अशरा ए मोहर्रम का पहला जुमा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मज़लूमियत की सबसे बड़ी दलील हज़रते अली असग़र अलैहिस्सलाम के नाम।
इस वक्त दुनिया के 45 से ज्यादा ममालिक में 6000 से ज्यादा स्थानों पर अशरए मोहर्रम का पहला जुमा अली असग़र डे के नाम से मनाया जाता है।
साल 2003 में तेहरान यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ कर्बलाई कल्चर को आम करने वाला यह प्रोग्राम इस वक्त दुनिया भर में अज़ीम शानो शौकत के साथ मनाया जाता है जिसमें कर्बलाई माँएं अपने 2 वर्ष तक के बच्चों को अरब की मख़्सूस ड्रेस पहना कर इमामे ज़माना से एक अहद करती हैं कि मौला हम अपने बच्चों की तरबीयत इस अंदाज में करेंगे कि वह अपने वक्त के हुसैन की नुसरत कर सकें और उनका सिपाही बन सकें।
कर्बलाई माँओं के इस अज़्मो इरादे और वक्त के हुसैन से अहदो पैमान ने साम्राज्यवादी शक्तियों की नींद उड़ा कर रख दी है ।
रियाज़ की इमाम अहमद बिन सऊद यूनिवर्सिटी हो या हालैंड, फ्रांस और ब्रिटेन के थिंकटैंक, सब सर जोड़ कर बैठे हैं और सबकी एक ही कोशिश, कि शिया समाज को कर्बलाई कल्चर से जितना दूर रख सकें उतना बेहतर ।
हरिद्वार के मंगलौर क्षेत्र में इस साल भी मोहर्रम के पहले जुमे को "अली असग़र डे" मनाने के लिए द मैसेज ऑफ कर्बला ट्रस्ट की जानिब से ज़ोरो शोर से तैयारियां जारी हैं।
ट्रस्ट की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि कर्बलाई कल्चर को आम करने के लिए इस मुहिम में हमारा साथ दें और माँएं अपने छोटे बच्चों को शहज़ादा ए अली असग़र का सिपाही बनाकर प्रोग्राम में तशरीफ़ लाएं।
प्रोग्राम में शामिल होने के लिए छोटे बच्चों का मख़्सूस लिबास #TheMessageOfKarbala टीम की तरफ से तबर्रुकन पेश किया जाएगा।
तारीख़ : 21 जुलाई जुमा
वक़्त : 2 बजे दोपहर
मक़ाम : बड़ा इमामबाड़ा, मौहल्ला हल्का मंगलौर ज़िला हरिद्वार
रिपोर्ट: शाज़ान महदी, काज़िम अली