निश्चित रूप से राष्ट्रपति अर्दोगान को यह कथन बहुत अच्छी तरह से याद होगा लेकिन वह " ओटोमन " या उस्मानी हैं इस लिए इस कथन के पालन से इन्कार कर दिया। यही नहीं उन्होंने अपने नये घटक, विलादमीर पुतीन की बात भी नहीं मानी जिन्होंने फोन करके उनसे कहा था कि सीरिया के पूर्वोत्तरी भाग पर हमले से पहले ठंडे दिमाग से सोच विचार कर लें।
कुर्दों की समस्या एक ही है चाहे वह उत्तरी इराक़ के हों या उत्तरी सीरिया के, वह हमेशा अपने अरब घटकों के दुश्मनों विशेषकर अमरीकियों और इस्राईलियों से हाथ मिलाते हैं। उन्हें अपनी राष्ट्रीयता याद नहीं रहती मगर जब धोखेबाज़ घटक अमरीका उनकी पीठ में छुरा घोंपता है तो उन्हें अपने देश की याद आती है।
बाद तुर्की ने पहले भी कुर्दों पर धावा बोलने की तैयारी की थी। कुर्दों को अपने देश और अपनी सरकार की याद आयी थी और सीरिया और रूस से मदद की गुहार करने लगे थे।

सीरिया की सरकार ने कुर्दों की गुहार और रुख का स्वागत किया था और तुर्की के हमले के मुक़ाबले में उनकी मदद व समर्थन का वादा किया लेकिन कुर्दों ने सीरिया की केन्द्र सरकार के साथ किये गये हर समझौते को तोड़ दिया और अमरीका की गोद में बैठ गये। इन कुर्दों ने अमरीका के साथ मिल कर सीरियाई सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा लेकिन अब जब उन्हें ज़रूरत पड़ती है तो सीरियाई बन जाते हैं जिनकी मदद करना सीरिया की सरकार का कर्तव्य होता है और जब अमरीका के आशीर्वाद का इशारा मिलता है तो कुर्द बन जाते हैं।
राष्ट्रपति अर्दोगान ने खतरनाक खेल शुरु किया है विशेषकर इस लिए भी कि उन्हें अपने इस क़दम के लिए रूस और ईरान का समर्थन नहीं प्राप्त है बल्कि यह दोनों तो इस हमले का विरोध कर रहे हैं। हमें यह महसूस होता है कि इस खतरनाक राह के अंत में तुर्की को ही नुक़सान उठाना पड़ेगा और इस से अर्दोगान को भी डरना चाहिए।
हम इस लिए यह कह रहे हैं क्योंकि अर्दोगान और सद्दाम में बहुत सी बातें मिलती जुलती हैं। सद्दाम एक बेहद महत्वकांक्षी नेता थे और उनकी इस महत्वकांक्षा ने उन्हें इराक़ के इतिहास का क्रूर तानाशाह बना दिया था। अमरीका ने सद्दाम की महत्वकांक्षा और पूरे इलाक़े पर राज करने के सपने को पंख देते हुए पहले ईरान पर हमला करवाया और जब वर्षों के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अब सद्दाम को निचोड़ा जा चुका है और अमरीका के किसी काम के नहीं है तो फिर कुवैत पर हमला करवा दिया और इसमें उस समय बगदाद में मौजूद अमरीकी राजदूत ने मुख्य भूमिका निभाई। कुवैत में बिछाए गये अमरीकी जाल में सद्दाम फंस गये और फिर उसके बाद जो कुछ हुआ उससे दुनिया अवगत है।

तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान को भी बहुत पहले से सद्दाम की तरह महत्वकांक्षी कहा जा रहा है। उनके राजनीतिक सफर और " ओटोमन साम्राज्य" की वापसी के लिए उनकी कोशिशों में अर्दोगान की यह छवि बहुत अच्छी तरह से नज़र आती है। इलाक़े पर राज करने और इलाक़े की सब से बड़ी शक्ति बनने की सद्दाम वाली इच्छा, अर्दोगान के मन में भी बहुत पहले से जाग चुकी है। इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने सीरिया के खिलाफ, अमरीका, इस्राईल और सऊदी अरब सहित उनके क्षेत्रीय घटकों से हाथ मिलाया था लेकिन जब, रूस, सीरिया, ईरान और उसके घटकों ने इस साज़िश को नाकाम बना दिया तो भी अर्दोगान हार मानने पर तैयार नहीं हुए, अमरीका का साथ मिला तो हिम्मत बढ़ी और रूस का युद्धक विमान मार गिराया, मगर अमरीका ने साथ नहीं दिया तो रूस के सामने हाथ जोड़ दिये और माफी मांग ली और फिर उसे खुश करने के लिए रूस का एस़-400 एन्टी मिसाइल सिस्टम खरीद लिया मगर इससे अमरीका नाराज़ हो गया और उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश की मगर अब अर्दोगान की मजबूरी रही हो या अमरीका से गुस्सा, उन्होंने रूस से एस-400 खरीद लिया और बहुत से टीककारों के अनुसार इसी के बाद अमरीका ने उनके लिए उत्तरी सीरिया में जाल बिछाने का फैसला कर लिया। इस इलाक़े में कुर्द विद्रोही रहते हैं जिन्हें सबक़ सिखाकर तुर्की में राष्ट्रीय नायक और इलाक़े में ताकतवर नेता बनने का सपना अर्दोगान बहुत पहले से देखते आए हैं। अमरीका ने इस इलाक़े में तैनात अपने सैनिक वापस बुलाकर अर्दोगान के लिए जाल फैला दिया और उस पर तुर्की के घोर विरोधी कुर्दों का दाना डाल दिया, अर्दोगान तेज़ी से जाल की तरफ बढ़ रहे हैं, अंजाम क्या होगा?