9 फ़रवरी 2019 - 14:04
बहरैन में आले ख़लीफ़ा शासन ने हज़रत फ़ातेमा के शोक की निशानियों को ध्वस्त किया

आले ख़लीफ़ा शासन के सुरक्षा बलों ने पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की शहादत के दिन बहरैन में उनका शोक मनाने के लिए स्थापित की गई निशानियों को ध्वस्त कर दिया है।

आले ख़लीफ़ा शासन सोचे समझे षड्यंत्र के अंतर्गत बहरैन में शिया मुसलमानों की धार्मिक आस्थाओं का अनादर कर रहा है और वह हर साल मुहर्रम और शोक के अन्य अवसरों पर शोक की निशानियों को नुक़सान पहुंचाता है। यह क्रम वर्ष 2011 में बहरैन के विभिन्न क्षेत्रों में शिया मुसलमानों की 38 मस्जिदों के विध्वंस से शुरू हुआ था। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि आले ख़लीफ़ा शासन की ओर से बहरैन की जनता के धार्मिक स्वतंत्रता पर निरंतर हमले, धार्मिक संस्कारों की स्वतंत्रता के अधिकार का खुला उल्लंघन है जिस पर विश्व मानवाधिकार घोषणापत्र के 18वें अनुच्छेद में बल दिया गया है।

 

तानाशाही आले ख़लीफ़ा शासन का क्रियाकलाप इस बात का सूचक है कि यह शासन न केवल यह कि बहरैनी जनता के राजनैतिक स्वतंत्रता का हनन कर रही है बल्कि उसने जनता को धार्मिक गतिविधियों की स्वतंत्रता के अधिकार से भी वंचित कर रखा है। इस पर बहरैन और विश्व स्तर पर विरोध हो रहा है और लोग इस तानाशाही सरकार की समाप्ति और लोकतांत्रिक सरकार के गठन की मांग कर रहे हैं। बहरैन की सरकार ने इसी तरह इस देश में धर्मगुरुओं के भाषणा पर भी प्रतिबंध लगा रखा है क्योंकि उसका मानना है कि बहरैन में सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी रहने का मुख्य कारण धर्मगुरुओं की भूमिका है। इसी लिए उसने धर्मगुरुओं को जेल में डालने, उन पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें यातनाएं देने जैसी बातों को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर रखा है और इससे उसकी धर्म विरोधी प्रवृत्ति और अधिक उजागर हो गई है।