आने वाले साठ दिनों के भीतर इसके पक्षों की बैठक होगी जिसमें टाइम टेबल निर्धारित किया जाएगा। संबंधित औपचारिक बयान में इस महत्वाकांक्षी परियोजना के बारे में बड़े अहम ब्योरे ग़ायब हैं। वैसे ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू तो इसी से गदगद हो गए और उनके लगने लगा कि इस्लामी देशों से दोस्ती की राह इस्राईल के लिए खुल जाएगी।
वाशिंग्टन में स्टिमसन थिंक टैंक में अंतर्राष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ बारबरा स्लावी ने कहा कि मुझे तो इसमें पाइपलाइनों और नए रास्तों का ब्योरा नहीं है मुझे नहीं लगता कि जल्द इस परियोजना का कोई नतीजा निकल सकेगा। बल्कि लगता है कि यह चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना का मुक़ाबला करने के लिए कोई स्टंट है। इसके लिए इस्राईल और सऊदी अरब के बीच दोस्ती ज़रूरी है और इस चीज़ की कोई गैरेंटी नहीं है।
यह कारीडोर भार से शुरू होकर मध्यपूर्व से गुज़रेगा और यूरोप पहुंचेगा। यह अमरीका के व्यापार मार्गों से काफ़ी दूर पड़ता है। इसलिए सवाल पैदा हो रहा है कि अमरीका इतना क्यों उत्साहित दिखाई दे रहा है जबकि उसके स्पष्ट हित इस परियोजना में कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं।
कुछ टीकाकार इस परियोजना का बचाव भी करते हैं कि अमरीका की नीयत दुनिया में व्यापार को बढ़ावा देने की है।
मगर बड़े पर्यवेक्षक मानते हैं कि अमरीका की नीयत चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना को नाकाम बनाने की है। चीन इस परियोजना की दसवीं बर्षगांठ जल्द ही मनाने वाला है।
येल युनिवर्सिटी में चीनी मामलों के विशेषज्ञ मोरिट्ज़ रोडोल्फ़ ने एक्स प्लेटफ़ार्म पर लिखा कि अमरीका की परियोजना दरअस्ल मध्यपूर्व और चीन के बीच बढ़ते आर्थिक व राजनैतिक सहयोग पर वाशिंग्टन की प्रतिक्रिया है। अमरीका यह समझ रहा है कि इस प्रकार की परियोजनाओं के ज़रिए वह चीन के बढ़ते प्रभाव पर अपनी आशंकाओं को कुछ कम कर सकेगा। अमरीका की नज़र इस बात पर है कि जिस तरह भी हो दक्षिणी ध्रुव में चीन के प्रभाव को रोका जाए लेकिन देखना यह है कि तस्वीरें खिंचवाने के सेशन के बाद अब व्यवहारिक चरण में क्या क़दम उठाए जाते हैं।
अमरीकी टीकाकार वहीं इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इस्राईल और सऊदी अरब के बीच मतभेद बहुत गहरे हैं ख़ास तौर पर इसलिए कि फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल ने दमनकारी नीतियां अपना कर बहुत से इस्लामी देशों को जिनमें सऊदी अरब भी शामिल है नाराज़ कर दिया है बल्कि उन्हें संकट में डाल दिया है कि अगर वे इस्राईल से दोस्ती के बारे में सोचते भी हैं तो जनता की तरफ़ से बहुत तीखी प्रतिक्रिया सामने आ सकती है।
दूसरी बात यह है कि इस प्रक्रिया की परियोजनाओं और कार्यक्रमों के जवाब में सऊदी अरब की तरफ़ से अमरीका के सामने बहुत बड़ी मागें रखी जा रही है जिनमें परमाणु टेक्नालोजी का विषय भी शामिल है। इन मांगों को पूरा करना अमरीका की बाइडन सराकर के लिए बेहद कठिन होगा। वाइट हाउस की ओर से जारी किया गया भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कारीडोर सहमति पत्र बड़े अस्पष्ट वाक्यों पर समाप्त हुआ है। यह आरंभिक विमर्श के बाद तैयार किया गया सहमति पत्र है जिसका लक्ष्य भागीदारों को की राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करना है जबकि इससे कोई क़ानूनी प्रतिबद्धता नहीं होगी।