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डेली हदीस
लोगों का शुक्रिया और अल्लाह का शुक्र
नेकियों और एहसान पर शुक्रिया न करे वह अल्लाह का शुक्र भी नहीं कार सकता।
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डेली हदीस
मोमिन और गुनाह की महफ़िल
मोमिन किसी ऐसी बज़्म में बैठे जहां गुनाह हो रहा हो और वह उसे बदलने में सक्षम भी न हो।
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17 रबीउल अव्वल
अल्लाह का नबी दुनिया के तमाम इंसानों के लिए!
वह अशरफ़ुल-मख़लूक़ात हैं और अल्लाह की तरफ़ से उन्हें तमाम इंसानों को नेकी और रिहाई की तरफ़ बुलाने का हुक्म मिला है। इसलिए हबीबुल्लाह (स.अ.) मुसलमानों, ईसाइयों, यहूदियों, हिंदुओं, बौद्धों और हर मज़हब, फ़िरक़े और कोई भी रुझान रखने वाले तमाम इंसानों के लिए अज़ीम पैग़म्बर हैं।
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डेली हदीस
ज़िंदगी के दो दिन
जब तेरे हक़ में हो तो घमंड और नशे में मत पड़, और जब तेरे ख़िलाफ़ हो तो ग़मगीन मत हो; क्योंकि दोनों ही तेरे इम्तिहान का ज़रिया हैं।
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हफ्ता ए वहदत
इत्तेहाद और एकता नबियों का अहम मिशन
यह हफ़्ता ए वहदत जो मनाया जाता है, ये बरसों की एकता और सदियों की एकता की बुनियाद बने और हम एकता की छांव में पहुंचें जो पैग़म्बरों की दावत का मक़सद है, और इस के मध्ययम से हमारी मुश्किलें दूर हों।
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डेली हदीस
सेहत और मालो दौलत
इसलिए कि संभव है अचानक कोई बीमारी आ जाए और स्वास्थ्य और सलामती से हाथ धोना पड़ जाए, या अचानक गरीबी और तंगहाली आ जाए और धन-दौलत हाथ से निकल जाए।
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डेली हदीस
इमामत की अहमियत
मुसलमानों की आय और ज़कात एकत्र की जाती है, सीमाएँ और कानून लागू किए जाते हैं, और सरहदों और सीमाओं की हिफ़ाज़त की जाती है।
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शहादते इमाम हसन असकरी
इमाम हसन असकरी के जीवन पर एक निगाह
एक दिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की खिदमत मे एक खूबसूरत सा यमनी शख्स आया और उसने एक पत्थर का टुकड़ा पेश करके इमाम से खाहिश की कि आप इस पर अपनी इमामत की तसदीक़ मे मोहर लगा दे
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शहादते इमाम हसन असकरी अ.स.
इमाम हसन असकरी और ज़ुल्म के खिलाफ जिहाद
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम से लेकर ग्यारहवें इमाम, हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम तक जिहाद का अंदाज़ एक है। यह एक सिलसिला है जो शुरू से आख़िर तक लगातार कोशिश और जिद्दो-जेहद का सिलसिला है।
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डेली हदीस
ग़ुस्से पर कंट्रोल
और जो कोई अपनी बागडोर अपने ग़ुस्से के हवाले कर देता है, शैतान उस पर......
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डेली हदीस
गुनाहगारों से दूरी
ऐसे लोगों के साथ रुखाई से पेश आओ उनसे नाराज़गी इख्तियार करते हुए अल्लाह की खुशनूदी हासिल करो
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डेली हदीस
जिस दिन सब दिल मुर्दा होंगे
जो लोग ऐसी बज़्म में हिस्सा लेते हैं जहाँ अहले बैत अ.स. के जीवन और शिक्षाओं को याद किया जाता है, उनके दिल क़यामत के दिन भी जीवित रहेंगे
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इख़लास का महत्व।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने एक रिवायत में इख़लास के अपार महत्व और महत्ता पर प्रकाश डाला है।
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ज़ियारत क्या है और क्यों करते हैं?
ज़ियारत सिर्फ़ सफ़र नहीं, बल्कि ईमान को ताज़ा करने और खुदा के करीब होने का ज़रिया है। यह इंसान की रूह को सुकून देती है और मुसलमानों को एक-दूसरे से जोड़ती है।
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डेली हदीस
न उम्मीदें लगाओ, न डरो
ना तो अल्लाह के अलावा किसी से उम्मीदें लगाए और न ही अपने गुनाहों के अलावा .....
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डेली हदीस
ग़ैबते इमाम ज़माना और मोमिन का ईमान
लिहाज़ा जो कोई इस मुद्दत में अपने दीन पर मजबूती से साबित कदम रहता है, वह उस इंसान की तरह है जो अपने हाथों से.....
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डेली हदीस
अल्लाह और उसके महबूब बंदों का रिश्ता
तो अल्लाह भी उसी चीज़ की ओर रुख करता है जिसे वह पसंद करता हो।
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डेली हदीस
इमाम हुसैन के ज़ायर का मर्तबा
जब तक वह अपने घर नहीं पलट जाता जिबरील और मिकाईल उसके साथ होते हैं।
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डेली हदीस
दिल जज़्बात और अहसासात का इमाम
दिल अहसासात और जज़्बात का इमाम है और एहसास शरीर के अंगों और भागो के इमाम और रहनुमा की हैसियत रखते हैं।
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डेली हदीस
तन्हाई और अल्लाह की ना फ़रमानी
इसलिए कि जो इस पर गवाह है वही इनके बारे में फैसला करने वाला है।
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आशूरा के सबक़
हक़ की राह में कुर्बानी और बलिदान
रसूलल्लाह (स.अ.) के बाद का समाज पतन की ओर चला गया क्योंकि लोगों ने दुनिया की चकाचौंध, धन दौलत और यज़ीद और मुआविया की दौलत और चालों मे आकर अपने नबी के नवासे को कत्ल कर डाला और उनके कत्ल पर खुशियां मनाई।
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डेली हदीस
पालनहार और मालिक मत बनाओ वरना वह तुम्हें ग़ुलाम बना लेगी।
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आशूरा के सबक़
खास लोगों की जिम्मेदारी
आम लोग जीवन के संवेदनशील और निर्णायक क्षणों में इन प्रभावशाली व्यक्तियों के शब्दों और व्यवहार को देखते और सुनते हैं। यह वह लोग हैं जिन्हें जनता की नज़र में विश्वसनीय और लीडर माना जाता है।
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डेली हदीस
औलाद की तरबियत की अहमियत
वह तरबियत है न कि मालो दौलत, क्योंकि माल खत्म हो जाता है लेकिन अदब और तरबियत बाकी रहती है।