अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी नियमों को नज़रअंदाज़ करके किया जाएगा तो निश्चित रूप से गंभीर समस्याएं खड़ी कर सकता है।
इस समय फ़ेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की दुनिया भर में संख्या 2 अरब 80 करोड़ है। अब अगर इस प्लेटफ़ार्म पर कुछ ख़तरनाक होता है तो यह पूरी दुनिया के लिए ख़तरनाक है।
यही बात फ़ेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ़्रांसिस हावगन ने बतानी चाही है। उन्होंने कांग्रेस की कमेटी के सामने जो साक्ष्य रखे हैं उनसे पता चलता है कि फ़ेसबुक को अपनी कार्यशैली के ख़तरनाक पहलुओं की पूरी जानकारी है। इससे किस तरह की मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं इसका भी उसे ज्ञान है लेकिन उसकी नज़र में प्राथमिकता मुनाफ़े को है। हाउगन का कहना है कि फ़ेसबुक लोकतंत्र का गला घोंटने में भी शामिल है।
अख़बार का कहना है कि फ़ेसबुक का यह वर्चस्व ज़्यादा दिन चलने वाला नहीं है, फ़ेसबुक के ख़तरनाक पहलू जब तक लोगों की नज़रों से पोशीदा थे यह तेज़ी से फैलता चला गया लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
गार्डियन ने इशारा किया कि म्यांमार में जिस समय मुसलमानों का नरसंहार जारी था तो फ़ेसबुक रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाली सामग्री लोगों तक पहुंचाने का सबसे प्रमुख माध्यम था। इस हक़ीक़त से तो फ़ेसबुक को भी इंकार नहीं है। वह अपने नियमों का पालन अमरीका के भीतर शायद करे लेकिन अमरीका से बाहर उसे नियमों की बहुत ज़्यादा फ़िक्र नहीं है।
केमिकल कारख़ानों के लिए कड़े नियम रखे गए हैं कि वह अपने कचरे को सही तरीक़े से ठिकाने लगाएं क्योंकि वह ज़हरीला होता है। अगर किसी केमिकल फ़ैक्ट्री से कोई ग़लती हो जाती थी और ज़हरीला पदार्थ फैल जाता था तो सरकार हस्तक्षेप करती थी। इसी तरह फ़ेसबुक के ख़िलाफ़ भी कार्यवाही ज़रूरी हो चली है।