क़ौम के लिए दर्दमंद उलमा का वुजूद हमेशा ही रहमत रहा है और इस्लाम दुश्मन ताकतों की हमेशा यही कोशिश रही है कि ऐसे उलमा से क़ौम को दूर रखें। इसी क्रम का एक नमूना तब सामने आया जब क़ौम को उलमा से दूर करने और उनके खिलाफ महोल बनाने के लिए दुश्मन ने नई अफवाहों का बाजार गरम किया।
सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हो रही है जिसमें दावा किया गया है कि एक मौलाना “शेख इमामी अल-हादी” असल में यहूदी जासूस "शमऊन दिरावी" था और 15 साल तक ईरान के अलग अलग धार्मिक संस्थानों में घुसपैठ करता रहा।
यह दावा पूरी तरह से मनगढ़ंत, झूठा और ख़तरनाक है। न कोई प्रमाणित रिपोर्ट, न ईरान की सरकार की पुष्टि, न किसी भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ज़िक्र, और न ही किसी विश्वसनीय धार्मिक संस्था की से इस बारे में कोई जानकारी। यह सिर्फ़ एक झूठी कहानी है जिसे जानबूझकर फैलाया गया है।
एआई के कमाल से बनाई गई एक फोटो, एक स्क्रिप्टेड शूट या संदर्भ से काटा गया दृश्य है, जिसे भावनाएं भड़काने के लिए वायरल किया जा रहा है।
सोचिए! एक मौलाना की बिना जांच के, सिर्फ़ एक तस्वीर देखकर उसकी पूरी शख्सियत पर सवाल उठाना क्या यह इंसाफ़ है? क्या यह उलमा की तौहीन नहीं है?
यह सिर्फ़ एक तस्वीर नहीं है बल्कि यह एक गहरी साज़िश है! हमारे बीच उलमा, मोअल्लिम, रहनुमा और मज़हबी शख्सियतों को बदनाम करने की एक सोची समझी चाल है ताकि लोगों का एतबार टूटे।
संदेश उन लोगों के लिए है जो बिना सोचे समझे शेयर कर रहे हैं, हर पोस्ट को शेयर करने से पहले सोचिए! कहीं आप किसी साज़िश का मोहरा तो नहीं बन रहे? कहीं आप अपने ही मज़हब की तौहीन में हिस्सेदार तो नहीं बन रहे?
जरूरत है कि ऐसी अफ़वाहों और फेक न्यूज़ का डटकर मुकाबला किया जाए। इसे शेयर न करें, बल्कि लोगों को सच बताएं। क़ौम को खुद अपने उलमा की इज़्ज़त और हैसियत की हिफ़ाज़त करना होगी।
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