5 अप्रैल 2025 - 20:43
इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ मुस्लिम स्कॉलर्स का फ़तवा इस्राईल के खिलाफ हर तरह का जिहाद वाजिब 

ग़ज़्ज़ा के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल होने वाले तेल, गैस, भोजन और अन्य वस्तुओं की आपूर्ति हराम है। जो कोई भी ज़ायोनी शासन के प्रति प्रेम या इस्लामी प्रतिरोध के प्रति शत्रुता के कारण ऐसा करता है, उसे धर्मत्यागी माना जाता है।

दुनिया भर के अहले सुन्नत उलमा के सबसे बड़े और प्रभावी संगठन इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ मुस्लिम स्कॉलर्स ने इस्राईल के खिलाफ अभूतपूर्व क़दम उठाते हुए जिहाद का फतवा दिया है। 

अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम विद्वानों के संघ की इज्तिहाद और फतवा समिति ने अमेरिका के समर्थन और विश्व समुदाय की चुप्पी के बीच ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा जारी अपराधों और नरसंहार पर खेद और दुख व्यक्त किया। 

इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ मुस्लिम स्कॉलर्स ने बयान जारी करते हुए कहा है कि 

1. जिहाद का फ़र्ज़ : पिछले फतवों पर ताकीद करते हुए ज़ायोनी शासन और मक़बूज़ा फिलिस्तीन में लोगों के नरसंहार में शामिल ज़ायोनी एजेंट्स और सैनिकों के खिलाफ जिहाद वाजिबे ऐनी है। सबसे पहले यह फिलिस्तीन के लोगों पर वाजिब है  फिर मिस्र, जॉर्डन और लेबनान जैसे पड़ोसी देशों पर और फिर सभी इस्लामी देशों पर।

2. दुश्मन की मदद करना हराम है : ग़ज़्ज़ा में मुसलमानों के क़त्ले आम में दुश्मन की मदद करना किसी भी रूप में मना है; हथियारों की बिक्री से लेकर स्वेज नहर, बाबुल-मंदाब, हुर्मुज जलडमरूमध्य या किसी भी अन्य समुद्री, भूमि या हवाई मार्ग से गुजरने की अनुमति तक हराम है।
3. ईंधन, भोजन और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर प्रतिबंध: ग़ज़्ज़ा के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल होने वाले तेल, गैस, भोजन और अन्य वस्तुओं की आपूर्ति हराम है। जो कोई भी ज़ायोनी शासन के प्रति प्रेम या इस्लामी प्रतिरोध के प्रति शत्रुता के कारण ऐसा करता है, उसे धर्मत्यागी माना जाता है।

इस्लामी सैन्य व्यवस्था बनाने की ज़रूरत : इस्लामी देशों को अपनी इस्लामी भूमि और लोगों की हिफाज़त के लिए तत्काल और एक सिस्टम बनानी चाहिए।

5. ज़ायोनी शासन के साथ समझौतों का पुनर्मूल्यांकन : जिन इस्लामी देशों ने ज़ायोनी शासन के साथ समझौते किए हैं, उन्हें उनका पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और इस शासन द्वारा अपने वादों के उल्लंघन के मामले में निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।

6. आर्थिक जिहाद फ़र्ज़ : धनवानों पर यह अनिवार्य है कि वे अपना धन (केवल जकात ही नहीं) मुजाहिद्दीन को सुसज्जित करने तथा शहीदों के परिवारों की सहायता करने पर खर्च करें।

7. ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्यकरण पर रोक: ज़ायोनी सरकार के साथ किसी भी तरह के संबंध हराम हैं और जिन इस्लामी देशों ने उनके साथ सामान्य संबंध बनाए हैं, उनके लिए अपने संबंधों को तोड़ना वाजिब है।

8. उलमा की ज़िम्मेदारी: उलमा की ज़िम्मेदारी कि वे चुप्पी तोड़ें, ज़ायोनी शासन के खिलाफ जिहाद के वाजिब होने का ऐलान करें और मुस्लिम शासकों और सेनाओं पर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए दबाव डालें।

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