4 जुलाई 2025 - 16:33
 हुसैनी क़ाफ़िले के साथ,आठवी मोहर्रम

अगर तुम अपने आप को मुसलमान समझते हो तो क्यों पैग़म्बर (स) के परिजनों पर टूट पड़े हो और उनकी हत्या का इरादा कर रखा है और फ़ुरात के पानी को जिससे जानवर भी पी रहे हैं उनसे रोक रखा है?

जैसे जैसे हुसैनी क़ाफ़िला आशूरा के क़रीब पहुँचता जा रहा है वैसे वैसे हुसैन (अ) और असहाबे हुसैन (अ) की प्यास बढ़ती जा रही है, बच्चों की प्यास बढ़ती जा रही है, सक़ीना अपने सूखे हुए कूज़े को सीने से लगाए फ़ुरात की तरफ़ देख रहीं है, अली असग़र के होंट सूख रहे हैं, बच्चे प्यास के अधिकता से कभी ख़ैमे के अंदर जाते हैं तो कभी बाहर आते हैं।

ख़्वारज़मी ने मक़तलुल हुसैन (अ) और ख़याबानी ने वक़ायउल अय्याम में लिखा है कि आठ मोहर्रम के दिन हुसैन (अ) और उनके साथी प्यास की अधिकता के व्याकुल थे और प्यास ने उनको परेशान कर रखा था, इसलिये इमाम हुसैन (अ) ने एक बेलचा उठाया और और ख़ैमे के पीछ उन्नीस क़दम किब्ले की तरफ़ गये और वहां एक कुंआ खोदा वहां से मीठा पानी निकला, सभी ने पानी पिया और अपनी मश्कों को भरा उसके बाद वह पानी ग़ायब हो गया (1)

जब इस घटना की सूचना उबैदुल्लाह बिन ज़्याद तक पहुँची तो उसने एक संदेशवाहक को उमरे सअद के पास भेजा और कहा कि मुझे सूचना मिली है कि हुसैन (अ) कुंआ खोद रहे हैं और पानी निकाल रहे हैं, जैसे ही मेरा पत्र तुमको मिले इसके बारे में सचेत रहो और ध्यान रखो कि पानी उन तक न पहुंचने पाए और हुसैन (अ) एवं उनके साथियों के साथ कठोरता दिखाओ, उमरे सअद ने उसके इस आदेश का पालन किया।

{ ध्यान देने वाली बात यह है कि मक़तल की बहुत सी पुस्तकों में इस प्रकार की बात लिखी गई है और यह भी कहा गया है कि कुंवा खोदा गया लेकिन वहां यह बात बयान की गई है कि इमाम हुसैन (अ) या हज़रत अब्बास (अ) ने कई कुवें खोदे लेकिन किसी में से भी पानी नहीं निकला, और वह रिवायतें जो यह बयान करती हैं कि इमाम हुसैन (अ) और उनके साथी तीन दिन के भूखे प्यासे थे वह भी इस रिवायत का विरोध करती हैं इसलिये इस रिवायत पर ग़ौर करने की आवश्यकता हैः अनुवादक}

आठ मोहर्रम का ही वह दिन था कि जब “यज़ीद बिन हसीन हमदानी” ने इमाम हुसैन (अ) से अनुमति मांगी ताकि वह उमरे सअद से वार्ता करें। इमाम ने उनको इजाज़त दी वह बिना सलाम किये उमरे सअद के पास पहुंचे। उमरे सअद ने कहाः हे हमदानी! किस चीज़ ने तुम्हें मुझे सलाम करने से रोका है? क्या मैं मुसलमान नहीं हूँ? हमदानी ने कहाः अगर तुम अपने आप को मुसलमान समझते हो तो क्यों पैग़म्बर (स) के परिजनों पर टूट पड़े हो और उनकी हत्या का इरादा कर रखा है और फ़ुरात के पानी को जिससे जानवर भी पी रहे हैं उनसे रोक रखा है?

उमरे सअद ने सर झुका लिया और कहाः हे हमदानी मैं जानता हूँ कि इस ख़ानदान को दुख देना हराम है, मैं एक बहुत ही भावनात्मक मोड़ पर हूँ मैं नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए, रैय की हुकूमत को छोड़ दूँ? वह हुकूमत जिसके शौक़ में मैं जल रहा हूँ, या अपने हाथों को हुसैन के ख़ून से रंग दूँ? जब कि मैं जानता हूँ कि इस कुकर्म की सज़ा नर्क है!

 हे हमदानी! रैय की हुकूमत मेरे आँखों का नूर है और मैं उसको नहीं छोड़ सकता हूँ।

यज़ीद बिन हसीन हमदानी ने वापस आकर सारी घटना की जानकारी इमाम हुसैन (अ) को दी और कहाः उमरे सअद ने सोच लिया है कि वह रैय की हुकूमत के लिये आपकी हत्या कर देगा। (2)

जब उमरे सअद ने हमदानी को यह उत्तर दिया कि वह रैय की हुकूमत के लिये पैग़म्बर के नवासे को क़त्ल करने के लिये तैयार है तो इमाम हुसैन (अ) ने एक बार और उसको समझाने के लिये अपने एक साथी “अम्र बिन क़रज़ा” को इबने सअद के पास भेजा और उससे कहा कि रात के सामय दोनों सेनाओं के बीच में आकर मुलाक़ात करे, रात्रि के समय इमाम हुसैन (अ) 20 साथियों के साथ और उमरे सअद 20 साथियों के साथ निश्चिंत स्थान पर पहुँचे, इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों से कहा कि वह वापस चले जाएं और केवल अपने भाई “अब्बास” और अपने बेटे “अली अकबर” को अपने पास रोक लिया, उमरे सअद ने भी अपने बेटे “हफ़्स” और उसके गुलाम को रोक लिया बाक़ी को वापस भेज दिया। इस मुलाक़ात में उमरे सअद ने इमाम के इस प्रश्न पर कि क्या तुम चाहते हो कि मेरे साथ युद्ध करो? बहानेबाज़ी की और इस युद्ध में शामिल होने की विवशता के तौर पर कोई न कोई बहाना पेश किया, एक बार कहाः मुझे डर है कि अगर मैं आपके विरुद्ध जंग न करूँ तो वह लोग मेरा घर उजाड़ देंगें इमाम ने कहा मै तेरा घर बना दूँगा।

उमरे सअद ने कहाः मुझे हर है कि मेरी जायदाद और ज़मीन को छीन लेंगे,  इमाम ने फ़रमायाः मैं उससे भी अधिक तुमको उस जायदाद से दूंगा से जो मेरे पास हिजाज़ में है।

उमरे सअद ने कहाः मैं कूफ़े में अपने इबने ज़्याद से अपने परिवार वालों की जान के लिये डर रहा हूँ, कहीं ऐसा न हो कि वह उन सभी की हत्या कर दे। इमाम ने जब देखा कि उमरे सअद किसी भी प्रकार मानने वाला नहीं है और उसने युद्ध करने की ठान रखी है तो अपने स्थान से यह कहते हुए उठेः तुझे क्या हो गया है? अल्लाह बिस्तर पर तेरी जान ले, और क़यामत में तुझे माफ न करे। अल्लाह की क़सम मैं जानता हूँ कि तू इराक़ का गेहूँ भी न खा सकेगा (यानी तुझे रैय की हुकूमत का सुख कभी न मिल सकेगा) उमरे सअद ने मज़ाक़ उड़ाते हुए कहाः हमारे लिये जौ ही काफ़ी है।

इस घटना के बाद आठ मोहर्रम के ही दिन उमरे सअद ने “उबैदुल्लाह बिन ज़्याद” को पत्र लिखा और कहा कि हुसैन को छोड़ दो क्योंकि उन्होंने स्वंय कहा है कि या वह हिजाज़ वापस चले जाएंगे या किसी और देश चले चाएंगे (कुछ रिवायतों में यह भी है कि इमाम हुसैन (अ) ने कहा कि मैं हिन्दुस्तान चला जाऊँगा)

उबैदुल्लाह बिन ज़्याद ने अपने साथियों के बीच इस पत्र को पढ़ा, जब “शिम्र बिन ज़िल जौशन” ने यह सुना तो बहुत क्रोधित हुआ और उसने उबैदुल्लाह को उमरे सअद की बात मानने से रोक दिया।

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