30 मार्च 2024 - 09:42
इमाम अली अ.स. ग़ैर मुस्लिम विद्वानों की निगाह में

आज के इस दौर में जब चारों ओर नफ़रत, हिंसा और एक दूसरे को दबाने और कुचलने की होड़ लगी है ऐसे हालात में ज़रूरी है कि हम सब उस अली (अ.स.) के दिल की आवाज़ को सुनें, समझें और उस पर अमल करें।

इमाम अली अ.स. की शख़्सियत इतिहास की ऐसी शख़्सियत हैं जिनके बारे में बड़े बड़े उलमा और विद्वानों ने अनमोल बातें कही हैं, यहां तक वह लोग जो आपको इमाम और आपकी इमामत को भी नहीं मानते उन्होंने भी आपको इतिहास की बे मिसाल शख़्सियत बताया है।

इस लेख में हम ऐसे ही कुछ ग़ैर मुस्लिम विद्वानों का इमाम अली अ.स. के बारे में पेश कर रहे हैं।

मैडम डायलफ़ावा

फ़्रांस की इस मशहूर ईसाई पर्यटक का कहना है कि शिया फ़िर्क़ा इमाम अली अ.स. का बेहद सम्मान करता है और उनका ऐसा करना बिल्कुल उचित है क्योंकि आप इस्लाम की राह में क़ुर्बानी देने के अलावा शिक्षा, संस्कार और अदालत को लेकर भी काफ़ी गंभीर थे, और आपने अपने बाद पाक नस्ल भी उम्मत के हवाले की, आप इस्लाम को बाक़ी रखने की कोशिश में बेरहमी से शहीद कर दिए गए, इमाम अली अ.स. की वह शख़्सियत थी जिन्होंने उन बुतों जिनको अल्लाह का मददगार समझा जा रहा था उन्हें तोड़ा, आपकी तबलीग़ में सबसे अहम पहलू तौहीद था, आप वह शख़्सियत थे जिनका सारे मुसलमानों के लिए एक जैसा रवैया था, उसके बाद वह ख़ुद से कहती हैं ऐ मेरी आंखों पैग़म्बर स.अ. की औलादें जिनको बहुत मज़लूमी से शहीद कर दिया गया उन पर चीख़ मार कर रो।

जनरल स्परपेस साइक्स

ब्रिटेन के इस मशहूर विद्वान का कहना है कि इमाम अली अ.स. सभी ख़ुल्फ़ा के बीच सबसे शरीफ़, नर्म दिल और ग़रीबों का ख़्याल रखने वाले थे, आपकी अमानतदारी और अदालत की गंभीरता ने उन अरबवासियों जिन्होंने बड़े बड़े बादशाहों के साम्राज्य को बर्बाद कर दिया था उन सबको परेशान और दुखी कर रखा था, लेकिन आपकी सच्चाई, नर्मी, इबादत, नैतिकता और दूसरे बहुत से नेक सिफ़ात ने आपको इस क़ाबिल बनाया था कि आपकी तारीफ़ की जाए।

जोहनी

जर्मन का यह मशहूर शायर इमाम अली अ.स. के बारे में अपने विचार इस तरह बयान करता है कि इमाम अली अ.स. से मोहब्बत करने और उसने इश्क़ करने के अलावा कोई चारा नहीं है, क्योंकि वह एक नेक और शरीफ़ इंसान थे, उनका ज़मीर पाक और मेहरबान था, उनका दिल को लोगों की मदद किए बिना सुकून नहीं मिलता था, उनकी बहादुरी शेर से भी ज़्यादा थी लेकिन उनकी बहादुरी में भी दया, नर्मी और मेहरबानी पाई जाती थी।

स्टॉनिस्लास

फ़्रांस का यह मशहूर प्रोफ़ेसर लिखता है कि माविया का रवैया बहुत सारी दिशाओं से इस्लाम का विरोधी था, जैसाकि वह पैग़म्बर स.अ. के बाद सबसे ज़्यादा बहादुर, सबसे बड़े मुत्तक़ी और आलिम इमाम अली अ.स. से जंग कर बैठा।

जार्ज ज़ैदान

अरब के इस ईसाई आलिम ने लिखा कि माविया और उसके समर्थकों ने अपने निजी फ़ायदों के लिए हर अपराध करते थे लेकिन इमाम अली अ.स. और उनके समर्थकों ने कभी सीधे रास्ते और हक़ व शराफ़त की राह को नहीं छोड़ा।

इसी तरह इन्हीं का यह मशहूर जुमला भी मौजूद है कि अगर मैं यह कहूं कि हज़रत ईसा अ.स. इमाम अली अ.स. से अफ़ज़ल और बेहतर हैं तो मेरी अक़्ल इस बात को मानने को तैयार नहीं, और अगर इमाम अली अ.स. को हज़रत ईसा अ.स. से अफ़ज़ल कहूं तो मेरा दीन इस बात की अनुमति नहीं देता।

बैरन कार्डिफ़

फ़्रांस के इस मशहूर का कहना है कि इमाम अली अ.स. न केवल ख़ुद हालात के धारे में नहीं बहे बल्कि हालात के धारे को भी मोड़ दिया, उनके कामों को देख कर उनकी सोंच और उनके विचारों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जंग के मैदान में पहलवान थे लेकिन दिल नर्मी और मोहब्बत से भरा रहता था, दुनिया की किसी भी चीज़ की कोई लालाच उनकी ज़िंदगी में नहीं दिखाई देती, हक़ीक़त में उन्होंने अपनी जान को इस्लाम पर क़ुर्बान कर दिया, उनके पूरे वुजूद को ख़ुदा के ख़ौफ़ ने घेर रखा था।

जार्ज जुर्दाक़

अरब के यह मशहूर लेखक लिखते हैं कि इमाम अली अ.स. मिंबर पर खड़े हो कर पूरे यक़ीन के साथ अदालत और न्याय के विषय पर तक़रीर करते थे, वह बहुत अक़्लमंद और चीज़ों को बहुत जल्द समझ जाने वाले थे, लोगों के दिलों की बातें तक वह समझ लेते थे कौन किस नीयत से उनके आस पास है वह अच्छे से जानते थे, उनका दिल मोहब्बत, हमदर्दी, अख़लाक़ और नेक आदतों से भरा हुआ था, उनकी पहचान सच्चाई और हक़ के द्वारा होती है।

और आज के इस दौर में जब चारों ओर नफ़रत, हिंसा और एक दूसरे को दबाने और कुचलने की होड़ लगी है ऐसे हालात में ज़रूरी है कि हम सब उस अली (अ.स.) के दिल की आवाज़ को सुनें, समझें और उस पर अमल करें।

एक दूसरी जगह अपनी किताब में जार्ज जुर्दाक़ इमाम अली अ.स. की अदालत के बारे में लिखते हैं कि अली (अ.स.) को उनकी अदालत की ख़ातिर मस्जिद की मेहराब में क़त्ल कर दिया गया।

शिब्ली शमील

Materialism को बढ़ावा देने वाले इस लेखक का कहना है कि इमाम अली अ.स. सभी बुज़ुर्गों में सबसे बुज़ुर्ग हैं और अकेले ऐसे इंसान हैं जिसके जैसा न कोई पूरब में है ना ही कोई पश्चिम में, न कोई उन जैसा गुज़रा है और न इस दौर में कोई है।

नेविसियान

इस ईसाई विद्वान का कहना है कि अगर इमाम अली अ.स. जिनके बयान का अंदाज़ इतना ला जवाब था अगर आज होते और कूफ़ा के मिंबर से वह कुछ बयान करते तो तुम लोग मस्जिदे कूफ़ा को यूरोप और पूरी दुनिया के विद्वानों से भरी हुई देखते।