قال رسول الله صلى الله عليه وآله: إذا كانَ يَومُ القِيامَةِ يُنادِي المُنادي: أينَ أضيافُ اللّهِ؟ فَيُؤتى بِالصّائِمينَ ... فَيُحمَلونَ عَلى نُجُبٍ مِن نورٍ، و عَلى رُؤوسِهِم تاجُ الكَرامَةِ، و يُذهَبُ بِهِم إلَى الجَنَّةِ
पैगम्बरे इस्लाम (स.अ) ने फ़रमाया: जब क़यामत होगी तो एक आवाज़ आएगी: कहाँ हैं अल्लाह के मेहमान? तो रोज़ेदारों को लाया जाएगा, उन्हें बैहतरीन सवारियों पर सवार किया जाएगा और उनके सिर पर ताज सजाया जाएगा और उन्हें जन्नत में ले जाया जाएगा। पैग़म्बरे अकरम फ़रमाते हैं कि रमज़ान के महीने में तुम्हारा सांस लेना तसबीह और तुम्हारी नींद इबादत है। इस महीने में तुम्हारे काम अल्लाह के नज़दीक क़बूल हैं और तुम्हारी दुआएं भी क़बूल हैं। बस तुम साफ मन और पाक मन से अपनी बातों को अल्लाह के सामने रखो और अल्लाह से दुआ करो कि वह इस महीने में तुम्हें रोज़ा रखने की तौफ़ीक़ दे और क़ुरआने करीम की तिलावत करने या उसे पढ़ने की तौफ़ीक़ अता करे।
बदक़िस्मत इंसान वह है जिसके गुनाहों को अल्लाह इस महीने में माफ़ न करे। इस महीने की भूख और प्यास से क़यामत के दिन की भूख और प्यास को याद करो और ग़रीबों तथा वंचितों को दान दो।
अल्लाह ने इंसान को हर हालत में अपनी ज़बान पर कंट्रोल रखने का हुक्म दिया है। क्योंकि देखने में यह आता है कि कंट्रोल में न रहने वाली ज़बान, इंसान के बड़े-बड़े गुनाहों का कारण बनती है।
कहते हैं कि किसी गुनाह पर अल्लाह किसी को उस समय तक सज़ा नहीं देता जब तक उस गुनाह को इंसान अमली रूप न दे दे। इंसान के मन में बहुत सी बातें आती हैं। अच्छी भी और बुरी भी। इनको मन से बाहर लाकर लोगों के बीच फैलाने का काम सबसे पहले ज़बान करती है। इसी तरह किसी बुरे काम के बारे में सुनने का काम कान करते हैं लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने का काम ज़बान द्वारा ही किया जाता है। लड़ाई-झगड़ा, बुरा भला कहना, किसी का मज़ाक़ उड़ाना, किसी का दिल दुखाना आदि यह सारे ही काम ज़बान करती है। यह छोटी सी ज़बान बड़ी-बड़ी लड़ाइयों, दुश्मनी और मन-मुटाव का कारण बन जाती है। इसीलिए रोज़े में ज़बान पर कंट्रोल रखने पर बहुत ज़्यादा बल दिया गया है और शायद इसीलिए रोज़े की हालत में सोने को भी सवाब माना गया है क्योंकि उस हालत में इंसान की ज़बान काम नहीं करती और वह अनेक गुनाहों से बचा रहता है।ज़बान की एक दूसरी ख़तरनाक बुराई, ग़ीबत अर्थात किसी के पीठ पीछे बातें बनाना है। यह बुराई, लोगों की बातें इधर-उधर फैलने का कारण बनने के अतिरिक्त, अकारण ही लोगों की निगाह में किसी इंसान का सम्मान कम होने का कारण बनती है। फिर कही गयी बातें अगर सच हों तो भी चूंकि किसी के बारे में उसके पीठ पीछे कहा गया है इसलिए यह गुनाह मानी जाती हैं और अगर झूठ हों तब तो उसका दंड और भी बढ़ जाता है। ग़ीबत को क़ुरआन में इतना बड़ा गुनाह कहा गया है कि जैसे किसी ने अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाया हो।झूठ बोलना और झूठी क़सम खाना भी ज़बान का ही काम है। इस तरह ज़बान, अनेक संबन्धों के टूटने, दुश्मनी पैदा करने, नफ़रत बढ़ाने, लोगों को दुखी और अपमानित करने का काम करने के कारण ही जिस्म का ख़तरनाक हिस्सा मानी जाती है।
