रिपोर्ट के मुताबिक, प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल पूरे 17 महीने यानी कि 500 से भी ज्यादा दिनों से बंद हैं। इस दौरान बहुत कम सुविधा संपन्न बच्चे अपने घरों के सुखद और सुरक्षित माहौल में ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए।
स्कूल की तालेबंदी की वजह से बाकी बच्चों के लिए कोई चारा नहीं बचा। कुछ ने ऑनलाइन या ऑफलाइन पढ़ाई जारी रखने के लिए संघर्ष किया। कई दूसरे बच्चों ने हार मान ली और काम-धंधा न होने के चलते गांव या बस्ती में समय काटने लगे।
रिपोर्ट में कहा गया कि वे न केवल पढ़ने के अधिकार बल्कि स्कूल जाने से मिलने वाले दूसरे फायदों जैसे कि सुरक्षित माहौल, बढ़िया पोषण और स्वस्थ सामाजिक जीवन से भी वंचित हो गए।
यह स्कूल सर्वे अगस्त 2021 में 15 राज्यों (असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लगभग 1400 बच्चों के बीच कराया गया है।
सर्वे में शामिल करीब आधे बच्चे कुछ ही शब्द पढ़ पाए। ज्यादातर अभिभावकों का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता कम हो गई।
रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 28 प्रतिशत बच्चे ही नियमित रूप से पढ़ाई कर रहे हैं, वहीं केवल 35 बच्चे कभी-कभी पढ़ रहे हैं। सर्वे में शामिल लगभग 60 प्रतिशत परिवार ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और लगभग 60 फीसदी दलित या आदिवासी समुदायों के हैं।
इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सर्वे में शामिल अधिकतर परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं था. जिन परिवारों के पास स्मार्टफोन है, उनमें भी नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों का अनुपात शहरी इलाकों में केवल 31 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 15 प्रतिशत है।