30 जून 2020 - 13:41
यूरोप को फ़िलिस्तीनियों की हमदर्दी नहीं इस्राईलियों की जान का डर है, अपने फ़ैसले से फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध में नई शक्ति पैदा कर सकते हैं नेतनयाहू!

इस समय जब इस्राईल वेस्ट बैंक के 30 प्रतिशत इलाक़ों को हड़पने की कोशिश में है और यह दरअस्ल 30 प्रतिशत नहीं बल्कि 82 प्रतिशत इलाक़ों को हड़पने की साज़िश है तो संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय सरकारो की ओर से जो आलोचना हो रही है वह इसलिए है कि इन सरकारों को इस्राईल के ध्वस्त हो जाने का डर है। इन सरकारों के बयान फ़िलिस्तीनियों की मुहब्बत में नहीं आ रहे हैं।

जितनी भी यूरोपीय सरकारों ने बयान दिया है किसी ने इस्राईल पर प्रतिबंध लगाने की कोई बात नहीं कही है बल्कि केवल चेतावनी दी जा रही है और इस्राईल से कहा जा रहा है कि वह अपना इरादा बदल दे। हंग्री और आस्ट्रिया ने तो इस साज़िश की शब्दिक निंदा करना भी स्वीकार नहीं किया।

इस समय हुआ यह है कि महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले फ़िलिस्तीनी प्रशासन की भूमिका बहुत कमज़ोर हो चुकी है और इसी प्रशासन की मदद से इस्राईल और उसके समर्थकों ने फ़िलिस्तीनियों पर लज्जाजनक समझौते थोपे थे। मगर फ़िलिस्तीनी प्रशासन की भूमिका समाप्त हो जाने का मतलब यह है कि फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में फिर से प्रतिरोध की ज्वाला भड़क सकती है और इसी चीज़ का डर इस्राईल को भी सता रहा है और यूरोपीय देश भी इसी बात को लेकर चिंतित हैं।

फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने अपने इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती यही की थी कि उसने इस्राईल के साथ सुरक्षा समन्वय बना लिया और फ़िलिस्तीनी जनान्दोलन को कुचलने में मदद की। फ़िलिस्तीनी प्रशासन पिछले 27 साल से इस्राईल के हाथों इस्तेमाल होने वाला हथियार बन गई जिसे इस्राईल ने फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया। जबकि फ़िलिस्तीनी प्रशासन को इसके बदले अपमान और ज़मीनें हाथ से निकल जाने के अलावा कुछ नहीं मिला।

इस्राईली सरकार इस समय पूरे फ़िलिस्तीन को हड़प लेने और फ़िलिस्तीनियों को अपना ग़ुलाम बना लेने के सपने देख रही है। उनकी वही दुरगत करना चाहती है जो दक्षिणी अफ़्रीक़ा के अपारथाइड शासन में कालों की थी।

वेस्ट बैंक के जिस इलाक़े को इस समय इस्राईल हड़पना चाहता है वह उपजाऊ भूमि और पानी के भंडारों वाले इलाक़े हैं जबकि इसके बाद नाबलुस, तूलकर्म और अलख़लील जैसे अधिक आबादी वाले इलाक़ों की बारी आएगी। इन इलाक़ो को भी इस्राईल पहले ख़ाली करवाएगा और फिर उन पर क़ब्ज़ा करेगा जैसा उसने 1947 और 1948 में किया था। इस्राईल जिन इलाक़ो को इस समय हड़पना चाहता है वह अरब दुनिया से फ़िलिस्तीन को जोड़ने वाली सीमा बन सकते हैं और यह इस्राईल के लिए गहरी चिंता का विषय है। ग़ज़्ज़ा की सीमा मिस्र से लगी हुई थी तो गज़्ज़ा का इलाक़ा रक्षा दृष्टि से काफ़ी मज़बूत हो गया। इस्राईल यह नहीं चाहता कि वेस्ट बैंक में भी उसी स्थिति का सामना करना पड़े।

एक बात यह भी ध्यान में रखने की है कि इस समय इस्राईल अपने सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहा है। क्योंकि वह अपने दुशमनों के बीच घिर गया है और उसके चारों ओर सटीक मिसाइलों का भंडार लग गया है। यदि इस स्थिति में इस्राईल किसी जंग में पड़ता है तो उसे बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। इस्राईल को इस समय सबसे ज़्यादा डर इस बात का है कि वेस्ट बैंक का इलाक़ा भी ग़ज़्ज़ा पट्टी, दक्षिणी लेबनान या यमन के इलाक़े सअदा जैसा न बन जाए जहां मिसाइलों की खेप पहुंच जाए और बिल्कुल नए समीकरण उत्पन्न हो जाएं।

वैसे यह भी हो सकता है कि वेस्ट बैंक को हड़पने का इस्राईल का फैसला दीर्घकाल में फ़िलिस्तीनियों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो क्योंकि इस फ़ैसले के नतीजे में इस इलाक़े के हालात बदलेंगे, सोच बदलेगी, अपने अधिकार इस्राईलियों से वापस लेने की शैली बदलेगी। फिर शायद ओस्लो समझौते से निजात मिल जाए और फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध की ज्वाला भड़के और आसमान पर तारे की भांति जगमगाने लगे।

अब्दुल बारी अतवान

अरब दुनिया के विख्यात लेखक व टीकाकर, अतवान फ़िलिस्तीनी मूल के पत्रकार हैं जो लंदन में रहते हैं।