9 दिसंबर 2025 - 11:56
मुसलमान बस अल्लाह की इबादत करता है, उसमे किसी दूसरे को शामिल नहीं करेंगे

हम एक अल्लाह को मानने वाले हैं, अल्लाह के सिवा न किसी को पूजनीय मानते हैं और न किसी के आगे सजदा करते हैं। हमें मर जाना स्वीकार है, लेकिन  खुदा के साथ किसी को शामिल करना अर्थात, शिर्क कभी स्वीकार नहीं। 

देश भर में वंदे मातरम को लेकर सत्ताधारी दल की ओर से खड़ी की गई बहस को लेकर जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि 
हमें किसी के “वंदे मातरम्” पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को शामिल नहीं कर सकता। 
उन्होंने कहा कि “वंदे मातरम्”  का अनुवाद शिर्क से संबंधित मान्यताओं पर आधारित है। इसके चार श्लोकों में देश को देवता मानकर “दुर्गा माता” से तुलना की गई है और पूजा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। साथ ही “माँ, मैं तेरी पूजा करता हूँ” यही वंदे मातरम् का अर्थ है। यह किसी भी मुसलमान की धार्मिक आस्था के खिलाफ है। इसलिए किसी को उसकी आस्था के खिलाफ कोई नारा या गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। क्योंकि भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) देता है।
जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि वतन से प्रेम करना अलग बात है, उसकी पूजा करना अलग बात है। मुसलमानों की देशभक्ति के लिए किसी के प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी कुर्बानियाँ इतिहास के सुनहरे पन्नो में दर्ज हैं।
हम एक अल्लाह को मानने वाले हैं, अल्लाह के सिवा न किसी को पूजनीय मानते हैं और न किसी के आगे सजदा करते हैं। हमें मर जाना स्वीकार है, लेकिन  खुदा के साथ किसी को शामिल करना अर्थात, शिर्क कभी स्वीकार नहीं। 

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