द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है। इसमें कहा गया है कि कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है, जिससे उनके लिए अपने परिवारों और बच्चों के लिए कम से कम दो वक्त का भोजन भी उपलब्ध कराना मुश्किल हो गया है।
जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने अखबार को बताया कि देरी केंद्र सरकार द्वारा बिहार के ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी न करने के कारण हुई है।
हालांकि अधिकारियों का कहना है कि मुज़फ़्फ़रपुर में 93 फीसदी श्रमिकों को पहले ही मज़दूरी मिल चुकी है, जबकि एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत ज़िले के कई ब्लॉकों में लगभग 25 हज़ार श्रमिकों को महीनों से उनकी मज़दूरी नहीं मिल रही है।
इस बीच, मुजफ्फरपुर के मनरेगा के जिला कार्यक्रम अधिकारी अमित कुमार उपाध्याय ने द हिंदू को बताया कि समस्या का अब समाधान हो गया है. जिले में समय पर भुगतान दर 93 फीसदी है।
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को ‘कांग्रेस सरकार की विफलता का जीवित स्मारक’ बताया था। संसद में एक भाषण में उन्होंने कहा था कि इतने दिनों तक सत्ता में रहने के बाद आप एक ग़रीब को केवल महीने में कुछ दिन गड्ढे खोदने का काम दे पाए।