2 जुलाई 2025 - 16:46
 हुसैनी क़ाफ़िले के साथ، छठी मोहर्रम

क़बीले के 90 आदमी इमाम हुसैन की सहायता के लिये चल पड़े, लेकिन बीच में ही एक आदमी ने उमरे सअद से जासूसी कर दी जिसके बाद उमरे सअद ने अरज़क़ नाम के व्यक्ति के साथ 400 सैनिकों को भेजा, रास्ते में ही दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ

छः मोहर्रम का ही वह दिन था कि उबैदुल्लाह बिन ज़्याद ने उमरे सअद को पत्र लिखा और कहाः मैने तुमको पैदल और घुढ़ सवार हर तरह की ताकत दी है और तुमके हथियारों से लैस कर दिया है, ध्यान रहे कि तुम्हारे कामों की रिपोर्ट हर दिन मुझे मिलती रहती है।

इसी दिन हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी ने इमाम हुसैन (अ.) से कहाः हे अल्लाह के रसूल के बेटे! यहां करीब में ही बनी असद का क़बीला रहता है अगर आप अनुमति दें तो मैं उनके पास जाकर उनको आप की तरफ़ बुलाऊँ? इमाम हुसैन ने अनुमति दे दी। हबीब रात के अंधेरे में बनी असद के पास पहुँचे और फ़रमायाः मैं तुम्हारे लिये बेहतरीन उपहार लाया हूँ, मैं तुम को अल्लाह के रसूल के बेटे की सहायता की दावत देता हूं, उनके पास वह साथी हैं जिनमें से हर एक हज़ार लड़ाकों से बेहतर है और वह कभी भी उनके अकेला नहीं छोड़ेंगे, और शत्रु के सामने घुटने नहीं टेकेंगे। उमरे सअद ने एक बड़ी सेना के साथ उनको घेर लिया है, चूँकि तुम लोग मेरी क़ौम और क़बीले के हो इसलिये मैं तुमको इस नेक कार्य की दावत दे रहा हूँ। उसके बाद बनी असद का एक आदमी जिसका नाम अब्दुल्लाह बिन बशीर था खड़ा हुआ और कहने लगाः मैं वह पहला व्यक्ति हूं जो तुम्हारी दावत को स्वीकार करता हूं उसके बाद उसने रजज़ पढ़ा

قَدْ عَلِمَ الْقَومُ اِذ تَواکلوُا وَاَحْجَمَ الْفُرْسانُ تَثاقَلُوا

اَنِّی شجاعٌ بَطَلٌ مُقاتِلٌ کَاَنَّنِی لَیثُ عَرِینٍ باسِلٌ

क़ौम जानती है कि – जब युद्ध के लिये तैयार हों और जब घुड़सवार युद्ध की गंभीरता से डरें- मैं बहादुर, वीर, जंगजू शेर जैसा हूँ। उसके बाद क़बीले के 90 आदमी इमाम हुसैन की सहायता के लिये चल पड़े, लेकिन बीच में ही एक आदमी ने उमरे सअद से जासूसी कर दी जिसके बाद उमरे सअद ने अरज़क़ नाम के व्यक्ति के साथ 400 सैनिकों को भेजा, रास्ते में ही दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ, जब बनी असद के लोगों ने अपने पैर उखड़ते देखे तो रात के अंधेरे में भाग खड़े हुए और क़बीले में वापस चले गए और रात के अंधेरे में ही उमरे सअद के डर से अपने घरों को छोड़कर भाग खड़े हुए।

हबीब इमाम हुसैन के पास वापस आते हैं और सारी बात उनको बताते हैं तब इमाम फ़रमाते हैं: “”لاحَوْلَ وَلا قُوَّهَ اِلاّ بِاللّه‏ِ” (अलवकायअ वल हवादिस जिल्द 2, पेज 149, और अज़ मदीना ता मदीना पेज 368-370) 

फुरात पर पहला क़ब्ज़ा: एक रिवायत के अनुसार छः मोहर्रम के दिन ही उमरे सअद ने शब्स बिन रबई को तीन हज़ार ख़ूखार लोगों के साथ ढोल ताशों के साथ फ़ुरात के किनारे भेजा ताकि वह फुरात पर क़ब्ज़ा कर सकें। (अज़ मदीना ता मदीना पेज 360)

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