22 दिसंबर 2025 - 14:48
मुहम्मद बाकिर (अ.स.) के दौर की राजनीतिक और सामाजिक हालात

बनी उमय्या के अलग-अलग गुटों के बीच मतभेद, अलग-अलग इलाकों में लगातार विद्रोह, और लोगों के नाराजगी में बढ़ोतरी ने राजनीतिक ताकत को बिखरा दिया था। इस हालत में सरकार का ध्यान ज्यादातर अपनी गिरती ताकत को संभालने पर केंद्रित हो गया और इमाम और अहले बैत (अ.स.) की .....

इमाम मुहम्मद बाकिर के दौर की राजनीतिक और सामाजिक हालात पहले इमामों के दौर से बिल्कुल अलग थे। पहले के दौर में, खासकर कर्बला की घटना के बाद, बनी उमय्या ने अहले बैत (अ.स.) से जुड़ी हर गतिविधि को बेहद सख्ती और हिंसा से कुचल दिया था। समाज पर डर, कड़ी निगरानी और जबरदस्त दबाव हावी था, और ऐसे हालात में बड़े पैमाने पर बौद्धिक और इल्मी तहरीक की कल्पना भी मुमकिन नहीं थी।
इसके उलट, इमाम मुहम्मद बाकिर के दौर में बनी उमय्या सल्तनत में कमजोरी साफ दिख रही थी। बनी उमय्या के अलग-अलग गुटों के बीच मतभेद, अलग-अलग इलाकों में लगातार विद्रोह, और लोगों के नाराजगी में बढ़ोतरी ने राजनीतिक ताकत को बिखरा दिया था। इस हालत में सरकार का ध्यान ज्यादातर अपनी गिरती ताकत को संभालने पर केंद्रित हो गया और इमाम और अहले बैत (अ.स.) की बौद्धिक और इल्मी गतिविधियों को दबाने पर कोई ध्यान नहीं था। इस तरह इमाम पर पड़ने वाला सीधा दबाव कम हुआ और आम लोगों और छात्रों से संपर्क के नए मौके पैदा हुए।
सामाजिक नजरिए से भी इस्लामी समाज एक नए दौर में दाखिल हो चुका था। मुसलमानों की एक नई पीढ़ी सामने आ चुकी थी जिसने न तो पैगंबर (स.अ.) का दौर देखा था और न ही पहले खलीफाओं का दौर, और उनके दिमाग में धर्म के बारे में नए सवाल थे। इस्लामी साम्राज्य के फैलाव, अलग-अलग सभ्यताओं और विचारों के दाखिल होने, और बौद्धिक मतभेदों में बढ़ोतरी ने धर्म की बौद्धिक और सुव्यवस्थित व्याख्या की जरूरत को और बढ़ा दिया था। ये सभी बातें इमाम की बौद्धिक और इल्मी गतिविधियों के लिए एक मुफीद माहौल बना रहे थे।
इमाम मुहम्मद बाकिर ने इन हालात को गहरी समझ के साथ पहचाना और अपनी बौद्धिक गतिविधियों को सक्रिय और लगातार तरीके से संगठित किया। आपने धर्म की शिक्षा को सीमित और महज रक्षात्मक दौर से निकालकर एक संगठित और आगे बढ़ने वाली तहरीक में बदल दिया। हालात में आए इस बदलाव ने इमाम को यह मौका दिया कि वह न सिर्फ अपने दौर के बौद्धिक मुद्दों का जवाब दें बल्कि इस्लामी समाज के बौद्धिक भविष्य के लिए भी योजना बनाएं और अहले बैत (अ.स.) की बौद्धिक रुसूख को मजबूत बुनियादों पर कायम करें।

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