असम सरकार राज्य से अवैध नागरिकों के खिलाफ अभियान के नाम पर लोगों को भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर स्थित नो मैंस लैंड में छोड़ रही है। असम सरकार के इस अभियान के खिलाफ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और हिमंता बिस्वा सरमा सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह पहले हाई कोर्ट जाए।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने "विदेशियों" के नाम पर एक बड़ा अभियान चला रखा है और बिना किसी जांच के लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि लोगों को विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने पेश भी नहीं किया जा रहा। एक और याचिकाकर्ता यूनिस अली ने कोर्ट को बताया कि उनकी मां को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है और बिना किसी सुनवाई के उन्हें बांग्लादेश भेजने की तैयारी की जा रही है।
दि स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने अपनी दायर याचिका में कहा है कि हिमंत बिस्वा सरमा सरकार सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश का दुरुपयोग कर रही है और भारतीय नागरिकों को जबरन बांग्लादेश भेज रही है। दि स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने सरकार पर संगीन इल्जाम लगाते हुए कहा कि यह लोगों के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।
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