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हज़रत ज़हरा और वालेदैन का सम्मान
आप हमेशा अपने वालिद की मर्ज़ी को ही अपनी मर्ज़ी समझती थीं और अपने वालिद की ख़ुशी के लिए अपने लिबास, घर के ज़रूरी सामान, गले का हार, हाथों के कड़े और यहां तक कि बच्चों के ज़रूरी सामान भी अल्लाह की राह में ग़रीब और फ़क़ीर मुसलमानों को दे दिया करती थीं।
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सय्यदा फ़ातिमा ज़हरा (स): अज़ीम हस्ती।
घरेलू कामों में आपने अपने बच्चों और शौहर की ख़िदमत का एक बेमिसाल नमूना पेश किया, और साथ ही रिसालत के मिशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके साथ ही आपने ज़ुल्म के ख़िलाफ़ तन्हा खड़े होकर क़याम किया
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हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) की ज़िंदगी पर एक निगाह
सभी ख़ुशी ख़ुशी मदीने से वापस निकल ही रहे थे कि अचानक रास्ते में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हो गई, उन्होंने इमाम से पूरा माजरा बताया और सवालों के जवाब दिखाए, इमाम ने 3 बार फ़रमाया: उस पर उसके बाप क़ुर्बान जाएं।
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रसूले इस्लाम (स.अ.) और आपका सादा जीवन
मुझे इस दुनिया की आराम देने वाली चीज़ों से क्या लेना देना, मेरी और दुनिया की मिसाल एक सवारी की तरह है जो थोड़ी देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुकती है और उसके बाद तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ जाती है।
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रसूले इस्लाम की ज़िंदगी पर एक निगाह
फ़ारस का आतिश कदा बुझ गया, ज़लज़ला आया और बुर अपनी जगह से उखड़ गए, शैतान रोया.. यह सारी चीज़ें बता रही थीं कि कोई बड़ी घटना हुई है और एक नेक और बेमिसाल बच्चा यानी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स. दुनिया में आए हैं जो ज़ुल्म, कुफ़्र और गुमराही से भरी दुनिया को तौहीद, ख़ुदा परस्ती, तक़वा, सदाचार और इंसानी कमालात का रास्ता दिखाएंगे।
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हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. का संक्षिप्त जीवन परिचय।
आज इमाम हसन असकरी की शहादत का दिन है। 8 रबीउल अव्वल को हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है। उन्होंने अपनी 28 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और अब्बासी शासक ‘मोतमद’ के किराए के टट्टुओं के हाथों इराक़ के सामर्रा इलाक़े में ज़हर से आठ दिन तक दर्द सहने के बाद शहीद हो गए। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके अहलेबैत सच्चाई व हक़
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पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. के जीवन की कुछ विशेषताऐं।
पैग़म्बरे इस्लाम स. का स्थान बहुत बुलंद व ऊंचा था इसके बावजूद वह हमेशा उन कार्यों को अंजाम देते थे जो उन्हें महान ईश्वर से निकट करते थे और मरते दम तक उनका प्रयास यही था। चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम स. अपने सुकर्मों के माध्यम से दिनप्रतिदिन महान ईश्वर के निकट होते जा रहे थे यानी उसका सामिप्य प्राप्त करते जा रहे थे।
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औलाद के लिए बाप की दुआ।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. ने बाप की अज़मत के बारे में फ़रमाया।
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ग़दीर, इस्लामी इतिहास का सबसे बड़ा दिन
शेखैन (अबु बकर व उमर) और रसूले अकरम (स.) के असहाब ने हज़रत के मिम्बर से नीचे आने के बाद अली (अ.) को मुबारक बाद पेश की और मुबारकबादी का यह सिलसिला मग़रिब तक चलता रहा। शैखैन (अबु बकर व उमर) वह पहले लोग थे जिन्होंने इमाम को इन शब्दों में मुबारक बाद दी “हनीयन लका या अली इबनि अबितालिब असबहता व अमसैता मौलाया व मौला कुल्लि मुमिनिन व मुमिनतिन” अर्थात ऐ अली इब्ने अबितालिब आपको मुबारक हो कि सुबह शाम मेरे और हर मोमिन मर्द और औरत के मौला हो गये।
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इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. की देन है यह मज़बूत नेटवर्क
इन दोनों इमामों के सामर्रा में नज़रबंद होने और उनसे पहले इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और एक अलग अंदाज़ से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पर बंदिशें होने के बावजूद अवाम से राबेता लगातार बढ़ता गया।
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इमाम अली रज़ा अ.स. की ज़िंदगी पर एक निगाह
आपकी कुन्नियत “अबुल हसन” है। कुछ रिवायतों के अनुसार आपके उपनाम “रज़ा”, “साबिर”, “रज़ी” और “वफ़ी” हैं हालांकि आपका मशहूर लक़ब “रज़ा” है। आपकी इमामत की अवधि 20 साल थी और आप मामून के हाथों शहीद किये जाने के बाद तूस (मशहद) में दफ़्न किए गए।
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शरहे हदीस
सब्र कितनी तरह का होता है ?
जो शख़्स मुसीबत में सब्र से काम लेता है और सुकून के साथ उस मुसीबत को बर्दाश्त कर लेता है, उसे अल्लाह ....
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शरहे हदीस
शिया का इम्तेहान और इमाम सादिक़ अ.स.
नमाज़ के वक़्त को अहमियत देते हैं या नही ? काम के वक़्त नमाज़ को टालते हैं या काम को ?कुछ लोग मानते हैं कि नमाज़ ख़ाली वक़्त के लिए है और कहते हैं कि अव्वले वक़्त रिज़वानुल्लाह व आख़िरि वक़्त ग़ुफ़रानुल्लाह।
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इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. का अख़लाक़
आपका क़ायदा था कि आप मालदारों से ज़्यादा ग़रीबों की इज़्ज़त किया करते थे, मज़दूरों की क़द्र किया करते थे। ख़ुद भी व्यापार किया करते थे और अकसर बाग़ों में ख़ुद भी मेहनत किया करते थे।
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इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) की शहादत के मौके पर स्याहपोश हुआ इमाम रज़ा (अ.स.) का रोज़ा + तस्वीरें
इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की शहादत की वर्षगांठ के अवसर पर मशहदे मुक़द्दस में मौजूद इमाम रज़ा (अ.स.) का रौज़ा स्याहपोश हो गया है। इमाम के रोज़े के गुंबद पर स्याह परचम नस्ब कर दिया गया। पूरा मशहदे मुक़द्दस शोक में डूबा है।
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शरहे हदीस
मोमिन की इलाही और नबवी सिफ़त
जब तक मोमिन में तीन आदतें न हों इंसान हक़ीक़ी मोमिन नहीं हो सकता। एक खूबी अपने रब की, एक अपने नबी की और एक अपने इमाम की।
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गुनाहों को दूर करने वाली बीमारी
ख़ुद बीमारी में कोई अज्र नहीं है लेकिन यह बुराइयों को मिटा देती है और इस तरह झाड़ देती है जैसे दरख़्त से पत्ते झड़ते हैं,
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हक़ और बातिल की दूरी
वाय हो तुम पर क़ौसो क़ज़ह न कहो, क्योंकि कज़ह शैतान का नाम है, वह ईश्वर का धनुष हैं और नेमतों की अधिकता और उस क्षेत्र के लोगों के लिये बाढ़ से अमान की निशानी है।
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इमाम जाफ़र सादिक़ की ज़िंदगी पर एक निगाह
जाबिर इब्ने हय्यान तरसूसी जो कि बहुत ज़्यादा माहिर और आलिम होने के बाद भी इमाम के शिष्य होने के सम्बन्ध से आम लोगों की नज़रों से छिपे हुए हें। और कुछ दूसरे गुटों के लीडर व इमाम माने जाते हैं। अफ़सोस तो इस बात का है कि वह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के शिष्यों को तो इमाम मानते हैं मगर ख़ुद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को इमाम क़ुबूल नही करते हैं।
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8 शव्वाल,
जन्नतुल बक़ी और वहाबियत के अत्याचार
जेद्दाह शहर में हज़रत हव्वा की क़ब्र को भी इन्हीं वहाबियों ने ढ़हाया, और फिर मदीने में पैग़म्बर की पवित्र क़ब्र को तोप का निशाना बनाया लेकिन मुसलमानों के आक्रोश को देख कर वह ऐसा नही कर पाए। इन वहाबियों ने जन्नतुल बक़ी के साथ साथ और भी बहुत सी क़ीमती चीज़ों को नष्ट कर दिया।
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ईदुल फ़ितर ईद का दिन या अहलेबैत अ.स. के ग़म का? 2
शिया दुश्मन ताक़तों की भरपूर कोशिश है कि वह शियों के बीच ऐसी चीज़ें दाख़िल करने की कोशिश करें जिससे आम मुसलमानों की निगाह में शियों का इस्लाम और ईमान शक की निगाह से देखा जाने लगे। ईद के दिन अहलेबैत अ.स. की मुसीबत को याद कर के आंसू बहाने से किसी ने नहीं रोका लेकिन ईद के दिन को ग़म का दिन बताना अहलेबैत अ.स. की सीरत के ख़िलाफ़ है...
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ईदुल फ़ितर ईद का दिन या अहलेबैत अ.स. के ग़म का? 1
हमें केवल इमाम हुसैन अ.स. के चेहलुम के दिन को सोग के तौर पर मनाने के लिए ताकीद की गई है, इसके अलावा किसी भी मासूम अ.स. के क़ुल, दसवें या चेहलुम मनाने पर कोई दलील नहीं है, जेहालत और कट्टरता की बुनियाद पर ईद के दिनों को ग़म और सोग के दिन बताने वालों को इन बातों की ओर भी ध्यान रखना चाहिए कि 18 ज़िलहिज्जा (ईदे ग़दीर) के दिन इमाम बाक़िर अ.स. और सफीरे इमाम हुसैन हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का दसवां है।
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इमाम अली अ. की वसीयतें अपने चाहने वालों के नाम
- पैग़म्बर के सहाबियों और उनके सच्चे क़रीबी लोगों का ख़्याल रखो, क्योंकि पैग़म्बर ने इन लोगों के लिए विशेष हुक्म दिया था।
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इमाम अली अ.स. ग़ैर मुस्लिम विद्वानों की निगाह में
आज के इस दौर में जब चारों ओर नफ़रत, हिंसा और एक दूसरे को दबाने और कुचलने की होड़ लगी है ऐसे हालात में ज़रूरी है कि हम सब उस अली (अ.स.) के दिल की आवाज़ को सुनें, समझें और उस पर अमल करें।
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इमाम अली अ.स. के रौज़े पर नस्ब हुआ परचमे अज़ा + तस्वीरें
19 रमज़ान के क़रीब आते ही दुनिया भर में और विशेष कर नजफ़े अशरफ में ग़म की फ़िज़ा छा गई है। इमाम अली अ.स. की शहादत की वर्षगांठ और शबे क़द्र की आमद के साथ ही नजफ़े अशरफ में अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अ.स. के रौज़े के गुंबद पर स्याह परचम नस्ब कर दिया गया है।