सवाल, क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिन अहलेबैत अ.स. का ग़म मनाना सही है?
हक़ीक़त में यह सवाल शियों के बीच कुछ आम लोगों की जानबूझ कर या अनजाने में टेढ़ी फ़िक्र की वजह से सामने आया है जो मासूमीन अ.स. के दिनों को भी अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ ढ़ालने की कोशिश करते हुए ईद के दिनों में काले कपड़े पहनने, मजलिस व मातम करने और सोग मनाने का प्रचार करते हैं।
हम संक्षेप में इस लेख में मासूमीन अ.स. की हदीस की रौशनी में इसका जवाब तलाश करने की कोशिश करेंगे कि क्या ईद के दिन शियों के लिए भी ईद हैं या इन दिनों में ग़म मनाना चाहिए?
- पहली बात यह कि इस्लाम में माहे शव्वाल के पहले दिन (ईदुल फ़ितर) और 10 ज़िलहिज्जा (ईदुल अज़हा) को मुसलमानों के लिए ख़ास तौर से ईद का दिन बताया गया है, यही वजह है कि इन दिनों को ईद के दिन के तौर पर मनाने में आम मुसलमानों के बीच कोई मतभेद नहीं है।
- यह तारीख़ी हक़ीक़त है कि मासूमीन अ.स. ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ईद के दिन समझ कर गुज़ारते थे, और मासूमीन अ.स. के बाद भी हर दौर में ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ईद के दिन के तौर पर पूरे मज़हबी जोश और जज़्बे के साथ मनाया जाता रहा है जिसमें शियों के बुज़ुर्ग उलमा भी शामिल रहे हैं।
अब ईद को ग़म और सोग का दिन बताने वालों को चाहिए कि या आज तक ईद के दिनों को ईद को दिन के तौर पर मनाने वाले शियों को शीयत से बाहर कर दें या इस बात को मान लें कि ईद का दिन ईद और ख़ुशी का ही है, यह दिन ग़म और सोग के नहीं हैं।
- अगर कहा जाए कि ईद का दिन इमाम अली अ.स. का दसवां है इसलिए ग़म और सोग मनाना चाहिए तो इसके जवाब में कहा जा सकता है कि हमें केवल इमाम हुसैन अ.स. के चेहलुम के दिन को सोग के तौर पर मनाने के लिए ताकीद की गई है, इसके अलावा किसी भी मासूम अ.स. के क़ुल, दसवें या चेहलुम मनाने पर कोई दलील नहीं है, जेहालत और कट्टरता की बुनियाद पर ईद के दिनों को ग़म और सोग के दिन बताने वालों को इन बातों की ओर भी ध्यान रखना चाहिए...
** 18 ज़िलहिज्जा (ईदे ग़दीर) को इमाम बाक़िर अ.स. और हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का दसवां है।
** 9 रबीउल अव्वल (ईदे ज़हरा स.अ.) को इमाम हसन असकरी अ.स. का क़ुल है।
** 17 रबीउल अव्वल (पैग़म्बर स.अ. और इमाम सादिक़ अ.स. की विलादत के दिन) इमाम हसन असकरी अ.स. का दसवां है।
** 13 रजब (इमाम अली अ.स. की विलादत के दिन) इमाम अली नक़ी अ.स. का दसवां और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. का चेहेल्लुम है।
** 4 शाबान (हज़रत अब्बास अ.स. की विलादत का दिन) इमाम मूसा काज़िम अ.स. का दसवां है।
** 27 रजब (ईदे बेसत) हज़रत अबू तालिब अ.स. का क़ुल है।
** 7 शाबान (हज़रत क़ासिम इब्ने इमाम हसन अ.स. की विलादत का दिन) हज़रत अबू तालिब अ.स. का दसवां है।
तो क्या ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को ग़म और सोग मनाने वाले लोग ऊपर दी गई ख़ुशी के दिनों में सोग मनाएंगे???
- इस बात में कोई शक नहीं कि इमाम अली अ.स. की शहादत सन् 40 हिजरी में हुई तो उस साल की ईद को अहले बैत अ.स. ने ग़म में गुज़ारा होगा लेकिन उसके बाद मासूमीन अ.स. ने हर ईद को ईद के दिन के तौर पर ही मनाया, और अपने चाहने वालों को भी ईद मनाने का हुक्म दिया, और कभी भी शियों को नए कपड़े पहनने, ख़ुशबू लगाने और ईद की मुबारकबाद देने जैसी चीज़ों से नहीं मना किया बल्कि ईद के दिन इन कामों को करने पर ज़ोर दिया।
इमाम अली अ.स. ने ईदुल फ़ितर को ईद का दिन बताते हुए फ़रमाया कि बेशक यह ईद उसके लिए है जिसके रोज़े और इबादतें क़ुबूल हो गईं। (नहजुल बलाग़ा, पेज 605, वसाएलुश-शिया, जिल्द 15, पेज 308)
नहजुल बलाग़ा में मौजूद इमाम अली अ.स. के इस साफ़ शब्दों में मौजूद इरशाद के बाद किसकी हिम्मत है कि वह ईद के दिन को ग़म और सोग का दिन क़रार दे सके?
ईद के दिन को ग़म का दिन बताने वाले जाहिल और कट्टर लोगों को सहीफ़-ए-सज्जादिया में ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिन पढ़ी जाने वाली इमाम सज्जाद अ.स. की दुआ क्यों नहीं दिखाई देती जिसमें इमाम अ.स. ने फ़रमाया ख़ुदाया यह दिन मुबारक और बरकत वाला है। (सहीफ़-ए-सज्जादिया, ईदुल अज़हा के दिन की दुआ)
इसी तरह इमाम सज्जाद अ.स. ने माहे रमज़ान को रुख़सत करते हुए ईदुल फ़ितर के दिन के बारे में फ़रमाया, ख़ुदाया हम तेरी बारगाह में ईदुल फ़ितर के दिन तौबा करते हैं जिसे तूने मुसलमानों के लिए ईद और खुशी का दिन क़रार दिया। (बिहारुल अनवार, जिल्द 95, पेज 176)
इमाम सज्जाद अ.स. की यह दुआ सुनने के बाद कौन ऐसा शिया हो सकता है जो ईदुल फ़ितर के दिन को सोग का दिन कहे?
ऐसे लोगों को इमाम सादिक़ अ.स. से नक़्ल होने वाली वह दुआ क्यों नज़र नहीं आती जिसे ईद की नमाज़ के क़ुनूत में पढ़ा जाता है और जिसमें इमाम अ.स. ने फ़रमाया, ख़ुदाया मैं तुझसे उस दिन के वसीले से दुआ करता हूं जिसे तूने मुसलमानों के लिए ईद का दिन क़रार दिया है। (वसाएलुश-शिया, जिल्द 7, पेज 468, बिहारुल अनवार, जिल्द 88, पेज 379)
- मासूमीन अ.स. के ज़िक्र किए गए अक़वाल और दुआओं से साफ़ हो जाता है कि अल्लाह ने ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा को मुसलमानों के लिए ख़ास तोहफ़ा बना कर ईद का दिन क़रार दिया है, इसलिए हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह इन दिनों को ईद के दिन के तौर पर ही मनाएं, क्योंकि किसी भी मुसलमान के लिए यह बिल्कुल सही नहीं है कि वह अपने अल्लाह के हुक्म को अनदेखा करते हुए ईद के दिन को ग़म और सोग का दिन साबित करने की कोशिश करे।
ज़ाहिर है कि जो भी अल्लाह के हुक्म को विरोध करते हुए कोई अमल करे उसका इस्लाम और ईमान दोनों शक के दायरे में आ जाएगा, शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिया दुश्मन ताक़तों की भरपूर कोशिश है कि वह शियों के बीच ऐसी चीज़ें दाख़िल करने की कोशिश करें जिससे आम मुसलमानों की निगाह में शियों का इस्लाम और ईमान शक की निगाह से देखा जाने लगे।
इसीलिए अल्लाह ने ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा जो अल्लाह की शआएरे इलाही में से है और मुसलमानों की ख़ुशी के ख़ास दिन हैं और जिन्हें इस्लामी ईदें कहा जाता है, उन्हें शियों की निगाह में सोग का दिन बताने की साज़िश की जा रही है, और सीधे सादे शिया मोमिनों के दिलों में अहलेबैत अ.स. की मोहब्बत का ग़लत फ़ायदा उठाते हुए क़ुल और दसवें जैसी रस्मों को बुनियाद बना कर शियों को इस्लामी समाज से दूर करने की गंभीर प्लानिंग की जा रही है ताकि दुनिया की निगाहों में यह साबित किया जा सके कि शिया का इस्लामी समाज से कोई रिश्ता नहीं है यह ऐसी क़ौम है जो इस्लामी ईद के दिनों को सोग समझते हैं।
इसके लिए जानबूझ कर या जेहालत की वजह से शियों के बीच अहलेबैत अ.स. की कुछ ऐसी हदीसों को फैलाने की कोशिश की जा रही है जिनको ज़ाहिरी तौर से देखने में सोग का दिन मनाने जैसा लगता है जबकि हम चौथे प्वाइंट में अहलेबैत अ.स. से नक़्ल होने वाली हदीसों और दुआओं के साथ बयान कर चुके हैं जिनमें ईद के दिन को सोग या ग़म का दिन मनाने से नकारा गया है।
ध्यान रहे कि ईद के दिन अहलेबैत अ.स. की मुसीबत को याग कर के आंसू बहाने से किसी से नहीं रोका लेकिन ईद के दिन को ग़म का दिन बताना अहलेबैत अ.स. की सीरत के ख़िलाफ़ है, बल्कि हर मोमिन की ज़िम्मेदारी है वह ईदुल फ़ितर और ईदुल अज़हा के दिनों में इस्लाम द्वारा बताए गए तरीक़ों से ईद मनाने की कोशिश करे।
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