इस्राईल और अमेरिकी खुफिया एजेंसी दुनियाभर में मुस्लिम स्कॉलर्स और वैज्ञानिकों की हत्या में कुख्यात रही है। गज़्ज़ा जनसंहार में भी अमेरिकी और ज़ायोनी सेना ने स्कॉलर्स और बुद्धिजीवी वर्ग को विशेषरूप से निशाना बनाया है।
अक्टूबर 2023 से शुरू गज़्ज़ा जनसंहार के दौरान इस्राईली सेना ने संगठित तरीके से गज़्ज़ा के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और शिक्षकों को निशाना बनाया है।
यह एक योजनाबद्ध नीति है, जिसका उद्देश्य फ़िलिस्तीनी समाज को उसकी बौद्धिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक ताक़त से खाली करना है।
गज़्ज़ा सरकार के सूचना कार्यालय के मुताबिक़, अब तक 193 से ज़्यादा वैज्ञानिक, शोधकर्ता और प्रोफेसर, और 830 से ज़्यादा शिक्षक और शिक्षा-सेवक इस्राईली हमलों में शहीद हो चुके हैं। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इन कार्रवाइयों को “युद्ध अपराध” बताया है।
गज़्ज़ा सरकार के सूचना प्रमुख इस्माईल सवाबता ने कहा कि यह नीति डर और दहशत फैलाने के लिए है, ताकि गज़्ज़ा के बुद्धिजीवियों को देश छोड़ने पर मजबूर किया जा सके और “ब्रेन ड्रेन” के ज़रिए इस क्षेत्र की शैक्षिक और शोध क्षमता को आने वाले सालों तक कमज़ोर किया जा सके।
इसका एक और मकसद फ़िलिस्तीन की राष्ट्रीय पहचान को मिटाना और भविष्य में किसी भी पुनर्निर्माण या विकास योजना को रोकना है।
शहीद हुए प्रमुख शिक्षकों और वैज्ञानिकों में भौतिक विज्ञानी और गज़्ज़ा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति, सुफ़यान तय्ये भी शामिल है जो दिसंबर 2023 में परिवार सहित शहीद हुए।
इसी तरह हड्डी रोग विशेषज्ञ और प्रोफेसर अदनान अल-बरश, परिवार समेत शहीद हुए इस्लामिक यूनिवर्सिटी के नर्सिंग संकाय के प्रमुख नासिर अबू अल-नूर और नईम बारूद, और -क़ुद्स यूनिवर्सिटी के निदेशक जिहाद अल-मिस्री भी शामिल हैं इन के अलावा कई अन्य जाने-माने प्रोफेसर और शोधकर्ता भी इस्राईली हवाई हमलों और सीधी टारगेट किलिंग में शहीद हुए हैं।
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