1 जून 2024 - 08:36
इमाम अली रज़ा अ.स. की ज़िंदगी पर एक निगाह

आपकी कुन्नियत “अबुल हसन” है। कुछ रिवायतों के अनुसार आपके उपनाम “रज़ा”, “साबिर”, “रज़ी” और “वफ़ी” हैं हालांकि आपका मशहूर लक़ब “रज़ा” है। आपकी इमामत की अवधि 20 साल थी और आप मामून के हाथों शहीद किये जाने के बाद तूस (मशहद) में दफ़्न किए गए।

इमाम अली रज़ा अ.स. का असली नाम अली इब्ने मूसर्रेज़ा अलैहिस्सलाम है आप इसना अशरी शियों के आठवें इमाम हैं। आपके वालिद इमाम मूसा काज़िम अ. शियों के सातवें इमाम हैं।

इमाम अली रज़ा अ. मदीने में सन 148 हिजरी में पैदा हुए और सन 203 हिजरी में मामून अब्बासी के हाथों शहीद हुए। आपके वालिद इमाम मूसा काज़िम अ. शियों के सातवें इमाम हैं, आपकी माँ का नाम ताहिरा था। इमाम रज़ा अ. की विलादत के बाद इमाम मूसा काज़िम अ. ने उन्हें ताहिरा का नाम दिया।

आपका जन्म, मदीने में हुआ मगर अब्बासी ख़लीफा मामून अब्बासी आपको मजबूर करके मदीने से ख़ुरासान ले आया और उसने आपको अपनी विलायते अहदी (उत्तराधिकार) स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। इमाम अ.स ने मदीने से खुरासान जाते हुए नैशापूर में एक मशहूर हदीस बयान फ़रमाई जिसे हदीसे सिलसिलतुज़् ज़हब के नाम से याद किया जाता है।

मामून ने आपको कम दिखाने की खातिर विभिन्न धर्मों और मज़हबों के उल्मा व बुद्धिजीवियों के साथ मुनाज़रा और बहस कराई लेकिन उसे पता नहीं था आपका इल्म अल्लाह का दिया हुआ है और इसीलिए आपने तमाम बहसों में आसानी के साथ दूसरे मज़हबों के उलमा को धूल चटा दी और उन्होंने आपकी बड़ाई को स्वीकार कर लिया।

आपकी कुन्नियत “अबुल हसन” है। कुछ रिवायतों के अनुसार आपके उपनाम “रज़ा”, “साबिर”, “रज़ी” और “वफ़ी” हैं हालांकि आपका मशहूर लक़ब “रज़ा” है। आपकी इमामत की अवधि 20 साल थी और आप मामून के हाथों शहीद किये जाने के बाद तूस (मशहद) में दफ़्न किए गए।