AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

9 मई 2021

5:36:07 pm
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इस्राईली सैन्य अभ्यास के चलते सैयद हसन नसरुल्लाह ने क्यों किया हाई एलर्ट का एलान? क्या भयानक संकट से बचने के लिए युद्ध छेड़ सकते हैं नेतनयाहू? दस बेहद महत्वपूर्ण बिंदु

बैतुल मुक़द्दस में फ़िलिस्तीनियों का सराहनीय और सम्मानजनक प्रतिरोध केवल कुछ दर्जन घरों की रक्षा के लिए नहीं है बल्कि यह पहिचान के लिए एक बड़ी लड़ाई का विस्फोट है। यह हमलावार ज़ायोनी पहिचान और अरब इस्लामी पहिचान के बीच निर्णायक टकराव का विस्फोट है।

जब मस्जिदुल अक़सा और उसके परिसर में नमाज़ अदा करने के लिए 70 हज़ार नमाज़ियों का सैलाब दुनिया को आकर्षित करता है तो यह इस्राईल को खुली हुई चुनौती भी है साथ ही यह एलान भी है कि बैतुल मुक़द्दस को हड़पने का ज़ायोनी शासन का ख़्वाब ख्वाब ही रहेगा। जो कुछ नज़र आ रहा है वह बड़े धमाके से पहले का धुआं है।

इस समय ज़मीन पर जो हालात हैं उनका सही अनुमान लगाने के लिए दस बिंदुओं को समझना ज़रूरी है।

 

  1. इस्राईली प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने शनिवार की शाम आपात बैठक की जिसमें वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और नेताओं ने हिस्सा लिया। इसमें यह बहस की गई कि इस्राईल के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है क्योंकि क़ुद्स का इंतेफ़ाज़ा शुरू हो रहा है।
  2. रविवार से इस्राईल का बहुत बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू हो रहा है जिसमें इस्राईल की थल सेना, नौसेना और वायु सेना सब भाग ले रहे हैं। यह इस्राईल के इतिहास का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास है जो कई हफ़्तों तक जारी रहेगा।
  3. हिज़्बुल्लाह के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह ने हिज़्बुल्लाह के लिए हाई एलर्ट का निर्देश जारी किया है जिसका मक़सद हर प्रकार के हालात का सामना करने के लिए तैयार रहना है। शुक्रवार को अपने भाषण में उन्होंने कहा कि अगर इस्राईल ने सैन्य अभ्यास के दौरान कोई भी ग़लती और दुस्साहस किया तो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। सैयद हसन नसरुल्लाह की ओर से यह चेतावनी और हाई एलर्ट का निर्देश साफ़ बताता है कि उनके पास इस संदर्भ में कुछ संवेदनशील जानकारियां ज़रूर हैं।
  4. इस्राईली मीडिया की रिपोर्टों में बार बार कहा जा रहा है कि चरमपंथी ज़ायोनी तत्व मस्जिदुल अक़सा पर हमले के लिए तैयार हैं और वही करना चाहते हैं जो वर्ष 2000 में एरियल शेरोन ने किया था जिसके बाद इंतेफ़ाज़ा फूट पड़ा था और उसने पूरे इस्लाईल की बुनियादें हिला दी थीं।
  5. ग़ज़्ज़ा पट्टी के फ़िलिस्तीनी संगठनों ने बैतुल मुक़द्दस के संघर्षकर्ताओं के भरपूर समर्थन का एलान किया है। हमास आंदोलन की सैनिक शाखा के प्रमुख मुहम्मद ज़ैफ़ ने सामने आकर बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया कि अगर इस्राईल ने बैतुल मुक़द्दस में फ़िलिस्तीनियों पर हमला किया तो एसा जवाब दिया जाएगा कि पूरा इस्राईल दहल उठेगा। इसी तरह का बयान जेहादे इस्लामी संगठन के प्रमुख ज़्याद नोख़ाला ने दिया। उन्होंन कहा कि बैतुल मुक़द्दस के फ़िलिस्तीनी अपने संघर्ष में अकेले नहीं हैं।
  6. इन दिनों इस्राईल को जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा चिंता है वह कुद्स के इंतेफ़ाज़ा आंदोलन की मदद के लिए पूरी तरह तैयार फ़िलिस्तीनी संगठनों के मिसाइल हैं। इस्राईल देख रहा है कि ग़ज़्ज़ा की तरह वेस्ट बैंक में भी आंदोलन शुरू हो सकता है। इसकी वजह यह है कि महमूद अब्बास का प्रशासन कमज़ोर और विभाजित हो चुका है और हालात को संभाल पाना उसके बस के बाहर है।
  7. इस्राईल में हालिया दिनों पुल गिरने की घटना ने जिसमें 45 लोग हताहत और 120 घायल हुए थे, यह साबित कर दिया कि आपात स्थिति से निपटने के लिए इस्राईल के पास तैयारी की भारी कमी है। अब अगर इस्राईल के भीतर मिसाइलों की बरसात होने लगी तो क्या हालात होंगे इसका आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
  8. इस्राईल के भीतरी मोर्चों में हालिया हफ़्तों के दौरान कई संदिग्ध घटनाएं हो गईं। रमला में मिसाइलों की फ़ैक्टरी में धमाका हो गया, अल्लुद एयरपोर्ट के पास भयानक आग लग गई, हैफ़ा बंदरगाह में भी आग लग गई, इसी बंदरगाह पर अमोनिया के गैस भंडारों से रिसाव हो गया, डिमोना परमाणु केन्द्र के क़रीब सीरिया का मिसाइल जाकर गिरा। यह घटनाएं संयोग नहीं थीं बल्कि इन पर आज तक इस्राईल में बहस जारी है कि इस्राईल की हालत कितनी ख़राब हो चुकी है।
  9. ईरान के सर्वोच्च नेता ने फ़िलिस्तीनी इंतेफ़ाज़ा का खुलकर समर्थन किया। उन्होंने विश्व क़ुद्स दिवस के अपने भाषण में कहा कि फ़िलिस्तीनी जवान पहले पत्थरों से लड़ते थे, अब मिसाइलों से अपनी रक्षा कर रहे हैं। इस बयान में कई संदेश छिपे हुए हैं। ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास जो मिसाइल हैं वह उन्हें ईरान से ही मिले हैं।
  10. ईरान पूरे इलाके में फैले प्रतिरोध मोर्चे का नेतृत्व करता है और यह मोर्चा इस समय हर जगह सफलताएं हासिल कर रहा है। इस बीच एक तरफ़ अमरीका की कोशिश है कि ईरान से समझौता हो जाए तो दूसरी ओर सऊदी अरब भी ईरान से समझौते के लिए बातचीत शुरू कर चुका है। इसका नतीजा यह होगा कि ईरान को 90 अरब डालर की रक़म मिलेगी जो विदेशों में फंसी हुई है जबकि ईरान के तेल निर्यात पर लगी रोक भी ख़त्म हो जाएगी। बाइडन को यक़ीन हो चुका है कि जंग में ईरान को हराया नहीं जा सकता इसलिए ईरान से टकराव का रास्ता छोड़कर समझौते का रास्ता अपनाना ही ज़्यादा बेहतर होगा।

 

अब इन हालात में अगर नेतनयाहू कोई बड़ी मूर्खता कर बैठें जिनका राजनैतिक कैरियर संकट में पड़ गया है तो कोई हैरत की बात नहीं है। नेतनयाहू इन हालात में यही कोशिश करेंगे कि किसी तरह अमरीका और यूरोप ईरान के ख़िलाफ़ जंग में कूद पड़ें ताकि नेतनयाहू अपना कैरियार बचा सकें।

 

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार