“सलवात” का मतलब है — ध्यान देना, महत्व देना, दुआ करना, प्रशंसा करना, पवित्रता, रहमत और नेमत।
नमाज़ के तशह्हुद में “सलवात” यानी “اللهم صل علی محمد و آل محمد” पढ़ना वाजिब है।
क़ुरआन के सूरह ए अहज़ाब की आयत 56 के अनुसार:
“إِنَّ اللّٰهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا”
(बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते इस पैग़म्बर पर सलाम भेजते हैं। ऐ ईमान वालो! तुम भी उन पर सलवात भेजो और पूरे आदर और सम्मान के साथ सलाम करो तथा उनके हुक्म के सामने सर झुका दो।)
“सलवात बर मुहम्मद व आले-मुहम्मद” का मक़सद (जैसा कि “صلّوا عليه وسلّموا تسليماً” से समझ आता है) यह है कि:
पहला: पूरे दिल से हज़रत मुहम्मद (स.अ.) और उनके अहले बैत (मासूम इमामों) की तारीफ करो, उन्हें अहमियत दो और उन पर ध्यान केंद्रित करो।
दूसरा: अल्लाह से इन महान हस्तियों के लिए रहमत और बरकत की दुआ करो।
तीसरा: इस आयत के आदेश “سلّموا تسليماً” के अनुसार, उनके हुक्म के सामने पूरी तरह सर झुका दो, और बिना किसी सवाल या विरोध के उनकी राह पर चलने के लिए तैयार रहो।
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