22 मार्च 2025 - 17:34
शबे क़द्र कौन सी रात है आयतुल्लाह बहजत का जवाब 

माहे मुबारक की 19वीं, 21वीं और 23वीं रातों में से कौन सी रात को उलमा और बुज़ुर्गाने दीन फ़ैसले और तकदीर की रात मानते हैं, जिसमें इंसान की किस्मत और तकदीर का फैसला होता है?

माहे मुबारके रमज़ान की लैलतुल कद्र की दो रातें बीत चुकी हैं, और सिर्फ तीसरी रात, मतलब तेईसवीं रात ही शेष है।

इन रातों को बेदार रहकर इबादत करने वालों के मन में यह सवाल उठता है कि माहे मुबारक की 19वीं, 21वीं और 23वीं रातों में से कौन सी रात को उलमा और बुज़ुर्गाने दीन फ़ैसले और तकदीर की रात मानते हैं, जिसमें इंसान की किस्मत और तकदीर का फैसला होता है?

आयतुल्लाह मओहम्मद तकी बहजत फोमिनी ने जवानी बल्कि बालिग़ होने से पहले ही खुद को इरफान, अध्यात्म और रुहानियत के लिए वक्फ  कर दिया था और नजफ़ के एक विख्यात धर्मगुरु और उस्तादे अख़लाक़ आयतुल्लाह सय्यद अली काजी के शागिर्द बन गए थे।

 आयतुल्लाह बहजत ने अपनी किताब "बहजत के महजर में" के तीसरी जिल्द में कहा है कि कई बुज़ुर्ग उलमा माहे मुबारक रमजान की रातों में जागते हुए नमाज़ अदा करते थे, हालांकि यह हमारे लिए लगभग यह बात तय है कि रमजान की बाईसवीं रात  यानी शबे तेईस ही "शबे क़द्र" है।

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