मासूमीन अ.स. कामिल इंसान और अल्लाह के चुने हुए ख़ास बंदे हैं जिन्हें अख़लाक़ और किरदार में सारे इंसानों के लिए आइडियल बना कर अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया है, इन ख़ास बंदों की ज़िंदगी और उनकी सीरत, उनका अख़लाक़ और किरदार सारे इंसानों के लिए इलाही वैल्यूज़ का आईना है।
इमाम अली नक़ी अ.स. अहलेबैत अ.स. के मक़ाम और मर्तबे के बारे में फ़रमाते हैं कि, ....... और अल्लाह की रहमत और उसके इल्म के वारिस हैं, सब्र और विनम्रता की आख़िरी हद पर पहुंचे हुए हैं,
अल्लाह के भेजे हुओं में से यह लोग ख़ास चुने हुए हैं, हिदायत के इमाम हैं, अंधेरों के चिराग़ हैं, तक़वा की निशानियां हैं, अल्लाह की तरफ़ से बेहतरीन आइडियल हैं और दुनिया और आख़ेरत में अल्लाह की हुज्जत हैं। (ज़ियारते जामिआ कबीरह)
इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसी पाकीज़ा हस्तियां और ऐसे चमकते चेहरे वाले लोगों की सीरत और उनके किरदार की पैरवी करना ही इंसानी कमाल और दुनिया और आख़ेरत की कामयाबी तक पहुंचा सकती है।
अल्लाह से लगाव
मासूमीन अ.स. अल्लाह की मारेफ़त के सबसे ऊंचे दर्जे और मर्तबे पर पहुंचे हुए थे, और उनकी गहरी मारेफ़त और बसीरत ही वजह बनी कि यह पाक हस्तियां अल्लाह से इतना मोहब्बत करती थीं और मासूमीन अ.स. की अल्लह से यही मोहब्बत और उसकी ज़ात से लगाव था जो यह हस्तियां अल्लाह की बारगाह में हाज़िरी के लिए बेचैन रहते थे और वह अपना सुकून और चैन अल्लाह की इबादत ही में तलाश करते थे।
इमाम अली नक़ी अ.स. रात के समय अल्लाह की बारगाह में हाज़िर हो कर पूरी रात इबादत करते थे, सारी सारी रात पूरी विनम्रता के साथ रुकूअ और सजदे में गुज़ार देते थे, आपकी नूरानी पेशानी ज़मीन पर होती थी और यह दुआ आपकी ज़बान पर रहती थी कि ऐ मेरे अल्लाह, तेरा गुनहगार बंदा तेरे पास आया है और एक फ़क़ीर तेरी बारगाह में हाज़िर हुआ है, उसकी कोशिश और मेहनत को ख़ाली मत जाने दे और उसे अपनी रहमत के साए में क़रार दे और उसकी ग़लतियों को माफ़ कर दे। (आइम्मतोना, जिल्द 2, पेज 257, सीरतुल इमामिल आशिर, पेज 55)
सख़ावत और बख़्शिश
मासूमीन अ.स. दुनिया में अपने लिए किसी माल व दौलत के क़ायल नहीं थे बल्कि पूरी कोशिश यह करते थे कि दुनिया के माल में से कम से कम अपने ऊपर ख़र्च करें, और उनकी वाजिब ज़रूरत से ज़्यादा उनके पास जो भी होता था वह उसे अल्लाह की राह में ख़र्च कर देते थे।
अल्लाह की राह में ख़र्च करना या बख़्शिश का एक रास्ता यह है कि समाज के ग़रीब और फ़क़ीर लोगों की मदद की जाए, इमाम अली नक़ी अ.स. अपने वालिद की तरह करीम थे यानी समाज के ग़रीब लोगों की ज़रूरतों को पूरा किया करते थे, और कभी कभी अल्लाह की राह में इतना ज़्यादा ख़र्च करते थे कि इब्ने शहर आशोब जैसे आलिम इस दास्तान को लिखने के बाद कहते हैं कि इतना ज़्यादा अल्लाह की राह में ख़र्च करना एक मोजिज़ा है जो बादशाहों के अलावा किसी और के बस की बात नहीं है, और अभी तक मैंने इतनी ज़्यादा ज़्यादा रक़म अल्लाह की राह में ख़र्च करना किसी और के बारे में नहीं सुना है। (मनाक़िब, इब्ने शहर आशोब, जिल्द 4, पेज 409)
वह दास्तान कुछ इस तरह है कि, इस्हाक़ जुलाब कहते हैं कि, मैंने अबुल हसन इमाम अली नक़ी अ.स. के लिए बहुत सारी भेड़ और बकरियां ख़रीदीं, उसके बाद इमाम अ.स. मुझे एक बहुत बड़ी जगह पर ले गए जिसके बारे में मुझे ख़बर नहीं थी, फिर सारी भेड़ बकरियों को जिन लोगों के बीच बांटने का हुक्म दिया मैंने उन सबको बांट दिया। (काफ़ी, शैख़ कुलैनी र.अ., जिल्द 1, पेज 498)
इस रिवायत से पता चलता है कि इमाम अ.स. माल व दौलत के मामले और बख़्शिश के सिलसिले में बहुत ही साधारण तरीक़े से ख़ामोशी से अंजाम देते थे।
सब्र और विनम्रता
सब्र और विनम्रता बहुत सी अहम सिफ़ात हैं जो विशेष तौर से अल्लाह की तरफ़ से भेजे गए रहबरों में पाए जाते हैं, जिसका अंदाज़ा नादान, जाहिल, गुमराह, बेवक़ूफ़ और बुरे लोगों का सामना करते समय इन रहबरों में देखा जा सकता है, और यह पाक हस्तियां अपने इस नेक बर्ताव और अच्छे अख़लाक़ की वजह से बहुत से लोगों को अपने मज़हब और दीन की तरफ़ आकर्षित कर लेते थे।
इमाम अली नक़ी अ.स. अपने वालिद और जद की तरह कठिनाईयों और परेशानियों में सब्र से काम लेते थे और जहां तक इस्लाम की मसलेहत की मांग होती थी वहां तक आप हक़ के दुश्मनों, बुरा भला कहने वालों और अपमान करने वालों के मुक़ाबले सब्र और विनम्रता से पेश आते थे।
बुरैहा अब्बासी जो बनी अब्बास की तरफ़ से मक्का और मदीना में जमाअत पढ़ाने के लिए भेजा गया था उसने इमाम अली नक़ी अ.स. की चुग़ली करते हुए मुतवक्किल को लिखा कि, अगर तुम्हें मक्का और मदीना की ज़रूत है तो अली इब्ने मोहम्मद (इमाम अली नक़ी अ.स.) को इन दोनों शहरों से निकाल दो क्योंकि वह लोगों को अपनी इमामत की तरफ़ दावत देते हैं और काफ़ी तादाद में लोग उनकी पैरवी करने लगे हैं।
बुरैहा की लगातार चुग़ली की वजह से मुतवक्किल अब्बासी ने इमाम अली नक़ी अ.स. को आपके जद पैग़म्बर स.अ. के रौज़े से दूर कर दिया और जिस समय इमाम अ.स. मदीना से सामरा की तरफ़ जा रहे थे तो बुरैहा आपके साथ ही था, बुरैहा ने सफ़र के दौरान इमाम अ.स. से कहा, आप अच्छी तरह जानते हैं कि आपको मदीने से निकाले जाने के पीछे मेरा हाथ है, और मैं क़सम खा कर कह रहा हूं कि अगर आपने मुतवक्किल या उसके बेटों और क़रीबियों से मेरी शिकायत की तो मैं मदीने में मौजूद आपके सारे पेड़ों को आग लगा दूंगा, आपके ग़ुलामों और ख़ादिमों को मार डालूंगा, आपकी सारे पानी के चश्मे बंद कर दूंगा और आप यक़ीन जानिए मैं यह सारे काम ज़रूर करूंगा।
इमाम अली नक़ी अ.स. ने उसकी तरफ़ देखते हुए फ़रमाया, तुम्हारी शिकायत करने का सबसे क़रीबी रास्ता अल्लाह की ज़ात है, और मैंने कल रात ही तेरी शिकायत अल्लाह से कर दी है और उसके अलावा मैं बंदों से शिकायत नहीं करूंगा।
बुरैहा ने जैसे ही यह सुना तुरंत इमाम अ.स. का दामन पकड़ कर रोने लगा और माफ़ी मांगने लगा, इमाम अ.स. ने फ़रमाया जा तुझे माफ़ कर दिया। (इस्बातुल वसिय्यह, मसऊदी, पेज 196-197)
दिलों पर राज
मासूमीन अ.स. अल्लाह की क़ुदरत और अज़मत के मज़हर और अल्लाह के नूर हैं, इसी वजह से इन हस्तियों के पास मानवी ताक़त थी और लोगों में ख़ास मर्तबा रखते थे और लोगों के दिलों में इनके लिए ख़ास जगह थी।
हर शरीफ़ और बुज़ुर्ग ने आपकी शराफ़त और अज़मत के आगे सर झुकाया है, और हर मुतकब्किर और बाग़ी ने आपकी इताअत की है और ज़ालिम और अत्याचारी ने आपके फ़ज़्ल और करम के सामने सर झुका दिया है और जो भी मुक़ाबले पर आया वह ज़लील हो कर रहा।
ज़ैद इब्ने मूसा ने कई बार उमर इब्ने फ़रूख़ के कान भरे और उससे कहा कि उसे उसके भतीजे यानी इमाम अली नक़ी अ.स. से बेहतर समझे और उनसे आगे जगह दे, साथ ही यह भी कहता था कि वह जवान हैं अभी और मैं बूढ़ा हूं इसलिए मेरी ज़्यादा इज़्ज़त करे, उमर ने यह बात इमाम अली नक़ी अ.स. से कह दी, इमाम अ.स. ने फ़रमाया, तुम एक बार यह काम करो कि कल मुझे उनसे पहले बज़्म में बिठा दो उसके बाद देखो क्या होता है।
दूसरे दिन उमर ने इमाम अली नक़ी अ.स. को बुलाया और आपको बज़्म में सबसे आगे की जगह पर बिठाया, उसके बाद ज़ैद तो आने की जगह दी, ज़ैद इमाम अ.स. के सामने ज़मीन पर बैठ गया।
जुमेरात के दिन पहले ज़ैद को दाख़िल होने की अनुमति दी और उसके बात इमाम अ.स. को अंदर बुलाने की विनती की, इमाम अ.स. दाख़िल हुए जैसे ही ज़ैद की नज़र इमाम अ.स. पर पड़ी और इमाम अ.स. की हैबत और जलालत उनके चेहरे पर देखी तो अपनी जगह से खड़ा हो गया और इमाम अ.स. को अपनी जगह पर बिठाया और ख़ुद ज़मीन पर बैठ गया। (आलामुल वरा, 347)
इस बात से साफ़ ज़ाहिर है जिस इंसान का अमल और अख़लाक़ अपने मालिक यानी अल्लाह से बेहतर होगा वह ख़ुद ब ख़ुद उसकी हैबत को सामने वाले के दिल में डाल देगा।
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