बहरैन के प्रमुख धर्मगुरु और लोकप्रिय समाज सुधारक आयतुल्लाह शैख ईसा क़ासिम ने कहा है कि बहरैन की आज़ाद और सम्मानित जनता अपने बहादुर बेटों की रिहाई और छीनी गई आज़ादियों की बहाली की मांग कर रही है, जो उनका कानूनी और मौलिक अधिकार है।
उन्होंने कहा कि यह मांग कोई दया या विनम्र याचना नहीं, बल्कि उनके धार्मिक, कानूनी, मानवीय और स्वाभाविक अधिकार के तहत है बिना किसी एहसान या समझौते की अपेक्षा के हम अपने जवानों की आजादी चाहते हैं।
आयतुल्लाह क़ासिम ने स्पष्ट किया कि यह किसी से “भीख में मिली आज़ादी” की बात नहीं, बल्कि उस स्वतंत्रता की मांग है जो नाजायज़ तरीक़े से छीनी गई और वर्षों से रोकी गई है। उन्होंने कहा, “आज़ादी ईश्वर का वरदान और इंसान की सबसे बड़ी शराफ़त है; इलाही न्याय के स्पष्ट आदेश के के सिवा कोई भी इसे किसी से छीन नहीं सकता।
उन्होंने कहा कि बहरैन के क़ैदी वे लोग हैं जो न्याय की मांग, अत्याचार के विरोध और अम्र बिल मारूफ़ व नह्य अनिल मुनकर (भलाई का हुक्म और बुराई से रोकने) के कारण जेलों में बंद हैं।
आयतुल्लाह क़ासिम ने ज़ोर देकर कहा कि वह समाज जिसमें अधिकारों की मांग की आवाज़ दबा दी जाए और अम्र बिल मारूफ़ का मिशन ख़ामोश हो जाए, वह समाज न सम्मान रखता है, न सुरक्षा और न शांति।
उन्होंने अंत में याद दिलाया कि बहरैन का सुधारवादी आंदोलन शुरू से लेकर आज तक शांतिपूर्ण रास्ते पर क़ायम रहा है, हालाँकि सरकार की प्रतिक्रिया सख़्ती, हिंसा, पवित्र स्थलों की बेअदबी और आज़ादियों के दमन के रूप में आई है।
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