AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : Parstoday
मंगलवार

23 मई 2023

10:18:50 am
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चरमपंथी ज़ायोनियों के चहेते इस्राईली मंत्री की अमरीका और ख़ुद इस्राईल के भीतर क्यों आलोचना की जा रही है?

ईतमार बिन ग़फ़ीर इस्राईल के वह मंत्री हैं जिनके चरमपंथी होने की चर्चा, इस्राईल और अमरीका तक में है। बिन ग़फ़ीर इस समय बिनयामिन नेतनयाहू सरकार में मंत्री हैं। विपक्षी नेता याईर लबीद ने बिन ग़फ़ीर के लिए कहा कि यह बेहद चरमपंथी व्यक्ति है क्योंकि मस्जिदुल अक़सा में ईतमार बिन ग़फ़ीर की भड़काई हरकत की आलोचना अमरीका ने भी की है।

लपीद का कहना था कि बिन ग़फ़ीर ग़ैर ज़िम्मेदार चरमपंथी व्यक्ति हैं उन्हें हरगिज़ मंत्री नहीं बनाना चाहिए था।

अमरीका के विदेश मंत्रालय ने बिन ग़फ़ीर के मस्जिदुल अक़सा के प्रांगड़ में घुसने की भड़काऊ हरकत पर चिंता जताई थी। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में यह भी कहा था कि वेस्ट बैंक में बनाई गई यहूदी बस्तियों को बाक़ी रखने के इस्राईली सरकार के फ़ैसले से भी हमें तकलीफ़ है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून की दृष्टि में यह बस्तियां फ़िलिस्तीनी भूमि पर बनाई गई हैं और ग़ैर क़ानूनी हैं।

दरअस्ल इस्राईल में चरमपंथी ज़ायोनियों ने फ़्लैग जुलूस निकाला था और मस्जिदुल अक़सा के प्रांगड़ में दाख़िल हुए थे। यह बैतुल मुक़द्दस पर ज़ायोनियों के ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े की याद में निकाला जाने वाला जुलूस था। फ़िलिस्तीनियों ने इसके बारे में पहले ही चेतावनी दी थी कि इस्राईल को इस हरकत का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ेगा।

दरअस्ल इस्राईल ने शुरू से ही यह रणनीति रखी है कि क़त्ल, हिंसा, हमले और क़ब्ज़े सहित हर तरह की कार्यवाही करके वह अरबों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करता है। इस्राईल की यह रणनीति कई दशकों तक सफल हो रही है और इस्राईल को इसके नतीजे में नई ज़मीनें मिलती रहीं। मगर हालिया दशकों में हालात बदल गए हैं। फ़िलिस्तीनियों के भीतर प्रतिरोध तेज़ हुआ है और ग़ज़्जा पट्टी के साथ ही वस्ट बैंक, बैतुल मुक़द्दस यहां तक कि 1948 में इस्राईल के क़ब्ज़े में जाने वाले इलाक़ों में बसने वाले फ़िलिस्तीनी भी इस्राईली बर्बरता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं, इतना ही नहीं बल्कि प्रतरोध की कार्यवाहियां कर रहे हैं।

दूसरी तरफ़ इलाक़े के हालात का मौजूदा रुख़ यह है कि अमरीका की पैठ समाप्त हो रही है और अमरीका पश्चिमी एशिया के इलाक़े से धीरे धीरे बाहर निकलने पर मजबूर है। यह स्थिति इस्राईल के लिए बेहद ख़ौफ़नाक है कि क्योंकि इस्राईल को अच्छी तरह पता है कि पश्चिमी एशिया के इलाक़े की जनता उसे क़ाबिज़ शासन के रूप में देखती है और उसे किसी तरह भी सहन करने के लिए तैयार नहीं है।

क़तर में फ़ुटबाल विश्व कप के दौरान इस्राईलियों के सिलसिले में अरब दुनिया से आए लोगों का रवैया यही था कि वे उन्हें अतिग्रहणकारी शासन का हिस्सा मानते हुए उनके साथ खड़े होना भी पसंद नहीं कर रहे थे।

इन हालात को देखते हुए इस्राईल के समर्थकों और इस्राईल के भीतर मौजूद गलियारों को चिंता है कि अगर चरमपंथी ज़ायोनियों की तरफ़ से भड़काऊ कार्यवाहियां होती रहीं तो उनके लिए समस्याएं बढ़ती जाएंगी।

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