सहीफ़ा-ए-सज्जादिया, जो इमाम ज़ैनुल आबिदीन अ.स. की दुआओं का कलेक्शन है, इस्लामी तालीमात, रूहानियत और सोशल गाइडेंस का खज़ाना है। इसमें इमामत, लीडरशिप और ग़ैबत के दौर में सच्चे फॉलोअर्स के गुणों और विशेषताओं के बारे में अहम बातें बयान हुई हैं। यह दुआएं इमाम के मक़ाम, उनकी ज़िम्मेदारियों और उनके मानने वालों की खासियतों को बयान करती हैं।
1. सहीफ़ा सज्जादिया की रौशनी में इमाम का स्थान और उनकी अहेम भूमिका
1.1 इमाम, क़ुरआन के असली मुफ़स्सिर
दुआ नंबर 42 (जो क़ुरआन खत्म करने की दुआ के तौर पर मशहूर है) में इमामों को क़ुरआन की सही तफसीर (एक्सप्लानेशन) करने वाले बताया गया है:
"ख़ुदाया! तूने अपने नबी मुहम्मद (स.) पर क़ुरआन को उतारा और इसके तमाम सीक्रेट्स का इल्म उन्हें दिया, फिर हमें इसकी तफसीर का वारिस बनाया और हमें उन लोगों से बेहतर किया जो इससे नावाक़िफ़ हैं।"
इससे साफ होता है कि इस्लामी तालीमात को सही तरीके से समझने के लिए इमामों की गाइडेंस ज़रूरी है।
1.2 इमाम, तौहीद और ईमान के रहनुमा
दुआ नंबर 48 (जो ईद-ए-क़ुर्बान और जुमा की दुआ है) में इमामों को तौहीद और ईमान के सही रास्ते की तरफ़ ले जाने वाला बताया गया है:
"ख़ुदाया! मुझे तौहीद और ईमान वालों में रख, और उन इमामों को फॉलो करने वालों में बना, जिनकी इताअत को तूने वाजिब किया है।"
इस दुआ से ये समझ आता है कि इमाम सिर्फ़ इल्म का सोर्स नहीं बल्कि सही ईमान और तौहीद को अपनाने के लिए ज़रूरी भी हैं।
2. ग़ैबत के दौर में इमाम की मौजूदगी
दुआ नंबर 4 (जो अल्लाह की हम्द है) में कहा गया है कि अल्लाह ने हर दौर में एक इमाम व रहनुमा भेजा है:
"हर दौर और हर ज़माने में तूने एक रसूल भेजा और उसके लिए एक जानशीन नियुक्त किया, जो लोगों को सही राह दिखाए, आदम से लेकर मुहम्मद (स.) तक।"
इससे साफ होता है कि दुनिया कभी भी अल्लाह की हुज्जत (डिवाइन गाइडेंस) से खाली नहीं रही है। मतलब ये कि ग़ैबत के दौर में भी इमाम मौजूद रहते हैं, भले ही आम लोगों की आंखों से ओझल हों।
3. ग़ैबत के दौर में सच्चे फॉलोअर्स
3.1 ग़ैबत के दौर में फॉलोअर्स की जिम्मेदारियां
दुआ नंबर 47 (जो यौम-ए-अरफ़ा की दुआ है) में इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ.स.) अल्लाह से दुआ करते हैं:
"ख़ुदाया! तू हर दौर में एक इमाम को भेजता है, जो तेरे दीन की हिफ़ाज़त करता है, तेरे बंदों को गाइड करता है, और लोगों को तेरे रास्ते की तरफ़ बुलाता है।"
ये बताता है कि ग़ैबत के दौर में भी लोगों को इमाम की तरफ़ झुकाव रखना चाहिए और उनकी तालीमात को अपनाना चाहिए।
3.2 ग़ैबत के दौर में सच्चे फॉलोअर्स की क्वालिटीज़
दुआ नंबर 47 में ही इमाम (अ.स.) ने ग़ैबत के दौर में इमाम के फॉलोअर्स के लिए कुछ खास बातें बताई हैं:
"ख़ुदाया! हमें उनके इताअतगुज़ारों में शुमार कर, उनकी मदद करने वाला बना, उनके रास्ते पर चलने वाला बना, और उनकी हुकूमत व विलायत के लिए दुआ करने वाला बना।"
इस दुआ से हमें सच्चे इंतज़ार करने वालों (मुंतज़िरीन) की क्वालिटीज़ पता चलती हैं:
1. ऑबेयडियंस व इताअत- इमाम की तालीमात को मानना और उन पर अमल करना।
2. सपोर्टिव बनना- जब इमाम का ज़ुहूर हो, तो उनकी मदद के लिए तैयार रहना।
3. इमाम के रास्ते पर चलना- उनकी तालीमात और इंसाफ़ के रास्ते को अपनाना।
4. इमाम की हुकूमत के लिए दुआ करना- उनके आने की दुआ करना और उनकी लीडरशिप को एक्सेप्ट करने के लिए खुद को तय्यार करना।
4. सहीफ़ा-ए-सज्जादिया में इमाम के सच्चे फॉलोअर्स के लिए ख़ास दुआ
इमाम (अ.स.) ने दुआ नंबर 47 में इमाम के सच्चे फॉलोअर्स के लिए एक ख़ास दुआ की है:
ख़ुदाया! उनके फॉलोअर्स पर रहमत भेज, जो उनके हक़ को पहचानते हैं, उनके बताए रास्ते पर चलते हैं, उनके हुक्म को मानते हैं और उनकी हुकूमत के आने का इंतज़ार करते हैं।"
इस दुआ से सच्चे फॉलोअर्स के कुछ और गुण सामने आते हैं:
1. इमामत को एक्सेप्ट करना – उनकी लीडरशिप को सच मानना और इस पर कोई शक न रखना।
2. इमाम के हुक्म को मानना – उनकी तालीमात पर अमल करना।
3. इमाम की हुकूमत का इंतज़ार करना और उसके लिए तय्यार रहना।
सहीफ़ा सज्जादिया की दुआएं क्लियरली इमामत और उसके फॉलोअर्स के रिलेशन को दिखाती हैं। ये दुआएं बताती हैं कि इमाम न सिर्फ़ रिलिजियस गाइड होते हैं, बल्कि वो सोसाइटी में जस्टिस, नॉलेज और रूहानियत का उजाला फैलाते हैं।
ग़ैबत के दौर में सच्चे फॉलोअर्स की क्वालिटीज़:
सब्र और यक़ीन – मुश्किलों में भी इमाम की तरफ़ से यक़ीन बनाए रखना। इमाम की हुकूमत के लिए दुआ करना। इमाम के हुक्म को मानना- उनकी तालीमात को अपने लाइफस्टाइल में इम्प्लीमेंट करना। पॉज़िटिव रोल प्ले करना – सोसाइटी में अच्छाई फैलाना और दूसरों को भी इस रास्ते पर इंस्पायर करना।सहीफ़ा सज्जादिया की दुआएं हमें सिखाती हैं कि ग़ैबत के दौर में भी हमें इमाम की गाइडेंस को मानना चाहिए, पेशेंस रखना चाहिए और उनकी वापसी के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। इन दुआओं में सिर्फ इमाम की अहमियत ही नहीं, बल्कि एक सच्चे फॉलोअर की ड्यूटीज़ का भी खुबसूरत ज़िक्र मिलता है।
