अमीरुल मोमेनीन ने हुकूमत क़ुबूल करने के लम्हे से मेहराबे इबादत में सर पर तलवार लगने तक एक दिन और एक लम्हा ऐसा नहीं गुज़ारा जिसमें आप उस हक़ और हक़ीक़त का मुतालबा करने से पीछे हटे हों जिसके लिए इस्लाम आया। न कोई रियायत, न तकल्लुफ़, न लेहाज़, न ख़ौफ़, न कमज़ोरी कुछ भी उनके आड़े नहीं आया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
28 जुलाई 2007
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