29 अप्रैल 2024 - 08:36
गुनाहों को दूर करने वाली बीमारी

ख़ुद बीमारी में कोई अज्र नहीं है लेकिन यह बुराइयों को मिटा देती है और इस तरह झाड़ देती है जैसे दरख़्त से पत्ते झड़ते हैं,

 قَالَ امام علی (علیه السلام) لِبَعْضِ أَصْحَابِهِ فِي عِلَّةٍ اعْتَلَّه

جَعَلَ اللَّهُ مَا كَانَ [مِنْكَ] مِنْ شَكْوَاكَ حَطّاً لِسَيِّئَاتِكَ، فَإِنَّ الْمَرَضَ لَا أَجْرَ فِيهِ وَ لَكِنَّهُ يَحُطُّ السَّيِّئَاتِ وَ يَحُتُّهَا حَتَّ الْأَوْرَاقِ، وَ إِنَّمَا الْأَجْرُ فِي الْقَوْلِ بِاللِّسَانِ وَ الْعَمَلِ بِالْأَيْدِي وَ الْأَقْدَامِ. وَ إِنَّ اللَّهَ سُبْحَانَهُ يُدْخِلُ بِصِدْقِ النِّيَّةِ وَ السَّرِيرَةِ الصَّالِحَةِ مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ الْجَنَّةََ.

अपने एक सहाबी से एक बीमारी के मौक़े पर फ़रमाया “अल्लाह ने तुम्हारी बीमारी को तुम्हारे गुनाहों के दूर करने का ज़रिया बना दिया है के ख़ुद बीमारी में कोई अज्र नहीं है लेकिन यह बुराइयों को मिटा देती है और इस तरह झाड़ देती है जैसे दरख़्त से पत्ते झड़ते हैं, अज्र व सवाब ज़बान से कुछ कहने और हाथ पांव से कुछ करने में हासिल होता है और परवरदिगार अपने जिन बन्दों को चाहता है उनकी नीयत की सदाक़त और बातिन की पाकीज़गी की बिना पर दाखि़ले जन्नत कर देता है।

सय्यद रज़ी फरमाते हैं - हज़रत ने बिल्कुल सच फ़रमाया है कि बीमारी में कोई अज्र नहीं है। यह कोई इस्तेहक़ाक़ी अज्र वाला काम नहीं है, बदला और एवज़ तो उस अमल पर भी हासिल होता है जो बीमारियों वग़ैरह की तरह ख़ुदा बन्दे के लिये अन्जाम देता है लेकिन अज्र व सवाब सिर्फ़ उसी अमल पर होता है जो बन्दा ख़ुद अन्जाम देता है और मौलाए कायनात ने इस मक़ाम पर एवज़ और अज्रो सवाब के इसी फ़र्क़ को वाज़ेह फ़रमाया है जिसका इदराक आपके इल्मे रौशन और फ़िक्र साएब के ज़रिये हुआ है।

मक़सद यह है कि परवरदिगार ने जिस अज्रो सवाब का वादा किया है और जिसका इंसान इस्तेहक़ाक़ पैदा कर लेता है वह किसी न किसी अमल ही पर पैदा होता है और मर्ज़ कोई अमल नहीं है, लेकिन इसके अलावा फ़ज़्लो करम का दरवाज़ा खुला हुआ है और वह किसी भी वक़्त और किसी भी शख़्स के शामिले हाल किया जा सकता है, इसमें किसी का कोई इजारा नहीं है।