ईरान और सऊदी अरब के संबंधों के सामान्य होने से पूरी दुनिया विशेषकर इस्लामी जगत में बहुत अच्छा संदेश गया है और इसका फायदा न केवल ईरान और सऊदी अरब बल्कि क्षेत्र के दूसरे देशों को भी होगा। हांलाकि ईरान और सऊदी अरब के संबंधों का सामान्य हो जाना कोई सामान्य घटना नहीं है और सऊदी अरब ने ईरान के साथ संबंधों को सामान्य करके बता करके बता दिया कि उसे ईरान विरोधी देशों व शासनों की इच्छाओं की परवाह नहीं है।
ईरान की विदेश नीति की एक सैद्धांतिक नीति दुनिया के देशों विशेषकर इस्लामी व पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को विस्तृत करना है और ईरान और सऊदी अरब के संबंध जो विस्तृत हुए हैं उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। अब ईरान और मिस्र के संबंधों के सामान्य बनाये जाने के संदर्भ में समाचार सुनाई दे रहे हैं। सीरिया के मामले में ईरान और मिस्र के दृष्टिकोण एक दूसरे से निकट हैं।
दोनों देश सीरिया की संप्रभुता और राष्ट्रपति बश्शार असद के सत्ता में बाक़ी रहने पर बल देते हैं और इस विषय में तेहरान और क़ाहेरा का दृष्टिकोण समान है। इसी तरह सऊदी अरब ने मार्च 2015 में यमन पर जो हमला किया उसका भी मिस्र ने समर्थन नहीं किया। उसकी एक वजह यह है कि लाल सागर, बाबुल मंदब और स्वेज़ नहर में शांति व सुरक्षा के दृष्टिगत मिस्र यमन में युद्ध को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ समझता है और तेहरान ने भी बारमबार यमन युद्ध के समाप्त करने और यमन में शांति व सुरक्षा स्थापित करने पर बल दिया है।
अलबत्ता ईरान और मिस्र के संबंधों के सामान्य बनाये जाने के संबंध में बगदाद की भूमिका भी उल्लेखनीय है। वर्ष 2018 में इराक में अपेक्षाकृत शांति स्थापित हो जाने के बाद बगदाद ने दूसरे देशों के साथ अपने संबंधों को विस्तृत करने का प्रयास किया है और इस दिशा में उसे काफी सफलता भी मिली है और साथ ही वह दूसरे देशों के मध्य संबंधों को सामान्य कराने में संपर्क पुल की भूमिका निभा रहा है और बहुत से जानकार हल्कों का कहना है कि बगदाद ने ईरान और सऊदी अरब के मध्य संबंधों के सामान्य कराने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि अमेरिका और जायोनी शासन के साथ मिस्र के संबंध हैं और ये संबंध ईरान और मिस्र के संबंधों के सामान्य होने की प्रक्रिया में एक बड़ी रुकावट समझे जाते हैं क्योंकि अमेरिका और जायोनी शासन ईरान और मिस्र के संबंधों के सामान्य होने को बिल्कुल पसंद नहीं करेंगे और अमेरिका और इस्राईल की प्रसन्नता के खिलाफ कदम उठाना मिस्री अधिकारियों के लिए कोई आसान कार्य नहीं है। हालिया महीनों में अमेरिकी अधिकारियों ने मिस्र की कई बार यात्रा की है और ईरान से संबंधों के सामान्य न बनाये जाने के लिए क़ाहेरा पर दबाव भी डाला है।
इस्राईल मिस्र के साथ अपने संबंधों को बहुत महत्वपूर्ण मानता है। जायोनी शासन के पूर्व प्रधानमंत्री यायिर लैपिड ने ट्वीट करके कहा है कि ईरान और मिस्र की निकटता, इस्राईल और क्षेत्र के हितों के खिलाफ है। इस्राईली समाचार पत्र एदीऊत अहारनूत ने लिखा है कि जिस समय मिस्र से संबंधों की बहाली के संबंध में ईरानी अधिकारी काहेरा की यात्रा पर थे ठीक उसी समय इस्राईली प्रतिनिधि भी गोपनीय ढंग से मिस्र की यात्रा पर जाते हैं ताकि इन संबंधों को रोकने के संबंध में ज़रूरी स्पष्टीकरण दे सकें।
इस प्रकार की स्थिति में तेहरान के साथ संबंधों को सामान्य बनाना, मिस्री अधिकारियों के साहसिक व एतिहासिक फैसले पर निर्भर है जिस तरह ईरान से संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सऊदी अधिकारियों ने साहस का परिचय दिया और उन्होंने अमेरिका और इस्राईल की ओर से उत्पन्न की जा रही बाधाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। MM
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