से रोकने  नहि अज़ मुनकर के महत्व और धार्मिक विद्वानों की जिम्मेदारियों को समझाया। इस अवसर पर 200 सहाबी और 800 ताबेईन मौजूद थे, जिन्हें इमाम (अ.स.) ने यह संदेश लिखने और अपने क्षेत्रों में पहुंचाने की ताकीद।

हुज्जतुल इस्लाम गुलाम हैदर शरीफी ने हुसैनियाह बलतिस्तानिया  क़ुम में मुहर्रम-उल-हराम की मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का क़याम सिर्फ़ यज़ीद तक ​​सीमित नहीं था बल्कि बनी उमय्या की पूरी दमनकारी और अत्याचारी व्यवस्था के ख़िलाफ़ था। अगर यज़ीद की जगह कोई और सत्ता में होता तो इमाम (अ.स.) तब भी उसी तरह सत्य और न्याय की स्थापना के लिए उठ खड़े होते।

उन्होंने इस धारणा का खंडन किया कि इमाम हुसैन का आंदोलन अचानक शुरू हुआ। इमाम (अ.स.) पहले से ही हालात पर नज़र रखे हुए थे और क़याम के लिए उपयुक्त अवसर की तलाश में थे। जब 61 हिजरी में हालात अनुकूल हुए तो उन्होंने मदीना छोड़ दिया और अपने अहलुल बैत (अ.स.) के साथ महान बलिदान के मार्ग पर चल पड़े।

हुज्जतुल इस्लाम शरीफी ने 58 हिजरी में मीना में इमाम हुसैन (अ.स.) द्वारा दिए गए उपदेश को क़याम का फिक्री और वैचारिक आधार माना और कहा कि यह उपदेश इस बात का सुबूत है कि इमाम (अ.स.) ने अपने मिशन को कदम-दर-कदम आगे बढ़ाया। इस उपदेश में इमाम (अ.स.) ने अम्र बिल मारुफ़ और बुराई से रोकने  नहि अज़ मुनकर के महत्व और धार्मिक विद्वानों की जिम्मेदारियों को समझाया। इतिहास के अनुसार, इस अवसर पर 200 सहाबी और 800 ताबेईन मौजूद थे, जिन्हें इमाम (अ.स.) ने यह संदेश लिखने और अपने क्षेत्रों में पहुंचाने की ताकीद।

उन्होंने  कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने उपदेश में मुआविया को अत्याचारी घोषित करके बनी उमय्या की असली हकीकत को उजागर किया। उन्होंने जुल्म और जबरदस्ती की व्यवस्था के खिलाफ साहस और बहादुरी के साथ आवाज उठाई और सच्चाई के लोगों को जगाया। हुज्जतुल इस्लाम हैदर शरीफी ने अपने खिताब में आज के हालात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज भी इमाम हुसैन (अ.स.) के अनुयायी दुनिया के हर कोने में यजीदी, अमेरिका और इस्राईल जैसी अहंकारी ताकतों के खिलाफ खड़े हैं। उन्होंने इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सय्यद अली ख़ामेनेई को इमाम हुसैन (अ.स.) के मकतब का सच्चा सिपाही बताते हुए कहा कि वह इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़िंदगी से सीख लेते हुए ट्रम्प जैसे दुष्टों की आँखों में आँखें डालकर बात करते हैं।

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