मोरक्को के टीवी चैनल-2 के ईद के कार्यक्रम में मोरक्कन मूल के दो इस्राईली कलाकारों की शिरकत की ख़बर सामने आने के बाद अब दो और बड़ी घटनाओं का पता चला है।
एक घटना यह है कि इस्राईल का विमान सूडान की राजधानी ख़ारतूम के एयरपोर्ट पर उतरा जिस पर इस्राईली मेडिकल टीम सवार थी। यह टीम सूडानी डिपलोमैट नजवा क़दहुद्दम के इलाज के लिए सूडान पहुंची जो कोरोना वायरस की चपेट में आ गई थीं। क़दहुद्दम को सूडान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अब्दुल फ़त्ताह बुरहान और इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू की हालिया मुलाक़ात का सूत्रधार कहा जा रहा है। यह मुलाक़ात गत फ़रवरी महीने में योगान्डा में हुई थी।
दूसरी घटना मिस्र और इस्राईल के ऊर्जा मंत्रियों की वार्ता की है जिसमें गैस के मुद्दे पर महत्वपूर्ण बैठक के लिए सहमति बनी है।
वैसे हमें वह घटना भी नहीं भूलनी चाहिए कि इमारात का एक विमान इस्राईल के बिन गोरियन एयरपोर्ट पर उतरा था और आंख में धूल झोंकने के लिए उसने फ़िलिस्तीनियों के लिए सहायता सामग्री की खेप लाद रखी थी जिसे स्वीकार करने से फ़िलिस्तीनियों ने इंकार कर दिया।
अतीत में इस्राईल से दोस्ती की वकालत करने वाले यह तर्क दिया करते थे कि वह इस्राईल से रिश्ते नहीं चाहते बल्कि अरब शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के मक़सद से काम कर रहे हैं। यह शांति प्रक्रिया तो अब ध्वस्त हो चुकी है। इस्राईल ने टू स्टेट समाधान के ताबूत में आख़िरी कील भी ठोंक दी है क्योंकि उसने बैतुल मुक़द्दस और गोलान हाइट्स के विलय का एलान कर दिया और वेस्ट बैंक के विलय की तैयारी कर रहा है। मगर इन हालात में इस्राईल से रिश्तों की पेंग बढ़ाने के लिए अरब सरकारें अब और ज़्यादा ज़ोर लगा रही हैं। मिस्र की सरकार के पास तो एक बहाना है कि उसने कैंप डेविड समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें मिस्र और इस्राईल के बीच कूटनैतिक संबंध स्थापित किए जाने की बात कही गई है मगर सूडान, इमारात, क़तर मोरक्को और ओमान की सरकारों के पास क्या तर्क है?
कुछ लोग हो सकता है कि यह कहें कि फ़िलिस्तीनी प्रशासन ने तो इस्राईल से कूटनैतिक संबंध ही नहीं सुरक्षा समन्वय और सहयोग भी बना रखा है। यह बात सही है लेकिन यह भी सही है कि फ़िलिस्तीनी प्रशासन को फ़िलिस्तीनी जनता अपना प्रतिनिधि नहीं मानती। इस समय फ़िलिस्तीनी जनता इस्राईल और इस फ़िलिस्तीनी प्रशासन दोनों से संघर्ष कर रही है और इस लड़ाई में रोज़ाना क़ुरबानियां भी दे रही है।
सूडान इस भ्रम में है कि इस्राईल से दोस्ती हो जाने की स्थिति में उसकी आर्थिक मुशकिलें हल हो जाएंगी मगर यह विचार वाक़ई भ्रम है। सुबूत यह है कि इस्राईल से दोस्ती करने वाले जार्डन और मिस्र आज भी गंभीर आर्थिक संकट में हैं। दूसरी बात यह है कि सूडान का आर्थिक संकट इस्राईल से दूरी की वजह से नहीं बल्कि भ्रष्टाचार और कमज़ोर नीतियों का नतीजा है। यह संकट पैसे की लालच में अपने सैनिक यमन जंग में झोंक देने का नतीजा है। यह पैसे भ्रष्टाचारियों की जेब में गए जबकि जनता को केवल सैनिकों की लाशें मिलीं। अपदस्थ राष्ट्रपति उमर अलबशीर के आवास से मिलने वाले करोड़ों डालर इसका सुबूत हैं।
देखना यह है कि कोरोना की आड़ लेकर अरब सरकारें अब और कितने अपराध करती हैं?!