अहले बैत वर्ल्ड इस्लामिक असेंबली के जनरल सेक्रेटरी आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने ब्राजील में आयोजित इस्लाम दीने जिंदगी और गुफ्तगू इंटरनेशनल कांफ्रेंस में कहा कि हमारे धार्मिक लीडर, हमारे इमाम विभिन्न धर्मो के मानने वालों के साथ बातचीत करने के सबसे बड़े समर्थक थे। उदाहरण स्वरूप इमाम जाफर सादिक अ.स. और इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ईसाइयों, पारसियों और दूसरे धर्म के मानने वालों से भी बातचीत करते थे ।
ब्राजील के साओ पाउलो पागलों शहर में आयोजित इस कांफ्रेंस में आयतुल्लाह रजा रमज़ानी चीफ गेस्ट की हैसियत से मौजूद थे। उन्होंने कहा कि शिया समुदाय की नज़र में हर अच्छे काम की बुनियाद इल्म है, उसी के विपरीत हर बुराई की जड़ अज्ञानता, जिहालत और नादानी है। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने एक रिवायत में फरमाया है कि अगर इंसान अपने आप को सही से पहचान ले तो वह दूसरों को भी अच्छी तरह पहचान लेगा । हमारी सब की जिम्मेदारी यह है कि हम अपने आप को पहचानें। अरस्तु ने अपनी अकादमी में लिखा था "खुद को पहचानो! खुद को पहचानना विकास की कुंजी है और यह कारण बनता है कि इंसान दूसरे लोगों के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास करे।
आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने अपने बयान में कहा कि अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की बहुत सी विशेषताएं हैं जिनमें एक अदालत भी है।
मैं अपील करूंगा कि लेबनान के मशहूर लेखक जॉर्ज जुर्दाक़ की लिखी हुई किताब "सौतुल अदालत" का स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में अनुवाद किया जाए।
जॉर्ज जुर्दाक़ इमाम अली के आशिक हैं। हजरत अमीरुल मोमिनीन का एक कथन है कि लोग दो प्रकार के हैं । एक वह जो तुम्हारे धार्मिक बंधु हैं, एक वह जो तुम्हारी ही तरह के प्राणी हैं। आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि हमारे मासूम इमाम विभिन्न धर्मो के बीच बातचीत के समर्थक थे । इमामे सादिक और इमामे रज़ा जैसे हमारे मासूम इमाम विभिन्न धर्मो के लोगों से बातचीत करते थे । हमें भी एक दूसरे से बातचीत करना चाहिए ताकि एक दूसरे को समझें और एक दूसरे का सम्मान कर सकें। इस्लाम शांति और भाईचारे के साथ रहने के सिद्धांत सिखाता है । लोगों को एक साथ रहना चाहिए, इस्लाम एक दूसरे के साथ संबंधों का समर्थक है । खुद अपने साथ, दूसरों के साथ, इस कायनात के बनाने वाले के साथ और प्राकृतिक के साथ संबंधों का इस्लाम ने समर्थन किया है।
उन्होंने कहा कि समस्त ईश्दूतों की जिम्मेदारी थी कि वह इंसानों को उनकी अपनी और भौतिक जिंदगी से बाहर लेकर आएं। हमें सिर्फ इस दुनिया के लिए पैदा नहीं किया गया है, हमें एक दिन यह दुनिया छोड़कर जाना है। इस दुनिया को छोड़ने का मतलब फना और नाबूदी नहीं बल्कि इससे भी बड़ी एक दुनिया में जिंदगी की शुरुआत है।
आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि हमें एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारियां को समझना होगा। उन्होंने कहा कि पैगंबर इस्लाम से एक रिवायत नकल हुई है कि अगर कोई इंसान किसी की आवाज और फरियाद सुने कि ऐ मुसलमान मेरी मदद को पहुंचो और कोई इस आवाज को सुनता है और जवाब ना दे तो यह इंसान मुसलमान नहीं है। इस रिवायत की बुनियाद पर अगर कोई गैर मुस्लिम चाहे वह यहूदी हो, ईसाई हो यहां तक के नास्तिक भी हो अगर उसे पर अत्याचार हो रहा है और वह किसी मुसलमान से मदद चाहता है और वह मुसलमान सक्षम होने के बाद भी उसका जवाब ना दे, उसकी मदद ना करे तो ऐसा इंसान मुसलमान नहीं है।
आयतुल्लाह रज़ा रमज़ानी ने कहा कि मैंने एक आर्टिकल में पढ़ा कि आज एक अरब से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। अगर न्याय का शासन हो तो इस दुनिया में कुपोषण नाम की कोई चीज नहीं होगी। अगर अदालत हो तो लोगों के बीच में मोहब्बत और बौद्धिकता होगी । अदालत और न्याय प्रियता तमाम ईश्दूतों का संदेश है। धार्मिक नेता, विद्वान और धार्मिक विचारक न्याय आधारित शांति को स्थापित करने में अहम किरदार अदा कर सकते हैं। हम इन सिद्धांतों पर चलते हुए दुनिया में मोहब्बत, अमन, शांति और न्याय फैलाते हुए दुनिया को स्वर्ग बना सकते हैं। मेरा संदेश यह है कि विभिन्न धर्मो के बीच बातचीत बहुत जरूरी है। हमें मानवता पर ध्यान देना होगा । मानवता का रतन वही मानवीय शराफत और करामत है।