(हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. की ज़िन्दगी के बहुत से रूप हैं और हमें हर रूप में उन्हें जानने की और समझने की ज़रूरत है। आपका सबसे पहला रूप बेटी का है। हमें देखना और जानना है कि आप कैसी बेटी हैं? उनका दूसरा रूप बीवी का है इसलिये यह जानना भी ज़रूरी है कि एक बीवी के रूप में आपने क्या किया है? आपका एक रूप माँ का है इस रूप में हमें जानना है कि आप कैसी माँ थीं और आपने किस तरह बच्चों को ट्रेंड किया? इसके अलावा आपके इल्म, आपके चरित्र, आपकी इबादत और बहुत सी चीज़ों में आप कैसी थीं यह जानना भी हमारे लिये ज़रूरी है क्योंकि आप हमारी आईडियल हैं और अपने आईडियल के बारे में हमें सब कुछ पता होना चाहिये ताकि हम भी उनके रास्ते पर चल सकें)।जब हम बीबी को एक बेटी की हैसियत से देखते हैं तो देखते हैं कि बचपन में जब उनकी माँ का देहामत हो गया, रसूलल्लाह अकेले हो गए क्योंकि उन्हें जनाबे ख़दीजा स. से बहुत मोहब्बत थी और वह आपके लिये एक बहुत बड़ा सहारा थीं अगरचे उनका असली सहारा ख़ुदा था लेकिन जनाबे अबू तालिब और जनाबे ख़दीजा से उनको काफ़ी सहारा मिलता था इसी लिये उन दोनों के देहांत के बाद मक्के वालों नें आपको काफ़ी परेशान किया ऐसे में उनकी बेटी यानी जनाबे फ़ातिमा ज़हरा स. ही थीं जो आपके लिये सहारा बनीं और इस बेटी नें बाप की सेवा इस तरह से की कि रसूले अकरम स. नें आपको, “उम्मे अबीहा” यानी अपनी माँ का दर्जा दिया। ज़ाहिर है अल्लाह के रसूल नें यूँ ही अपनी बेटी को माँ का दर्जा नहीं दिया या केवल बेटी होने की वजह से प्यार में ऐसा नहीं कहा बल्कि बीबी फ़ातिमा ज़हरा स. नें रसूले ख़ुदा के लिये जो तकलीफ़ें उठाईं और जिस तरह आपकी और ख़ुदा के दीन की सेवा की उसके कारण आपको, उम्मे अबीहा की उपाधि मिली। उम्मे अबीहा यानी अपने बाप को सहारा देने वाली। यह बेटी की हैसियत से जनाबे ज़हरा स. का रोल है जिस पर उनके बाप को भी गर्व है।बीवी की हैसियत से आपका रोल क्या है? इमामे अली अ. फ़रमाते है: ’’ما اغضبنی و لاخرج من امری‘‘ (بحار الانوار: ج ۴۳، ص ۱۳۴) फ़ातिमा स. नें पूरी ज़िन्दगी एक बार भी एक मुझे ग़ुस्सा नहीं दिलाया और कभी भी मेरी मर्ज़ी व इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया। बीबी जब तक इमाम अ. के घर में रहीं एक अच्छी बीवी और एक अच्छी औरत बन कर रही हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह इस्लाम एक औरत को देखना चाहता है। इसी तरह एक माँ के रूप में भी आप का रोल सबसे अलग है। जिसका अन्दाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि आपकी गोद में इमामे हसन अ., इमामे हुसैन अ., जनाबे ज़ैनब स. और जनाबे उम्मे कुलसूम स. जैसे महान इन्सान पल कर निकले हैं।इल्म के मैदान में आप एक बेमिसाल विद्वान हैं। आपने मस्जिदुन्नबी में जो ख़ुतबा दिया है उसके बारे में अल्लामा मजलिसी कहते हैं: बड़े बड़े आलिमों को सर जोड़ कर बैठना चाहिये ताकि वह इस ख़ुतबे को समझें और दूसरों को समझाएं। यह ख़ुतबा ख़ूबसूरती में नहजुल बलाग़ा के सबसे अच्छे ख़ुतबों जैसा है। आप बिल्कुल इमाम अली अ. की तरह ख़ूबसूरत अन्दाज़, बेहतरीन शब्द मीठी ज़बान में ख़ुतबा देती हैं और वह बातें कहती हैं जो अरब के बड़े बड़े मर्द भी नहीं कह सकते थे।आपके लिये मशहूर है कि आपके पास अगर कोई कुछ मागने के लिये आता तो उसे ख़ाली हाथ वापस नहीं लौटाती थीं। एक बार एक ग़रीब आदमी रसूले ख़ुदा स. के पास आया तो आपने उसको इमाम अली अ.ह के घर का पता बताया और कहा: वहाँ चले जाओ तुम्हारी ज़रूरत पूरी हो जाएगी। जब वह आया और कहा कि मुझे रसूले ख़ुदा स. नें आपके घर भेजा है। उस समय बीबी के घर में देने को कुछ नहीं था। आपनें उसे वह खाल दी जिस पर इमाम हसन अ. और इमाम हुसैन अ. सोया करते थे और उससे कहा: जाओ इसे बाज़ार में जाकर बेच दो जो पैसा मिलेगा उससे तुम्हारी ज़रूरत पूरी हो जाएगी।यह है वह ज़िन्दगी जो एक मुसलमान औरत की आईडियल है। जिसमें सब कुछ है। यह ज़िन्दगी कहती है मुसलमान औरत को ज़िन्दगी के हर मैदान में आगे होना चाहिये। उसके पास इल्म भी होना चाहिये, वह पति की वफ़ादार भी होनी चाहिये, वह माँ बाप के लिये सहारा भी होनी चाहिये, उसे बच्चों को सही और अच्छी इस्लामी ट्रेनिंग भी देना चाहिये। उसे इतना पवित्र होना चाहिये कि हर ग़लत और गंदी नज़र उसकी तरफ़ न उठे। उसे ऐसा होना चाहिये कि घर में बच्चों और पति के आराम का कारण बने और शांति का कारण हो। अपनी मुहब्बत भरी और प्यार भरी कोख में इस तरह बच्चों की ट्रेनिंग करे कि बच्चे बड़े होकर समाज के लिये लाभदायक बनें। जिनका जिस्म तंदरुस्त, दिमाग़ स्वस्थ और दिमाग़ बिल्कुल ठीक हो। दुनिया के वैज्ञानिक बड़ी से बड़ी मशीनें बना सकते हैं, अजीब क़िस्म की इलेक्ट्रानिक चीज़ें बना सकते हैं, बेमिसाल मीज़ाईल बना सकते हैं, चाँद पर जाने और आसमानों पर क़ब्ज़ा करने की मशीनें बना सकते हैं लेकिन अच्छा इन्सान नहीं बना सकते, यह साईंस के बस से बाहर है। यह काम केवल एक माँ कर सकती है। माँ का रोल दुनिया के हर साईंनटिस्ट और निर्माता से बड़ा और महान होता है। जनाबे ज़हरा स. को आईडियल मानने वाली माँओं की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यही है कि वह नेक और महान बच्चों को ट्रेंड करें।
14 अप्रैल 2013 - 19:30
समाचार कोड: 409468

(हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. की ज़िन्दगी के बहुत से रूप हैं और हमें हर रूप में उन्हें जानने की और समझने की ज़रूरत है। आपका सबसे पहला रूप बेटी का है। हमें देखना और जानना है कि आप कैसी बेटी हैं? उनका दूसरा रूप बीवी का है इसलिये यह जानना भी ज़रूरी है कि एक बीवी के रूप में आपने क्या किया है........