यमन के लोकप्रिय जनांदोलन अंसारुल्लाह के प्रमुख सय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन हौसी ने गज़्ज़ा में हो रहे नरसंहार पर कहा कि ज़ायोनी अपराध इतने भयावह हैं कि हर आज़ाद इंसान का ज़मीर उसे इनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर मजबूर करता है। उन्होंने कहा कि यह शासन पश्चिमी ताक़तों की सीधी मदद से अमेरिकी, ब्रिटिश और जर्मन हथियारों और अरब देशों के ईंधन पर निर्भर होकर फ़िलिस्तीनियों का कत्लेआम जारी रखे हुए है।
हौसी ने चेतावनी दी कि इस्लामी दुनिया की ख़ामोशी इस्राईल के लिए सबसे बड़ा अवसर है और यही ख़ामोशी उसके हमलों को और तेज़ कर रही है। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी खतरा केवल फ़िलिस्तीन तक सीमित नहीं बल्कि पूरी उम्मत-ए-मुसलिमा को निशाना बना रहा है।
उन्होंने मस्जिदे अक्सा की लगातार बेअदबी और क़ुद्स के यहूदीकरण की साज़िशों की निंदा करते हुए कहा कि मुसलमान फ़िलिस्तीन को भूल चुके हैं, जबकि फ़िलिस्तीन उनकी अपनी अस्मिता का हिस्सा है।
हौसी ने यूरोप, ख़ासकर ब्रिटेन, पर इस्राईल को सबसे ज़्यादा समर्थन देने का आरोप लगाया और बताया कि हाल ही में ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतन्याहू और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने मस्जिदे अक्सा के पास एक "तलमूदी" कार्यक्रम में मिलकर हिस्सा लिया।
उन्होंने कहा कि नेतन्याहू ने इस आयोजन को अमेरिका-इस्राईल के गहरे गठजोड़ की निशानी बताया है, जबकि इसी हफ़्ते हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया गया और जॉर्डन को पानी-गैस काटने की धमकी दी गई।
हौसी ने लेबनान पर अमेरिकी दबाव को "प्रतिरोध को निहत्था करने की साज़िश" बताया और चेताया कि यह हालात 1982 के "सबरा-शतीला नरसंहार" की पुनरावृत्ति होंगे। उन्होंने कहा कि सबरा-शतीला का सबक़ साफ़ है—किसी क़ौम की सुरक्षा उसकी मज़बूत रक्षा क्षमता और प्रतिरोध के हथियारों पर निर्भर है।
उनका कहना था कि असली ख़तरा प्रतिरोध के हथियार नहीं, बल्कि वह हथियार हैं जो ज़ायोनी अपराधियों के हाथ में हैं।
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