जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिका की यह घोषणा कि कौन देश किससे तेल ख़रीदे दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में खुला हस्तक्षेप है। रोचक बात है कि अमेरिका और पश्चिमी देश एक ओर आज़ादी और डेमोक्रेसी की बात करते हैं और दूसरी ओर दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हैं और अपनी बात न मानने वाले देश को चेतावनी भी देते हैं और वे अपने विरोधी देशों पर दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हैं। यही नहीं अमेरिका और पश्चिमी देश स्वयं को मानवाधिकारों की रक्षा का ठेकेदार भी समझते हैं जबकि पूरी दुनिया में सबसे अधिक मानवाधिकारों का हनन यही देश या इनके समर्थक देश करते हैं।
अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमला करके इन दोनों देशों पर अतिग्रहण कर लिया था और अफ़ग़ानिस्तान पर अब भी उसका अतिग्रहण जारी है। वर्ष 2001 से अफ़ग़ानिस्तान में उसके और नेटो के सैनिक मौजूद हैं। इस दौरान हज़ारों अफ़ग़ानी मारे जा चुके हैं, मादक पदार्थों के उत्पाद में बेतहाशा वृद्धि हो गयी है। अमेरिका और उसकी अगुवाई में काम करने वाले सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान में जिन लोगों की हत्याएं की हैं उनका ज़िम्मेदार कौन है? रोचक बात यह है कि मारे जाने वालों में अफ़ग़ान महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।
इराक़ में भी अमेरिकी सैनिकों ने मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ा दीं। इराक़ के अबूग़रेब जेल में घटने वाली हृदयविदारक घटनाओं को विश्व जनमत अभी नहीं भूला है। यही नहीं ग्वांतानामों की जेल को अभी तक बंद नहीं किया गया और वहां कई देशों के नागरिक अब भी अमेरिकी प्रताड़ना की मार झेल रहे हैं। यमन में हज़ारों यमनी मारे जा चुके हैं। सऊदी अरब अमेरिका और पश्चिमी देशों के मौन समर्थन की छत्रछाया में ही किसी प्रकार के अपराध में संकोच से काम नहीं ले रहा है। सऊदी अरब को कौन देश हथियार दे रहे हैं और सऊदी अरब जिन विमानों और बमों से यमन की निर्दोष जनता पर हमले करता है उन्हें यही मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाली शक्तियों व देशों ने दिया है।
सारांश यह कि हाथी के दो दांत होते हैं एक खाने और दूसरा दिखाने के। अगर पश्चिमी देशों के दावों की उपमा हाथी के दांत से दी जा जाये तो ग़लत नहीं होगा।